आम तौर पर चुगलखोर चुगली के बाद आगाही करते रहते हैं कि देखो‚ मेरा नाम न आए‚ वैसे ही नेता लोग सारे प्रपंच करने के बाद अपने लोगों को आगाही करते रहते हैं कि देखो‚ मुझ पर कोई इलजाम न आए। अब तक इसके दो ही तरीके थे कि या तो बंदा मातृ–पितृभक्त टाइप की संतान हो जाए जो सारे इलजाम अपने ऊपर ले ले या फिर पीडित ही इतना उदार हो जाए कि सारे इलजाम अपने ऊपर ले। अच्छी बात यह है कि तीसरा तरीका भी आ गया है कि इलजाम लगाने वाले को ही इलजामों में इतना घेर लो कि अपने इलजाम बिन साबुन पानी बिना धुल जाएं और इलजाम लगाने वाला इलजामों में इतना सराबोर हो जाए जैसे हुडदंगी होली से कोई शरीफ कीचड से सराबोर हो कर निकलता है।
आजकल लगता है कि राहुल गांधी हुडदंगी होली के शिकार हैं। इधर से किसी ने मारा कीचड का लौंदा फेंक कर–सपाक्! तभी उधर से आई गोबर की परात–ले बेटा! अभी कालिख वाले चेहरा मल ही रहे होते हैं कि उधर से नाली का बजबजाता कीचड आकर लगता है–धप्पाक्! पहले राहुल पर नजर रहती थी कि देखें‚ विदेश कब जाते हैं ताकि बताया जा सके कि देखो‚ विदेश भाग गए। उन्हें न जनता की परवाह है‚ न पार्टी की। और गए क्यों हैं भाई। अच्छा रिहैब के लिए गए हैं। गर्ल फ्रेंड़ का चक्कर तो नहीं है। अच्छा नानी से मिलने गए हैं‚ या मौसी से। लेकिन अब की बार विदेश गए तो न किसी ने रिहैब की सोची‚ न किसी को गर्ल फ्रेंड़ याद आई। नानी याद आई कि नहीं। अब तो देश को ही बदनाम कर आए। पहले की विदेश यात्राएं अपनी बदनामी का सबब बनती थीं‚ अब वाली देश की बदनामी का सबब हो गइ। मोदी जी विदेश जाते हैं तो देश का डंका बजाकर आते हैं‚ और यह गए तो देखो‚ बैंड बजाकर आ गए। राहुल कह रहे हैं मैं तो देश में लोकतंत्र की बात कर रहा हूं। चीन की बात कर रहा हूं‚ अडाणी की बात कर रहा हूं। चीन का नाम न आए। मोदी जी तो खुद चीन का नाम नहीं लेते। अरे लेना है तो राम का नाम लो। देखो–देखो अडाणी का नाम न आए। वे नामे के लिए हैं‚ नाम के लिए नहीं। और यह क्याॽ यह क्या कि संसद में माइक बंद कर दिए जाते हैं। एक मास्टर जी तो इससे इतने खफा हुए कि संटी उठा ली–तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यह कहने की। संस्कार नाम की चीज है कि नहीं।