केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्में ‘ऐसी कंपनियों के बारे में रिसर्च करती हैं, जिनके बारे में उनका मानना है कि उनसे शासन और / या वित्तीय मुद्दे जुड़े हैं,’ और फिर रिपोर्ट प्रकाशित करती हैं, जिसने शेयरों और बॉन्ड की बिक्री का दौर शुरू हो सकता है. बाज़ार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, यानी SEBI अब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडाणी ग्रुप पर लगाए गए आरोपों के साथ-साथ रिपोर्ट से पहले और बाद की बाज़ार गतिविधियों की भी जांच कर रहा है.
केंद्र की ओर से अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद में यह पहला बयान है. इस विवाद के चलते निवेशकों के कई लाख करोड़ रुपये नदारद हो गए हैं, और बड़े पैमाने पर एक राजनैतिक विवाद खड़ा हो गया है.
केंद्र की यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के पिछले शुक्रवार के एक आदेश के जवाब में दायर की गई. भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए नियामक तंत्र स्थापित करने समेत कई मुद्दों पर वित्त मंत्रालय और अन्य से इनपुट मांगा था.
शीर्ष अदालत में पेश की गई रिपोर्ट में केंद्र ने कहा, “यह कहा जा सकता है कि हिंडनबर्ग अमेरिका की कई कंपनियों के बीच एक ऐसी शॉर्ट सेलर रिसर्च कंपनी है, जो उन कंपनियों पर रिसर्च करती है, जिनके बारे में उनका मानना है कि उनसे प्रशासन और / या वित्तीय मुद्दे जुड़े हैं. उनकी रणनीति बॉन्ड / शेयरों की खरीद की होती है. ऐसी कंपनियां प्रचलित कीमतों पर (वास्तव में उन्हें भौतिक रूप से खरीदे बिना) बॉन्ड / शेयर खरीदती हैं, और फिर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करती हैं. यदि बाज़ार रिपोर्ट पर भरोसा करते हैं, तो बॉन्ड / शेयरों की कीमतें गिरना शुरू हो जाती हैं…”
रिपोर्ट के मुताबिक, “एक बार गिरावट शुरू हो जाने के बाद, अन्य संस्थान, जिनके पास ‘स्टॉप लॉस लिमिट’ है, वे भी बॉन्ड / शेयरों की होल्डिंग बेचना शुरू कर देते हैं, भले ही वे रिपोर्ट पर विश्वास करें या नहीं, और इस तरह दरअसल वे बॉन्ड / शेयरों की कीमतों में गिरावट को ट्रिगर करते हैं… तब शॉर्ट सेलर कम कीमत पर बॉन्ड / शेयर खरीदकर लाभ कमाते हैं… बाज़ार जितना ज़्यादा उनकी रिपोर्ट पर भरोसा करता है, ‘स्टॉप लॉस लिमिट’ उतना ही ज़्यादा शुरू हो जाता है, और बॉन्ड / शेयरों की कीमतें उतनी ही गिरती हैं, और उतना ही ज़्यादा वे पैसा बनाते हैं…
केंद्र ने कहा, “चूंकि मामला जांच के प्रारंभिक चरण में है, इसलिए इस स्तर पर चल रही कार्यवाही के विवरण को सूचीबद्ध करना उचित नहीं होगा…”
SEBI द्वारा जांचे जा रहे संभावित उल्लंघनों में धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रक्रियाएं, इनसाइडर ट्रेडिंग, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक नियम, ऑफशोर डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट नियम और शॉर्ट सेलिंग नियम शामिल हैं.
केंद्र सरकार ने कहा, “जिस समूह के बारे में बात की जा रही है, उसकी हाल ही में किए गए दो अधिग्रहणों के अलावा भी देश में कई सूचीबद्ध कंपनियां हैं… उस वक्त, जब समूह की कंपनियों की शेयरों की कीमतों में खासी बढ़ोतरी हुई थी, शेयरों की कीमतों में खासे उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया SEBI का ASM फ्रेमवर्क कई मौकों पर, लम्बी-लम्बी अवधि के लिए, शुरू हुआ… यह फ्रेमवर्क शेयरों में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम के संदर्भ में निवेशकों को सलाह देता है…”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “यह भी ध्यान देना चाहिए कि समूह के कई अमेरिकी डॉलर वर्ग के बॉन्ड हैं, जो विदेशी बाज़ारों में सूचीबद्ध हैं… हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि समूह में इसकी शॉर्ट पोज़ीशन विदेशी बाज़ारों और गैर-भारतीय ट्रेडेड डेरिवेटिव में अमेरिकी डॉलर बॉन्ड में हैं…”
हिंडनबर्ग रिसर्च की 24 जनवरी की रिपोर्ट में अडाणी समूह पर अकाउंटिंग धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद से की ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई.
आरोपों को खारिज करते हुए अडाणी एंटरप्राइज़ेज़ ने कहा था कि अमेरिकी फर्म की यह हरकत ‘सुनियोजित प्रतिभूति धोखाधड़ी से कम नहीं है…’
बयान में कहा गया था, “यह केवल एक खास कंपनी पर अवांछित हमला नहीं है, बल्कि भारत, भारतीय संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता और गुणवत्ता और भारत की विकास की कहानी और महत्वाकांक्षा पर सुनियोजित हमला है…”
बयान के मुताबिक, “हिंडनबर्ग ने रिपोर्ट को परोपकारी कारणों से नहीं, विशुद्ध रूप से स्वार्थी उद्देश्यों से और लागू प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा कानूनों के खुले उल्लंघन में प्रकाशित किया है… रिपोर्ट न ‘स्वतंत्र’ है, न ‘उद्देश्यपूर्ण’, और न ही ‘अच्छी रिसर्च की गई…'”