ऐसा परिदृश्य हमारे देश में ही संभव है। राजू पाल हत्याकांड के गवाह और वकील उमेश पाल तथा उनके दो अंगरक्षकों को सरेआम गोली मार दी गई। स्वाभाविक ही यह उत्तर प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती थी जिसका कानून के ढांचे में करारा प्रत्युत्तर दिया जाना आवश्यक था। यहां जिनकी हत्या हुई उनके परिवार वालों की जगह हत्या में संलिप्त संदिग्धों के पक्ष में अभियान चल रहा है। वे हत्या भी करें और विक्टिम यानी उत्पीडि़त भी माने जाएं‚ इसके उदाहरण शायद ही किसी अन्य देश में मिलेंगे। इसमें हर प्रकार के कार्ड खेले जा रहे हैं। कानून‚ संविधान‚ राजनीतिक विरोधियों से लेकर मुस्लिम कार्ड तक सामने आ चुका है। इस इकोसिस्टम का शोर इतना ज्यादा है कि इसमें दिनदहाड़े हत्या की भयानक घटना ही दब गई है। लगता है कि जैसे वह कोई मामूली घटना हो और उनके संदिग्धों के विरुद्ध चलाए जा रहे बुलडोजर या अन्य कार्रवाइयां ही अपराध हों।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। कोई माफिया है‚ और उसके अपराध स्पष्ट हैं‚ तो उसका अंत होना ही चाहिए। कानून के शासन का इकबाल तभी कायम रह सकता है। लेकिन इस बयान को ही गलत साबित करने वाले सामने आ गए। अतीक अहमद के अपराध तंत्र को नकारना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं। लेकिन गैर–भाजपा राजनीतिक दलों की ध्वनि में लगता ही नहीं कि वाकई अतीक अहमद एक बड़े क्षेत्र के लिए लंबे समय तक आतंक का पर्याय रहा हो। पूछने पर सभी कहते हैं कि अपराधी का कोई समर्थन नहीं कर सकता। उसके खिलाफ कार्रवाई होनी ही चाहिए लेकिन ऐसी पंक्ति सीधी–सपाट नहीं। काफी किंतु परंतु लगाकर अंततः कार्रवाई को ही गैर–कानूनी और सरकारी अपराध जैसा बना दिया जा रहा है। इसके मायने क्या हैंॽ इसका पहला अर्थ यही है कि उत्तर प्रदेश के गैर–भाजपा दलों की मानसिकता नहीं बदल पा रही है। सपा के लिए मुसलमान ठोस जनाधार हैं। तभी तो पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव बोल देते हैं कि अतीक के दोनों बेटों का एन्काउंटर भी हो सकता है। यह बात अलग है कि बाद में वे दोनों सुरक्षित बाल सुधार गृह में देखे गए। उनकी पार्टी के दो–दो सांसद मुसलमानों पर जुल्म की बात कह रहे हैं। जरा देख लीजिए‚ बुलडोजर को लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाएं क्या हैं। उसे कानून विरोधी बता रहे हैं। यह आरोप तो समझ में आता है कि अवैध निर्माण हुए हैं‚ तो प्रयागराज विकास प्राधिकरण की भूमिका के बिना संभव नहीं। किंतु उन पर बुलडोजर न चले या बुलडोजर चलाना कानून विरोधी‚ संविधान विरोधी और मुस्लिम विरोधी है‚ इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या अपराध‚ आतंक और माफियागिरी करने वालों की अवैध संपत्तियां भी सुरक्षित रहनी चाहिएॽ अगर आप सवाल उठाते हैं कि दिनदहाड़े ऐसे व्यक्ति की हत्या कैसे हो गई जिनकी सुरक्षा पर खतरा था तो हत्या का दुस्साहस करने वालों के विरुद्ध आपको स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपराध के उन्मूलन और अपराधियों के विरु द्ध कार्रवाई की प्रतिबद्धता को कोई नकार नहीं सकता। २०१७–२३ के दौरान अब तक प्रदेश के सुरक्षा माहौल में आया बदलाव महसूस किया जा सकता है। अपराधियों के विरुद्ध हरसंभव कार्रवाई पर अडिग रहने की शैली के कारण ही जनता के बीच उनकी लोकप्रियता है। विरोधियों द्वारा बुलडोजर चलाए जाने के भारी विरोध के दबाव से सरकार अप्रभावित है। जिन्हें जिस श्रेणी का विक्टिम कार्ड खेलना है‚ खेलें। कार्रवाई रु केगी नहीं। विरोधी अनेक तर्क दे रहे हैं। पहले क्यों नहीं ध्वस्त हुआॽ इतने अवैध निर्माण हो कैसे गएॽ तो क्या इन संपत्तियों को ध्वस्त नहीं होना चाहिएॽ किसी घर में यदि अपराध की योजना बनाने‚ हथियार रखने आदि के प्रमाण मिलें तो क्या उसे वैसे ही छोड़ दिया जाएॽ अगर कहीं इतने बड़े अपराध की योजना बनती है‚ उसका वित्त पोषण होता है‚ उसके लिए हथियार जुटाए जाते हैं‚ वहां अपराधियों को सुरक्षा–संरक्षण मिलता है तो वैसे घर के बने रहने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। ऐसा हुआ तो कानून के शासन का भय कायम नहीं होगा या खत्म हो जाएगा। जाहिर है‚ प्रशासन का दायित्व है कि इस बात की तलाश करे कि उन घरों के निर्माण में नियम–कानूनों का पालन हुआ है या नहीं और नहीं होने के प्रमाण मिलें तो उन्हें ध्वस्त कर दिया जाए। अनेक स्थानों से इस बात के प्रमाण मिल गए हैं कि अतीक अहमद और उससे जुड़े लोगों ने दूसरों की संपत्तियां कब्जाइ और मनमाने निर्माण किए। एक समय अपराध करने‚ अवैध तरीके से संपत्तियां बढ़ाने के लिए हर तरह की संरचनाएं मौजूद थीं। प्रशासन इनको स्पर्श करने का साहस नहीं कर पाता था।
अब माहौल बदल चुका है। मजहब और अन्य प्रकार की बातें उठाने से कार्रवाई अब नहीं रुकती। विचार करने वाली बात है कि अपराध के विरुद्ध सरकार के शत–प्रतिशत असहिष्णु चरित्र के बावजूद अगर माफिया का तंत्र इस तरह हत्या करने में सफल हो रहा है तो कल्पना करिए कि पहले उनकी स्थिति कैसी रही होगी और लोग किस तरह डर और आतंक के साये में जीते रहे होंगे। हत्या के वीडियो फुटेज में अतीक अहमद का बेटा असद गोली चलाते दिख रहा है। इसी तरह अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन के साथ रहने वाला शबीर दिख रहा है। बड़ा से बड़ा अपराधी भी पुलिस को क्षति पहुंचाने से बचता है। यहां पुलिस वालों को गोली मारी गई। पुलिस इस पर भी अपराध में संलिप्त संदिग्धों पर टूटेगी नहीं तो उसकी महिमा क्या रह जाएगीॽ क्या अपराधी मुस्लिम है‚ इसलिए उसकी संपत्तियां ध्वस्त नहीं होनी चाहिएॽ शफीकुर्रहमान बर्क जैसे सपा सांसद इसे मुस्लिमों के खिलाफ जुल्म बता रहे हैं तो अतीक अहमद और उसके लोग अभी तक जो कुछ कर रहे थे‚ क्या वह समाजसेवा थीॽ क्या इन्होंने मुसलमानों की हत्याएं नहीं कीॽ उनकी संपत्तियों पर कब्जा नहीं कियाॽ अतीक अहमद पर अपने ही गुरु चांद मियां की हत्या कर माफिया का पूरा तंत्र कब्जाने का आरोप है। क्या चांद मियां मुसलमान नहीं थाॽ बेशक‚ कार्रवाई कानून के तहत होनी चाहिए।
पुलिस या प्रशासन अपराधियों की तरह बर्ताव नहीं कर सकता। अभी तक की कार्रवाई में कानून की सीमा उल्लंघन का प्रमाण नहीं हुआ है। उल्लंघन होगा तो न्यायालय देखेगा। हां‚ उमेश पाल हत्याकांड बताता है कि प्रदेश को अपराध और आतंक से मुक्त करने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। लेकिन कार्रवाई पर प्रतिक्रियाओं का संदेश यही है कि कार्रवाई और ऐसे अपराधियों और माफिया का अंत आसान नहीं है।
यहां पुलिस वालों को गोली मारी गई। पुलिस इस पर भी अपराध के संदिग्धों पर टूटेगी नहीं तो उसकी महिमा क्या रह जाएगीॽ क्या अपराधी मुस्लिम है‚ इसलिए उसकी संपत्तियां ध्वस्त नहीं होनी चाहिएॽ बर्क जैसे सपा सांसद इसे मुस्लिमों के खिलाफ जुल्म बता रहे हैं तो अतीक अहमद और उसके लोग अभी तक जो कुछ कर रहे थे‚ क्या वह समाजसेवा थीॽ क्या इन्होंने मुसलमानों की भी हत्याएं नहीं कीॽ उनकी संपत्तियों पर कब्जा नहीं किया