आपको देश के लगभग सभी छोटे–बड़े शहरों–महानगरों में नेताओं‚ समाजसेवियों‚ रणभूमि के वीरों वगैरह की मूरतें देखने को मिलेंगी पर इस मोर्चे पर भी आधी दुनिया के साथ बड़ा अन्याय हुआ है। उनकी मूरतें आपको बहुत कम देखने को मिलती हैं। आपको झांसी की रानी लक्ष्मी बाई की अश्वारोही प्रतिमा कई शहरों में मिलेगी। आपने इन्हें देखकर अवश्य मुग्ध होकर निहारा होगा। रानी का घोड़ा दो पैरों पर खड़ा है। राजधानी दिल्ली और ग्वालियर के अलावा भी कई शहरों में रानी झांसी की मूरतें हैं। हवा में प्रतिमा तभी रहेगी जब संतुलन के लिए पूंछ को मजबूत छड़ से गाड़ दिया जाए‚ यह बात इसे बनाने वाले मूर्तिकार सदाशिव साठे समझते थे। सदाशिव साठे अश्वारोही प्रतिमाएं गढ़ने में सिद्धहस्त थे। उन्होंने रानी झांसी की कई शहरों में लगी मूरतें बनाई थीं।
महात्मा गांधी ने १२ मार्च‚ १९३० को दांडी मार्च शुरू किया था। उसी सत्याग्रह की याद में देश की राजधानी के सरदार पटेल मार्ग–मदर टेरेसा क्रिसेंट पर महान मूर्तिकार देवीप्रसाद रायचौधरी की अप्रतिम कृति ‘ग्यारह मूर्ति’ स्थापित है। यह स्थान राष्ट्रपति भवन के ठीक बगल में है। ग्यारह मूर्ति में बापू के साथ मातंगीनी हजरा और सरोजिनी नायडू को भी दिखाया गया है। मातंगीनी हजरा महान क्रांतिकारी थीं। गोरी सरकार की पुलिस ने २९ सितम्बर‚ १९४२ को बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले में उन्हें गोली मार दी थी। सरोजिनी नायडू गांधी जी के साथ नोआखली में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए भी गई थीं। वो उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल भी बनीं। ग्यारह मूर्ति में गति और भाव का शानदार समन्वय देखने को मिलता है। संसद भवन के गेट नंबर पांच पर इंदिरा गांधी की १६ फीट >ंची कांस्य की प्रतिमा २७ जनवरी‚ १९९६ को स्थापित की गई थी। इसे महान मूर्तिकार राम सुतार ने बड़े मन से तैयार किया था। आपको संसद भवन में ही कर्नाटक के कित्तूर की रानी चेन्नम्मा की भी प्रतिमा मिलती है। रानी चेन्नम्मा ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ अपनी सेना बनाकर लड़ी थीं। उन्हें दक्षिण भारत की झांसी की रानी कहा जाता है। उनकी मूरत ११ सितम्बर‚ २००७ को संसद भवन में स्थापित हुई थी।
इन्हें छोड़कर देश के अधिकतर शहरों में महान महिलाओं की मूरतें नहीं मिलतीं। राम सुतार को भी हैरानी हुई कि देश में आधी दुनिया की शख्सियतों की मूर्तियां क्यों नहीं बनीं और क्यों नहीं स्थापित हुइ। उत्तर प्रदेश में मायावती ने कई शहरों में अपनी मूरतें जरूर लगवाइ। उनको लेकर तगड़ा बवाल भी हो चुका है। वैसे मदर टेरेसा की एक मूरत कोलकाता के आर्क बिशप हाउस में है।
हो सकता है कि किसी इमारत या संस्थान के परिसर में किसी अन्य मशहूर महिला की मूरत स्थापित हो पर सार्वजनिक स्थलों पर ये कभी–कभार ही देखने को मिलती हैं। आपको राजधानी के लेडी होडिंग मेडिकल कॉलेज में मिलेगी ‘माता जी’ की आदमकदमूर्ति। कभी लेडी होडिंग मेडिकल कॉलेज के अंदर जाइए। इधर एक महिला की बड़ी सी मूरत स्थापित है। इन्हें देखकर लगता है कि ये यहां की गतिविधियों पर पैनी नजर रख रही हैं। इस मूरत को लेडी होडिंग मेडिकल कॉलेज बिरादरी माता जी कहती है। माता जी के चेहरे–मोहरे को देखकर समझ आ जाता है कि यह किसी विदेशी महिला की प्रतिमा है। दरअसल‚ यह लेडी होडिंग की प्रतिमा है। उन्हीं के प्रयासों से ७ फरवरी‚ १९१६ को यह मेडिकल कॉलेज शुरू हो गया था। लेडी होडिंग ने इसकी नींव १७ मार्च‚१९१४ को रखी थी। लॉर्ड होडिंग ने २५ अगस्त‚१९११ को शिमला से ब्रिटिश सरकार को भेजे एक पत्र में लिखा था–‘ब्रिटेन का कलकत्ता (आज का कोलकाता) की तुलना में दिल्ली को राजधानी बनाकर राज करना बेहतर विकल्प होगा।’ उन्हीं की सिफारिश पर दिल्ली देश की राजधानी बनी थी।
देवी अहिल्याबाई होलकर कौन थींॽ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ साल पहले बनारस में काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करते हुए इंदौर की देवी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा स्थापित की थी। देवी अहिल्याबाई की प्रतिमा संसद भवन में २००६ में स्थापित हुई थी। उनकी दिल्ली में भी उपस्थिति है। कनॉट प्लेस के पास पंचकुइयां रोड पर एक सड़क का नाम अहिल्याबाई होलकर मार्ग रख दिया गया है। देवी अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में अनेक मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि वो १७८० में अपनी कुरु क्षेत्र तीर्थयात्रा के दौरान राजधानी दिल्ली भी आई थीं। आप राजधानी में रिजर्व बैंक बिल्डिंग के बाहर यक्ष–यक्षी की मूरतें देखेंगे। इन्हें रामकिंकर बैज ने बनाया था। किंकर आधुनिक भारतीय मूर्ति कला के जनक कहे जाते हैं। उन्होंने बड़े ही मन से इन्हें तैयार किया था। इन प्रतिमाओं को तैयार करने के लिए पत्थर लेने उन्होंने कई हफ्ते हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ नाम के स्थान की खाक छानी थी। अब यक्ष और यक्षी को लगे आधी सदी हो रही है। ये १९७० में स्थापित हुई थीं।