रामचरितमानस को ले कर बिहार में शास्त्रार्थ तो शुरू नहीं हुआ मगर गंभीर टिप्पणियों का एक दौर शुरू हो गया। सदन के भीतर और सदन के बाहर भी। स्थिति यह है कि रामचरितमानस को लेकर नेताओं की टिप्पणी पर अपने और अन्य दलों के विधायक के सुर भी बिगड़े। लेकिन इनके समर्थन में खुल कर न तो इनके दल के या महागठबंधन के कोई साथी दल के नेता भी नहीं आए। हां, यह जरूर हुआ कि उपाधियों का सिलसिला निकल पड़ा। किसी ने मानसिक रोगी तो किसी ने विक्षिप्त कहा। कोई मानसिक दिवालियापन करार दे रहा है। हद तो तब हो गई जब एक जदयू विधायक ने शिक्षा मंत्री को साइकोपैथ का मरीज कह डाला।
सामान्य व्यवहार से इतर कुछ तो दिखा
जाहिर है एक कार्यक्रम में उन्होंने रामचरितमानस को समाज में विभेद पैदा करने वाला बताया। एक जिम्मेदार पद पर बैठे आदमी के लिए जब विवाद का दौर शुरू हो गया है तो उसका सबसे अच्छा उपाय है चुप हो जाना। मगर शिक्षा मंत्री प्रो.चंद्रशेखर बजाय इस विवाद को भूलना तो दूर ग्रंथों का पुलिंदा बांध सदन में भी आ गए। और वे इस बात को ले कर सदन में संघर्ष करने लगे कि रामचरितमानस भेदभाव पैदा करता है। वह भी उस प्राथमिकता को नकारते कि आज उन्हें शिक्षा पर बजटीय भाषण दे कर शिक्षा विभाग की सार्थकता और उसकी उपलब्धि के बारे में बताया जाना चाहिए। मगर वे तो रामचरिमानस को ही गलत साबित करने में लगे रहे। इतना ही नहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के पक्षधर भी बन गए।
क्या कहा जदयू विधायक ने ?
जदयू विधायक डॉ. संजीव ने शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को सीधे साइकोपैथ का मरीज कहा। इस हालत में थोथी दलीलों के सहारे रामचरितमानस को नफरत फैलाने वाला ग्रंथ बता रहे हैं । इतना ही उन्हें यह धर्मग्रंथ पसंद नहीं तो धर्म परिवर्तन कर लेना चाहिए। ऐसा लगता है शिक्षा मंत्री की मानसिक हालत ठीक नहीं है । या फिर पूरी तरह से कंफ्यूजड हैं। हद तो है कि राजद आरएसएस का विरोध करती रही है और शिक्षा मंत्री संघ प्रमुख मोहन भागवत का गुणगान कर रहे हैं। दरअसल वे कंफ्यूज पर्सनालिटी के व्यक्ति हैं। उन्हें यह समझना चाहिए कि सदन संविधान से चलता है और वे सदन सदन में रामचरितमानस लेकर घूम रहे हैं।
क्या कहते हैं भाजपा नेता
भाजपा के प्रवक्ता और पेशे से चिकित्सक डॉ. रामसागर सिंह कहते हैं कि साइकोपैथ तो ज्यादा कड़ा शब्द हो जायेगा। इसे मानसिक दिवालियापन भी कह सकते थे। लेकिन इतना तो तय है कि इतने विरोध के बावजूद शिक्षा मंत्री का सदन में बोलना की मंशा वैमनस्ता फैलाना के अलावा कुछ नहीं। मगर बिहार की जनता सब समझ रही है। लेकिन आपने इस कार्य से अपने सरकार को भी बदनामी करा रहे हैं। यहां तो वे आपने इस आवरण से महागठबंधन के अंदर भी द्वेष फैला रहे हैं। जदयू के कई नेता ने आलोचना की। यहां तक की नीतीश कुमार ने भी हिदायत दी थी। मगर किसी की बात उन्होंने नही सुनी। अपने नेता और मुख्यमंत्री तक की बात ठुकरा दी है।