हाल के दिनों में प्रश्न–पत्र लीक होने की अनेकानेक घटनाएं सामने आई हैं। कभी बिहार तो कभी राजस्थान तो कभी उत्तराखंड़। इनके अलावा‚ कई अन्य राज्यों में भी यह खबर सुर्खियां बनी कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा और स्कूल–कॉलेज की परीक्षा के प्रश्न पत्र पहले ही विद्यार्थियों के पास पहुंच गए यानी प्रशासनिक अमला फिसड्ड़ी साबित हुआ। तभी तो इस तरह की घटनाएं सामने आने लगीं।
वैसे‚ सरकार ने अब तक ऐसा कोई आंकड़़ा जारी नहीं किया है कि सबसे ज्यादा प्रश्न–पत्र लीक होने की घटना किस सूबे में घटी हैं‚ मगर खबरों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार‚ राजस्थान और उत्तर प्रदेश में इस तरह के धत्कर्म देश में सबसे ज्यादा होते हैं। मगर इस ‘पाप’ के खिलाफ सबसे सख्त रुख उत्तराखंड़ की सरकार ने दिखाया है। उत्तराखंड़ में भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न–पत्रों की छपाई से लेकर परिणाम प्रकाशित करने तक में कदाचार करने वालों को अब अधिकतम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है‚ और उन पर १० करोड़़ रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा‚ ऐसे काम से अर्जित कमाई से जुटाई गई उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली जाएगी। राज्यपाल के इस अध्यादेश को मंजूरी देने के बाद से उम्मीद बंधती है कि सैकड़़ों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़़ करने वाले अब बच नहीं सकते हैं। दरअसल‚ परीक्षा में धांधली और नकारा लोगों को नौकरी में खपाने की यह साजिश वर्षों से जारी है। हलचल मचने पर शुरुआत में कुछ लोगों को गिरफ्त में भले ही ले लिया जाता है‚ किंतु बड़़ी मछलियां अक्सर पकड़़ से बाहर रह जाती हैं। उत्तराखंड़ सरकार की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। बाकी राज्यों को भी उत्तराखंड़ की तर्ज पर यह नियम बिना समय गंवाए लागू कर देना चाहिए।
बेरोजगारी देश की सबसे बड़़ी समस्या है। कायदे से तो केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। कहना न होगा कि यह राष्ट्रीय समस्या है। चुनांचे इस मसले को राष्ट्रीय स्तर पर ही हैंड़ल करने की महती जरूरत है। अदालत को भी स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। यह मसला लाखों लोगों की किस्मत तय करने सरीखा है। लिहाजा‚ उत्तराखंड़ सरकार की संवेदना का सम्मान जरूरी है। सख्ती ऐसी हो जो बेईमानों के लिए नजीर बने।