लोकसभा चुनाव में भले अभी समय है,लेकिन बिहार पूरी तरह से जागृत हो गया है। अमित शाह ने सीमांचल में सभा क्या की, राज्य में रैलियों की होड़ लग गई है। इसके बाद पूर्णिया में महागठबंधन ने भी जवाबी रैली की। अब इस खेल में एआईएमआईएम और राष्ट्रीय लोक जनता दल भी शामिल हो चुके है। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी जहां अधिकार पद यात्रा निकाल रहे हैं, वहीं उपेंद्र कुशवाहा विरासत बचाओ यात्रा पर निकल चुके हैं। लेकिन राजनीतिक जगत में इस बात को ले कर हलचल है कि सीमांचल में ओवैसी की यात्रा और नालंदा में उपेंद्र कुशवाहा की यात्रा लोक सभा चुनाव को प्रभावित कर सकती है, खासतौर पर महागठबंधन की राजनीति को। ऐसा इसलिए कि इन दोनों नेताओं की यात्रा महागठबंधन के वोट बैंक पर ही चोट करेगी। माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे से बीजेपी का ये महागठबंधन पर डबल अटैक है।
सीमांचल, ओवैसी और राजनीति
बिहार वैसे ही चुनावी सरगर्मी के साथ करवट बदल रहा है। एक तरफ अमित शाह के दौरे और महागठबंधन की रैली ने तो राजनीतिक उफान ला ही दिया था। उस पर अब ओवैसी के सीमांचल दौरा ने महागठबंधन की धड़कन को तेज कर दिया है। मिली जानकारी के अनुसार असदुद्दीन ओवैसी भी बिहार के सियासी रन में कूदने की तैयारी कर चुके हैं। उनकी यात्रा को लोकसभा चुनाव 2024 से सीधे जोड़ा जा रहा है। असदुद्दीन ओवैसी बिहार के पूर्णिया और किशनगंज में 18- 19 मार्च को अधिकार पदयात्रा निकालने के दौरान मतदाताओं की प्रतिक्रिया का आकलन करेंगे। इस दौरान वो अपनी राजनीतिक स्थिति को भी जानने की कोशिश करेंगे।
क्या है ओवैसी की राजनीतिक स्थिति
दरअसल बिहार में ओवैसी ने लगातार मेहनत कर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया है। पिछले तीन उपचुनाव में अपनी उपस्थिति भर से उन्होंने महागठबंधन की परेशानी बढ़ा दी। नतीजा ये हुआ कि तीन में से दो विधानसभा सीटें बीजेपी के पास चली गईं। 2020 के विधानसभा चुनाव में तो AIMIM ने कुल पांच सीटे जीत कर हलचल मचा दी थी। हालांकि बाद में RJD ने AIMIM के चार विधायकों को तोड़ लिया। 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी ने कुल 20 उम्मीदवार उतारे थे। उनकी पार्टी को कुल 5,23,279 वोट मिले थे। सो, लोकसभा चुनाव में ओवैसी के उम्मीदवारों ने अगर अल्पसंख्यक वोटों के एक हिस्से को अपने पाले में कर लिया तो इससे बीजेपी को फायदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
उधर नालंदा में कुशवाहा वोटों पर उपेंद्र का धावा
महागठबंधन की राजनीतिक उम्मीद पर पानी फेरने के लिए राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी विरासत बचाव रैली निकाल चुके हैं। राजनीतिक सूत्रों की मानें तो कुशवाहा का मुख्य निशाना नालंदा है। वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनकी ही जमीन पर पटखनी देने की तैयारी में भी हैं। इस लिहाजा विरासत बचाओ यात्रा के दूसरे चरण में 15 मार्च को उपेंद्र कुशवाहा नालंदा की भूमि पर नीतीश कुमार के विरुद्ध राजनीति का ऐलान करने जा रहे हैं।
कितना प्रभावी होगा राजनीतिक समीकरण
हालांकि उपेंद्र कुशवाहा के नालंदा दौरे कितना प्रभाव पड़ेगा, वो तो अगले लोकसभा या फिर विधानसभा चुनाव में तय हो जाएगा। यहां एक बात जान लीजिए कि उपेंद्र कुशवाहा की नजरों में नालंदा के कोयरी वोटर है। हालांकि कोयरी समाज पूरे नालंदा में बिखरा पड़ा है। मगर कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां वे प्रभाकारी साबित होते रहे हैं। नालंदा विधानसभा क्षेत्र में तो कोयरी वोट निर्णयक भर हैं। कोयरी समाज का वोट जिसकी तरफ जाएगा, जीत उसी की होगी। नालंदा में कोयरी समाज… कुर्मी, यादव, भूमिहार के बाद चौथे नंबर पर है।
राजगीर विधान सभा में तो कोयरी समाज तीसरे नंबर पर है। जीत को फैक्टर को यहां ये मजबूती प्रदान करते हैं। अक्सर कोयरी और कुर्मी मिल कर ही जीत की दशा-दिशा तय करते रहे हैं। बिहारशरीफ की बात करें तो यहां कोयरी की संख्या कुल वोट का 2 प्रतिशत है। यहां भी इस कारण से वो चुनावी फैक्टर बनते रहे हैं।
नीतीश की ताकत पर कुशवाहा का वार
अभी तक की स्थिति तो यह है कि नालंदा में कुर्मी और कोयरी वोट पर समान रूप से नीतीश कुमार का प्रभाव रहा है। पूरे नालंदा में नीतीश कुमार की यही ताकत भी है। अब उपेंद्र कुशवाहा अपनी विरासत बचाओ यात्रा से इसे कितना प्रभावित कर पाएंगे, यह तो आनेवाले चुनाव में पता चलेगा। किंतु इतना तो तय है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री आर सी पी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के सामूहिक प्रयास से जितने भी वोट कटेंगे, वह सीधे-सीधे नीतीश कुमार के वोट बैंक को ही प्रभावित करेंगे। बहरहाल सीमांचल में ओवैसी और नालंदा में उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन के लिए मुश्किल तो बढ़ा ही दी है।
RJD से हिसाब चुकता करने की तैयारी में ओवैसी
AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान इसी कड़ी में कटिहार पहुंचे। यहां उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओ के साथ बैठक की। बैठक के दौरान असदुद्दीन ओवैसी का दौरा ही मुख्य मुद्दा था। बिहार में ओवैसी के एकमात्र और भरोसेमंद विधायक ने कहा कि सीमांचल के साथ केंद्र और राज्य दोनों सरकारें सौतेला व्यवहार। अख्तरुल ईमान ने कहा कि ‘दिल्ली और बिहार में जो सरकार बैठी है, बिहार के साथ दिल्ली की सरकार सौतेला व्यवहार कर रही है और बिहार के पटना में बैठी सरकार सीमांचल के साथ नाइंसाफी कर रही है। यहां बेरोजगारी है, पुल-पुलिया-शिक्षा-स्वास्थ्य की बदहाली है। AIMIM विधायक ने कहा कि बिहार में लालू की सरकार ,कांग्रेस की सरकार और नीतीश की सरकार रही। अगर किसी में हिम्मत है तो वो सीमांचल पर श्वेत पत्र जारी करके दिखाएं। अख्तरूल ने आरोप लगाया कि बीजेपी भी नहीं चाहती कि सीमांचल का विकास हो।
अखतरूल ईमान ने अमित शाह की रैली और गिरिराज सिंह के सीमांचल दौरे, साथ ही महागठबंधन की पूर्णिया रैली पर भी सवाल उठाए। अख्तरूल ने कहा कि ‘जब गिरिराज सिंह सीमांचल आए थे तो उन्हें यहां की मस्जिदों पर मीनार देखकर पाकिस्तान याद आया, इससे लगता है कि देश में अकलियतों को इज्जत के साथ जीने का हक नहीं है।’ उन्होंने कहा कि ‘पिछले दिनों महागठबंधन के लोगों ने भी रैलियां की, लेकिन किसी ने सीमांचल के विकास की नहीं सोची। पूर्णिया में एयरपोर्ट का मामला फंसा हुआ है, हम लोगों ने कहा कि हाईकोर्ट की एक बेंच पूर्णिया लाई जाए। तेजस्वी यादव ने कहा था कि हमारी सरकार आएगी तो सीमांचल डेवलपमेंट काउंसिल बनाएंगे, लेकिन सरकार बनी है तो वो ये वादा ही भूल गए। ‘महागठबंधन सरकार सीमांचल के लोगों से बनी है और AIMIM (RJD के तोड़े चारों विधायक) की लाश पर इनकी सरकार बनी है। सीमांचल के लोग विकास के लिए भटक रहे हैं और यह लोग पटना और दिल्ली में विकास कर रहे है।’
ओवैसी की रैली के लिए ये है तैयारी
उन्होंने कहा कि ’18 और 19 मार्च को बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल अधिकार यात्रा पर आ रहे हैं। सीमांचल के अधिकार को लेकर ओवैसी की यह रैली आयोजित की जा रही है। हमारा एक राजनीतिक दल है तो हम 2024 की चुनाव की तैयारी भी कर रहे हैं। हमारी लड़ाई उन लोगों से है जो लोग सांप्रदायिकता का ख्वाब दिखाकर सीमांचल का वोट लेते हैं, सीमांचल का टैक्स लेते हैं और सीमांचल का विकास नहीं करते हैं। कश्मीर में लोगों ने आतंकवाद से खून भी बहता देखा है, लेकिन सीमांचल में हिंदू मुस्लिम का जो मिलान है वह कहीं नहीं है।’