जी20 की बैठक में भाग लेने के लिए पधारे विदेश मंत्रियों की बैठक में रूस यूक्रेन युद्ध की छाया लगातार मंडराती रही और अंततः सिवाय संवाद के कुछ भी ठोस हासिल न हुआ। इस बैठक से कुछ लोग बहुत उम्मीद लगाए हुए थे और यूक्रेन जैसे देश को तो खास उम्मीदें थीं, पर अमेरिका और रूस के विदेश मंत्री बैठक में तो आए, लेकिन किसी समाधान पर नहीं पहुंच सके। इस दौरान जितनी भी द्विपक्षीय वार्ताएं हुई हैं, उन सब में युद्ध अहम मसला रहा है। यहां तक की भारतीय विदेश मंत्री से भी जिन नेताओं की मुलाकात हुई है, लगभग सभी में युद्ध पर बात हुई है। मोटे तौर पर यही लगता है कि जी20 देशों के विदेश मंत्री किसी एक बात पर सहमत नहीं हुए, हालांकि उनकी परस्पर द्विपक्षीय बातचीत ज्यादा सकारात्मक रही है। आलोचक यह बोल सकते हैं कि जी 20 का मकसद दुनिया के ताकतवर देशों को मिलकर चलने के लिए प्रेरित करना है, लेकिन इस दिशा में भारत में हुई बैठक अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है।
जहां तक अमेरिका और भारत की वार्ता का संबंध है, तो अमेरिकी विदेश मंत्री से मानवाधिकार संबंधी प्रश्न भी पूछे गए हैं, जिन पर उनका जवाब भारत के पक्ष में रहा है। अमेरिका अभी भारत को किसी भी तरह की प्रतिकूलता में डालना नहीं चाहता है। उसे पता है कि भारत में मजबूत लोकतंत्र है और भारत को शालीनता के साथ साथ लेकर
चला जा सकता है। अर्थव्यवस्था व सहयोग के तमाम क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच नए सिरे से बातचीत हुई है। ब्लिंकन और जयशंकर ने यूक्रेन में रूस के अवैध युद्ध के वैश्विक प्रभावों को कम करने, इंडो- पैसिफिक में द्विपक्षीय सहयोग
बढ़ाने, क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसीईटी) और क्षेत्रीय मुद्दों पर पहल शुरू करने पर भी चर्चा की। भारत जिस तरह से जी20 को लेकर महत्वाकांक्षी है, उससे अमेरिका भी इत्तफाक रखता है और वह चाहता है कि विश्व स्तर पर भारत अपनी भूमिका बढ़ाए। परमाणु युद्ध रोकने में भी भारत की भूमिका रही है, जिसे अमेरिका खुले मन से स्वीकार कर चुका है। अब जब रूस परमाणु संधि से पीछे हट चुका है, तब तो भारत की भूमिका और बड़ी हो गई है। रूस अगर ज्यादा आक्रामक होता है, तो इससे वास्तव में भारत को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अतः नई दिल्ली को जी20 के मंच से ज्यादा मुखर प्रयास करने चाहिए।
जी20 में भारत की अध्यक्षता की राह आसान नहीं है। भारत यह चाहता है कि विकसित देश विकासशील देशों के सामने आने वाली आर्थिक और अन्य चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करें, लेकिन यह भी आसान नहीं है। ज्यादातर देश अभी द्विपक्षीय संबंधों के भरोसे ही आगे बढ़ना चाहते हैं। भारत आए विदेश मंत्रियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर एक बार भारत की जी20 अध्यक्षता की थीम एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की पैरवी की है। भारत यह चाहता है कि जी20 के देश साझा मकसद हासिल करने पर ज्यादा ध्यान दें। इन देशों के बीच जो परस्पर विभाजन है, उससे उबरने पर ज्यादा ध्यान देने के बजाय साझा समस्याओं के समाधान पर ज्यादा गौर किया जाए। हालांकि, इस बार यह नहीं हो पाया। पश्चिमी देश एक तरफ थे, तो चीन-रूस दूसरी तरफ, आम सहमति बनाने की भारत की कोशिश नाकाफी रही। कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका है।