हमारे देश में पर्व–त्योहार और उत्सव बहुलता से मनाए जाते हैं। ये हमारे जीवन में उल्लास और उत्साह लाते हैं। प्रमुख पर्व चार हैं–होली‚ रक्षाबंधन विजयादशमी और दीपावली। इन सभी के पीछे कोई न कोई पौराणिक गाथा तो है ही‚ साथ ही इनके स्वास्थ्यविषयक और मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। होली के समय शीत की लहर कम हो जाती है‚ प्रकृति में चारों ओर उल्लास छाया होता है। नई फसल पकने लगती है। भारतीय संस्कृति यज्ञप्रधान है। कृषि प्रधान‚ आस्तिकता से परिपूर्ण इस देश में संस्कृति के अनुरूप ही परिपाटी बनाई गई है। खेतों में पकने वाला यह नया अन्न सर्वप्रथम यज्ञ भगवान को समर्पित किया जाता है। इस प्रकार यह यज्ञीय पर्व है। हम सामूहिक यज्ञ के रूप में होली जलाकर‚ सर्वप्रथम नये अन्न को उपयोग से पहले यज्ञ भगवान को समर्पित करते हैं।
होली के पर्व के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का शक्तिशाली राक्षस था। वह स्वयं भगवान विष्णु का शत्रु था‚ परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेक प्रकार से समझाया पर उसने विष्णु की भक्ति न छोड़ी। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को‚ प्रह्लाद को अग्नि में भस्म करने का कार्य सौंपा। होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान मिला था। होलिका स्वयं जल गई भक्त प्रहलाद का बाल बांका न हुआ। हिरण्यकश्यप जब उसे मारने दौड़ा तो नृसिंह भगवान ने प्रकट होकर राक्षस को मार डाला। यह कथा प्रेरणा देती है कि सत्यमार्ग पर चलने वाले की प्रभु स्वयं रक्षा करते हैं।
होली का पर्व प्रमुख रूप से दो दिन का होता है। पहले दिन होलिका पूजन होता है। दूसरे दिन एक दूसरे से प्रेभ भाव से मिलते हैं‚ आपस में गुलाल लगाते हैं। अन्य पर्वों की भांति होली के पर्व के साथ भी अनेक कुरीतियां जुड़ गई हैं। लोकसेवियों का कर्त्तव्य है कि अपने प्रभाव‚ प्रयास‚ पुरु षार्थ और सूझ–बूझ से उन्हें दूर करें। पर्व को प्रभावशाली‚ प्रेरणास्पद और प्रेरक रूप में ही मनाया जाए। पर्व मनाने के लिए पहले से ही रूपरेखा बना लेनी चाहिए। सूर्यास्त के बाद किसी निर्धारित देवस्थल पर सभी एकत्रित हों और पंक्ति बनाकर बैठें। पूजन के लिए आकर्षक मंच हो। उस पर सामान्य पूजन सामग्री के साथ नृसिंह भगवान का चित्र भी हो। समता देवी के पूजन के लिए चावल की तीन ढेरियां तथा मातृभूमि के पूजन के लिए मिट्टी का छोटा ढेला रखें। नवान्न पूजन के लिए गेहूं की बालें रखी जाएं। अन्य यज्ञों की भांति इस यज्ञ का भी विधान है। यज्ञ के बाद जो विशेष कृत्य है‚ वह है–क्षमावाणी का ध्यान रहे। होली समता का पर्व है। इस अवसर पर छोटे–बड़े‚ ऊँच–नीच‚ शत्रु–मित्र आदि सबका भेद मिटाकर सबसे अपने अपराधों की क्षमा मांगनी चाहिए। पर्व को मनाने के लिए सामूहिक पर्व पूजन के लिए सायंकाल का समय सबसे उपयुक्त है। आयोजन में संगीत एवं प्रेरणास्पद उद्बोधन बहुत आवश्यक है। उद्बोधन में परिजनों से अपने अपराधों‚ दुष्कर्मों के लिए क्षमा मांगने‚ भविष्य में यह भूल पुनः न दोहराने‚ अपनी भूलों के लिए पश्चात्ताप करने‚ समता के भाव पैदा करने की प्रेरणा देनी चाहिए। यह क्षमा देने का भी पर्व है। यदि किसी ने हमारे प्रति कोई अभद्रता की हो तो उसे क्षमा कर देने का यह शुभ अवसर है। यज्ञ की अग्नि से ही होलिका दहन करना चाहिए। होलिका दहन में अश्लील चित्र और साहित्य आदि जला देने चाहिए। जिन्होंने ये दिए हैं‚ उन्हें अच्छे चित्र और सद्वाक्य भेंट किए जाएं। पर्व के चंदे और पूजन के चढ़ावे से यह काम हो सकता है। होलिका दहन के दूसरे दिन एक दूसरे पर रंग डालने की प्रथा है। पहले टेसू के फूलों का रंग डाला जाता था। यह त्वचा को रोगों से बचाता था। ऋतु–परिवर्तन के समय प्रायः त्वचा रोगों की संभावना रहती है। इसलिए इसका प्रयोग किया जाता था । प्राकृतिक रंगों तथा वस्तुओं का प्रयोग हितकारी होता है। ऐसी अनेक वस्तुएं तथा प्राकृतिक रंग हैं‚ जिनका होली में रंगों के लिए प्रयोग कर सकते हैं। जैसे–हल्दी‚ चुकंदर‚ हार–सिंगार के फूल‚ चंदन आदि । होली में अच्छे गुलाल का प्रयोग करना चाहिए। सस्ते–खराब गुलाल में शीशा की मात्रा अधिक होती है‚ जो नुकसान करती है। कृत्रिम रंग भी त्वचा के लिए हानिकर हैं। आंखों–बालों आदि को भी हानि पहंच सकते हैं। कुछ लोग इस दिन धूल कीचड़ भी उछालते हैं‚ जो अनुचित है। इसे सामूहिक सफाई का रूप दिया जा सकता है। गंदगी की अरथी निकालने‚ सामूहिक जुलूस आदि से भी इस कुप्रथा को मोड़ा जा सकता है। कहीं–कहीं नशे–भांग आदि का भी प्रयोग किया जाता है‚ इस बुराई से तो सभी प्रकार से बचना ही चाहिए। होली का अर्थ है–होली अर्थात जो हुआ वह हुआ। अब मनमुटाव भुलाकर आगे बढ़ें। मन को स्वच्छ और विचारों को कलुषता रहित बनाएं। सबसे भाईचारे का व्यवहार करें। मनुष्य संवेगों का पुतला है‚ हर समय व्यक्ति का मूड अच्छा ही नहीं होता। किसी अन्य कारण से तनावग्रस्त व्यक्ति किसी को कुछ कह दे तो उसे क्षमा कर देना चाहिए और उस व्यक्ति को भी बाद में क्षमा मांग लेनी चाहिए। अहंकारवश अब तक ऐसी मानसिकता न बनी हो तो यह होली का पर्व पुरानी बातों को भूलने‚ क्षमा मांगने और क्षमा करने का पर्व है। होलिका की अग्नि में इन सब बुराइयों को भस्म कर देना चाहिए।
वस्तुतः होली राष्ट्रीय चेतना के जागरण का पर्व है। इसमें सभी वर्ग को महत्व देकर समता के सिद्धांत को चरितार्थ किया जाता रहा है। जहां वर्गभेद है‚ वहां सभी साधन होते हुए भी क्लेश और अशक्तता रहेगी। जहां भाईचारे और सहकार की भावना है‚ वहां कम साधनों में भी समाज प्रसन्न और अजेय रहेगा। इसलिए इसे समता का पर्व भी मानते हैं। ईश्वर की सृष्टि में सभी एक समान हैं–जाति–वंश‚ छोटे–बड़े का कोई भेदभाव नहीं। होली का पर्व हमें यह सिखाता है।