पश्चिमी एशियाई देश ईरान (Iran) और सऊदी अरब (Saudi Arabia) दुश्मनी भुलाकर एक बार फिर अपने राजनयिक रिश्ते बहाल कर रहे हैं. इन दोनों इस्लामिक मुल्कों के बीच शिया-सुन्नी वाली विचारधारा की भी लड़ाई थी, हालांकि अब वे एक-दूजे के यहां अपने दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हो गए हैं. दोनों ने एक-दूजे की संप्रभुता का सम्मान करने का वादा भी किया है. आइए जानते हैं इन दोनों की दुश्मनी को ‘दोस्ती’ में बदलने तक की कहानी…
2016 में टूटे थे दोनों के राजयनिक संबंध
लगभग 7 साल पहले दोनों ने अपने राजयनिक संबंध तोड़ लिए थे, और दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि अरब प्रायद्वीप में युद्ध के बादल मंडराने लगे थे. सऊदी अरब में अमेरिका पहले से पैर पैसारे हुए था, इसलिए 2017 में ईरान की तरफ से खतरे को देखते हुए अमेरिकी फौज यहां तैनात कर दी गई थी.
सऊदी अरब और ईरान में दो तरह के मुसलमानों की मेजॉरिटी है. इनमें ईरान शिया जबकि सऊदी अरब सुन्नी मुस्लिमों की मेजॉरिटी वाला देश है. दुनिया में अधिकतर मुसलमान सुन्नी हैं और वे खुद को शिया की तुलना में बेहतर मानते हैं. इसलिए इन दोनों देशों में व्यावहारिक संबंध उतने मधुर नहीं रहे. अब जबकि दोनों के प्रतिनिधियों के बीच चीन (China) ने मध्यस्थता कराई है तो इनके आपसी संबंध सुधरने के संकेत हैं.
ईरान ने की पुष्टि, सऊदी अरब खामोश
दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच चीन की राजधानी में क्या-कुछ बातें हुईं, इस पर ज्यादा बातें सामने नहीं आई हैं. हालांकि, ईरान की सरकारी न्यूज एजेंसी IRNA की रिपोर्ट में बताया गया कि ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के चीफ अली शमकहानी की चीन में अपने काउंटरपार्ट मोसेद बिन मोहम्मद अल एबान से मुलाकात हुई. इस मुलाकात के बाद हुए समझौतों की खबरों को ईरानी वेबसाइट्स ने खासा कवर किया, लेकिन ईरान की तरफ से बयान जारी किए जाने के कई घंटे बाद भी सऊदी अरब और अमेरिका ने खामोश रहे.
दोनों के बीच रिश्ते सुधरना अमेरिका के लिए ठीक नहीं!
सऊदी अरब की खामोशी के पीछे अमेरिका को माना जा रहा है. सऊदी सरकार को डर है कि चीन की वजह से हुए इस समझौते से अमेरिका नाराज हो सकता है, क्योंकि उसे इस मामले में उस सऊदी सरकार ने अंधेरे में रखा, जिसके 90% हथियार और तमाम टेक्नोलॉजी अमेरिका की ही है. सऊदी अरब को ईरान का डर सताता रहा है. सऊदी को हमेशा लगा कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार हासिल कर लिए तो वह सऊदी के लिए सबसे ज्यादा खतरा होगा. इसी डर ने सऊदी को अमेरिका के करीब लाकर खड़ा कर दिया. अमेरिका और ईरान में दुश्मनी है. ईरान और उत्तर कोरिया दुनिया के वे देश हैं, जिन्हें अमेरिका किसी भी सूरत में नहीं सुहाता.
अब इस इलाके में चीन की धमक बढ़ेगी
बरसों पुराने कट्टर दुश्मन ईरान और सऊदी अरब की ‘दोस्ती’ के मायने चीन के संदर्भ में खासा नजर आते हैं. क्योंकि, चीन में ही बीते चार दिनों से इन दोनों देशों के बीच वार्ता चल रही थी, लेकिन उसे गुप्त रखा गया था. बाद में, ईरानी मीडिया द्वारा प्रसारित फुटेज में चीनी राजनयिक वांग को दोनों देशों के इस समझदारी भरे कदम पर पूरे दिल से बधाई देते हुए सुना गया. वांग ने कहा कि चीन ईरान और सऊदी अरब के समझौते का पूरा समर्थन करता है. इस मध्यस्थता में चीन के अपने हित ज्यादा थे, क्योंकि चीन वो देश है जिसके ईरान और सऊदी अरब दोनों से अच्छे व्यापारिक रिश्ते हैं. इन दोनों में ‘दोस्ती’ कराने का श्रेय चीन को गया है, तो चीन की इस क्षेत्र में पहुंच और बढ़ेगी. उसका प्रभाव भी खासा बढ़ेगा.
दोनों देशों ने चीन को हाथों-हाथ लिया
ईरान और सऊदी अरब में बरसों का तनाव खत्म हुआ है तो यह चीन की मध्यस्थता के चलते हुआ है. इस बात को दुनिया मानेगी. ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि चीन ने हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी को आमंत्रित किया था. चीन के राष्ट्रपति शीन जिनपिंग भी रियाद गए थे और तेल समृद्ध खाड़ी अरब देशों के साथ बैठकों में भाग लिया था.