रूस-यूक्रेन के युद्ध को आज एक साल पूरे हो गए. 24 फरवरी 2022 ही वही दिन था, जब पहली बार रूस की सेना यूक्रेन की सीमा में दाखिल हुई और तब से लेकर आज तक वहां जंग का माहौल है. यूक्रेन में महिला और बच्चों समेत हजारों लोग मारे जा चुके हैं. देश का अधिकांश हिस्सा रूसी गोलाबारी में तबाह हो गया है. ऐसा नहीं है कि इस युद्ध को रोकने के प्रयास नहीं किए जा रहे. भारत और कुछ अन्य देशों से शुरू से ही रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता की पैरवी की है.
पीएम नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर कहा है कि युद्ध किसी बात का हल नहीं है और इसे शांति की मेज पर बैठकर हल किया जाना चाहिए. हालांकि, कुछ पश्चिमी देशों की तरफ से आने वाले भड़काऊ बयानों ने आग में घी का भी काम किया है. लेकिन अब एक और देश चीन जो कि रूस का बेहद खास है, ने भी भारत के नक्शेकदम पर चलते हुए पीएम मोदी की बात को दहराया है. इतना ही नहीं, यूक्रेन पर जब कभी रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास हुआ, तो वहां भी भारत और चीन साथ-साथ दिखे और वोटिंग से दूर रहे.
चीन ने रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को समाप्त कराने के लिए 12 सूत्री प्रस्ताव के तहत दोनों देशों के बीच संघर्षविराम एवं शांति वार्ता का आह्वान किया है. चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा शुक्रवार सुबह जारी की गई योजना में रूस पर पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों को समाप्त करने, आम नागरिकों की निकासी के लिए मानवीय गलियारों की स्थापना करने और अनाज निर्यात सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का भी आग्रह किया गया है.
चीन ने इस युद्ध में तटस्थ होने का दावा किया है, लेकिन रूस के साथ उसके संबंध गहरे हैं और उसने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की आलोचना नहीं की है. इसके बजाय उसने पश्चिमी देशों पर संघर्ष के लिए उकसाने और यूक्रेन को रक्षात्मक हथियार प्रदान कर ‘आग भड़काने’ का आरोप लगाया है.
शांति प्रस्ताव में सभी देशों की ‘संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता की प्रभावी रूप से गारंटी’ दिए जाने की आवश्यकता का भी जिक्र किया गया है. चीन ने ‘शीतयुद्ध की मानसिकता’ का अंत करने का भी आह्वान किया है. बीजिंग ऐसे शब्दों का इस्तेमाल अन्य देशों में अमेरिकी हस्तक्षेप एवं आधिपत्य के लिए करता रहा है.