एक तरफ जलती चिताएं…रोते-बिखलते मातम मनाते लोग। दूसरी तरफ…डीजे की धमक और अबीर-गुलाल के साथ चिता की राख से होली खेलते हुए नॉनस्टाप डांस। कोई गले में नरमुंड की माला पहनकर तांडव कर रहा है, तो कोई दांतों तले जिंदा सांप दबाकर नाच रहा है। रंग और राख से सराबोर झूमते-गाते विदेशी पर्यटक। शनिवार को यह नजारा था काशी के मणिकर्णिका श्मशान घाट का। यहां मसाने की होली खेली गई।
शनिवार सुबह 10 बजे शुरू होली शाम 6 बजे तक नॉनस्टॉप चलती रही। पांच लाख से ज्यादा लोगों ने बाबा विश्वनाथ का गौना कराकर मसाने की होली खेली।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब भोलेनाथ माता पार्वती को गौना करा कर वापस ले जा रहे थे। तब भगवान शिव के गण और देवता फूल और रंगों से होली खेल रहे थे। लेकिन शमशान में बाबा के परम भक्त अर्थात भूत-प्रेत और अघोरी इस खुशी से वंचित रह गए। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह अगले दिन गाजे-बाजे के साथ उनका दुख दूर करने के लिए शमशान पहुंच गए और जलती चिताओं के बीच राख से होली खेली। आज भी उस परंपरा उसी हर्षोल्लास के साथ पूरी की जाती है।
आमतौर पर मणिकर्णिका घाट पर लोग अपने परिजन को अंतिम विदाई देते हुए नजर आते हैं। लेकिन आज के दिन इस घाट का अलग ही नजारा देखने को मिलता है। यहां भगवान शिव के भक्त चिताओं के बीच झूमते हुए और नाचते-गाते चिता की भस्म से होली खेलते हैं।
मसाने की होली का महत्व (Masane ki Holi Importance)
हिंदू धर्म में काशी को मोक्ष की नगरी के रूप में जाना जाता है। वहीं आज के दिन शमशान घाट में खेली गई इस होली का महत्त्व भी बहुत अधिक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां चिता की राख से खेली गई होली से मृत्यु का भय दूर हो जाता है। साथ ही मसाने की होली खेलने से बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है और सभी प्रकार की तांत्रिक बाधाएं दूर हो जाती है।
Holi 2023: काशी में भस्म की होली का रंग शनिवार को देखने को मिला. धधकती चिताओं के बीच अड़भंगी अंदाज में लोग महादेव से होली खेलते नजर आए. ये कई सौ साल पुरानी चिता भस्म परंपरा चली आ रही है.
महादेव की नगरी काशी में ऐसी अनोखी होली का रंग देखने को मिलता है. धधकती चिताओं के बीच महाश्मशान पर होली खेलने का अड़भंगी अंदाज शनिवार को देखने को मिला.
यहां के लोग महादेव से होली खेलते नजर आए. शनिवार को तकरीबन कई सौ साल पुरानी चिता भस्म की होली की परम्परा को निभाने काशीवासियों का हुजूम महाश्मशान मर्णिकर्णिका घाट पर उमड़ पड़ा.
धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेली. इस मौके पर यूपी सरकार की तरफ से सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये गए. एक तरफ चिताएं धधकती रहीं तो दूसरी ओर बुझी चिताओं की भस्म से जमकर साधु-संत और भक्त होली खेलने में रमे रहे.
ढोल, मजीरे और डमरुओं की थाप के बीच लोग जमकर झूमेंगे और हर-हर महादेव के उद्घोष से महाश्मशान गूंजता रहा. शिव के गण यक्ष, गंधर्व, किन्नर, औघड़ सब महाश्मशान पर चिताओं के भस्म की होली खेलने पहुंचे.
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के पास स्थित इस महाश्मशान पर इस ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं वाली विश्व की अनूठी होली को कैमरों के कैद करने की होड़ मच गई.
शिव-पार्वती के स्वरूप के साथ पहुंचे भोलेनाथ के गणों ने चिताओं की भस्म से होली खेलनी शुरू कर दिया. संगीत की धुनों पर थिरकते अड़भंगी के काशी के लोग चिता भस्म को शरीर पर लपेटे जा रहे थे. अद्भुत और अलौकिक होली.
आध्यात्म की गहराईयों का अहसास कराती यह होली दूर दराज के शवयात्रा में आये लोगों को अजीब भी लग रही थी. आश्चर्य हो रहा था कि जहां लाशों के ढेर लगे हों, अपनों के खोने के गम में डूबे परिजन उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
ऐसे में हंसना और नाचना कितना मुश्किल है और यहां तो उन्हीं चिताओं की भस्म लपेटकर लोग होली मना रहे हैं. एक ओर मौत का मातम और दूसरी ओर होली की मस्ती. सबकुछ एक ही जगह और एक साथ. कोई भूत बनकर पहुंचा है तो कोई औघड़.
किन्नर समाज भी नृत्य में मगन है. काशी के साधु-संतों भी इस दिव्य होली में शामिल हुए. संगीत की धुनों पर काशीवासी नृत्य कर रहे थे, डमरूओं के निनाद गूंज रहे थे और रह-रहकर काशीपुराधिपति, महादानी भोलेनाथ की आध्यात्मिक होली पर पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र के गाये गीत ह्यखेले मसाने में होली दिगम्बर, भूत पिशाच बटोरीह्य पर भक्त मस्ती के सागर में गोते लगा रहे थे.
चिता भस्म की इस होली के आयोजक महाश्मशान नाथ मंदिर के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता, सतुआ बाबा आश्रम के महामंडलेश्वर संतोष दास, व्यवस्थापक गुलशन कपूर आदि व्यवस्था की कमान सम्भाले हुए थे.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे.
तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर और दूसरे जीव-जंतुओं के साथ ये खुशी नहीं मना पाए थे. तब रंगभरी एकादशी के ठीक एक दिन बाद उन्होंने श्मशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी. तब से ही इस प्रथा की शुरूआत मानी जाती है.