गाली सुनना, अपमान सहना और पिटना बिहार के लोगों की नियति रही है। पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में बिहारियों के साथ बदसलूकी की घटनाएं आम हैं। इतना ही नहीं, प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने दूसरे राज्यों में जाने वाले बिहारी लोगों के साथ दुपर्व्यवहार भी सामान्य बात है। हद की इंतेहा कहें कि अब अपने ही सूबे में अफसरों की गाली बिहार के लोगों को सुननी पड़ रही है। इन पर कार्रवाई की बात तो दूर, बिहार के सीएम नीतीश कुमार ऐसे गालीबाज अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के बजाय अब तक उन्हें बचाते रहे हैं।
साल 2005 से ही बेलगाम हो गयी है बिहार की ब्यूरोक्रेसी
बिहार की ब्यूरोक्रेसी तो 2005 से ही बेलगाम है। आम आदमी का कोई भी काम बिना रिश्वत के बिहार में कहीं भी हो पाना संभव नहीं। सरकार की योजनाओं का लाभ लेने के लिए सरकारी अफसर बिना रिश्वत सीधे मुंह बात नहीं करते। उन्हें न सरकार का भय है और न विभाग का। इसका जीता जागता उदाहरण सरकारी बाबुओं की अकूत कमाई है, जिस पर समय-समय निगरानी विभाग या विशेष आर्थिक इकाई के छापे पड़ते हैं। ताजा मामला होमगार्ड की डीजी शोभा अहोतकर का है। डीआईजी रैंक के अफसर और साफ छवि वाले बिहार के चर्चित आईपीएस विकास वैभव ने आरोप है कि उनकी सीनियर अफसर डीजी अहोतकर ने उन्हें बिहारी कह कर गालियां दीं। गाली से आहत वैभव लंबी छुट्टी पर चले गये हैं। अब तो चर्चा यह भी है कि वैभव वीआरएस लेने की तैयारी में हैं।
सीएम नीतीश कुमार ने वैभव की उम्मीद पर पानी फेरा
ताजा प्रकरण तब सामने आया था, जब विकास वैभव ने शोभा अहोतकर की गाली से तंग आकर ट्वीट के जरिये अपनी पीड़ा का इजहार किया। ब्यूरोक्रेसी के नखरे और मनमानी से तबाह आम आदमी की सहानुभूति विकास वैभव के साथ है, लेकिन अहोतकर पर कार्रवाई का जिम्मा सरकार के मुखिया जिस नीतीश कुमार पर है, उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया है। उल्टे उन्होंने वैभव को ही प्राइमाफेसी दोषी करार दिया है कि उन्होंने विभागीय परेशानी को ट्वीट के जरिये सार्वजनिक क्यों किया। हालांकि इसके पहले ही वैभव ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया था। वैभव पूरे प्रकरण से इतने दुखी हुए हैं कि उन्होंने दो महीने की छुट्टी ले ली है और पारिवारिक समारोह में शिरकत करने सिलीगुड़ी के प्रवास पर चले गये हैं। अब तो सूचनाएं आ रही हैं कि सरकार से समर्थन न मिलने के कारण वैभव वीआरएस की तैयारी में हैं। पूरे मामले का दिलचस्प पहलू यह है कि नीतीश कुमार ने कहा है कि किसी अधिकारी को कोई विभागीय परेशानी है तो उसे उचित प्लेटफार्म पर अपनी बात रखनी चाहिए। उसे ट्वीट कर इसे सार्वजनिक मंच पर नहीं ले जाना चाहिए। वैभव ने ट्वीट कर अच्छा काम नहीं किया है। कानून भी इसकी इजाजत नहीं देता।
केके पाठक का गाली देने का वीडियो भी वायरल हुआ था
हाल ही में पुलिस सेवा के एक और आला अधिकारी केके पाठक का भी एक वीडियो खूब वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने बिहारियों के लिए गाली का इस्तेमाल किया था। उन्होंने गाली के अंदाज में कहा था कि बिहारियों में ट्रैफिक सेंस नहीं होता। केके पाठक भी बिहार के अच्छे अफसरों में गिने जाते हैं। कई महकमों में रहते हुए उन्होंने अच्छा काम किया है, जिसकी तारीफ भी होती है। इस मामले की अभी जांच चल रही है। जांच का नतीजा जो भी आये, लेकिन इतना तो साफ है कि बिहारी न सिर्फ दूसरे राज्यों में अब तक गाली-अपमान सुनते-सहते आए हैं, बल्कि अब अब अपने ही सूबे में अपमान सहने को विवश हैं। हालांकि वैभव ने जिस अंदाज में इस मुद्दे को उछाला है और इसे लेकर लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उससे एक बात साफ हो गई है कि ब्यूरोक्रेसी में बाहरी-भीतरी की दीवार खड़ी हो रही है।
बिहार में अफसरों के बीच गाली गलौज कोई नयी बात नहीं
बिहार में सीनियर-जूनियर अधिकारियों के बीच अमर्यादित व्यवहार की बात कोई नयी नहीं है। इस तरह की शिकायतें पहले भी मिलती रही हैं। शिकायतों से परेशान सरकार ने साल 2015 में पत्र लिखकर सीनियर अफसरों को चेतावनी भी दी थी। इसके बावजूद अफसरों पर कोई असर नहीं पड़ा। हाल की दो घटनाएं इसका प्रमाण हैं। अफसरों के बीच ऐसे आचरण तो अक्सर सुनने-देखने में आते हैं, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भी यह शिकायत अक्सर सामने आती है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते। सरकार और सीएम के पास ऐसी शिकायतें आती हैं, लेकिन नीतीश कुमार उसे नोटिस ही नहीं लेते। दरअसल 2005 में पहली बार नीतीश कुमार के सीएम बनने के पहले बिहार की ब्यूरोक्रेसी राजनीतिज्ञों के दबाव में इस कदर थी कि सही काम करना संभव नहीं था। नीतीश कुमार ने सीएम बनते ही ब्यूरोक्रेसी का मनोबल यह कह कर बढ़ाया कि बिना किसी दबाव के वे काम करें। तब इसका सुखद परिणाम भी सामने आया था। बिहार में नीतीश के शासन को सुशासन कहा जाने लगा। बाद में ब्यूरोक्रेसी को जब यह लगा कि कोई रोकटोक और प्रॉपर मानिटरिंग तो हो नहीं रही, तभी से अफसर बेलगाम होने लगे। रिश्वतखोरी, सरकारी योजनाओं की लूट में अफसरों की मिलीभगत आम हो गयी। आज जिस मुकाम पर हालात पहुंच गये हैं, वह सबके सामने है।
अफसरों के बीच टकराव के मद्देनजर 2015 में जारी हुआ था पत्र
बिहार में जब अफसरों के बीच अशोभनीय टकराव की सूचनाएं बढ़ने लगीं तो मौजूदा चीफ सेक्रेट्री और सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव आमिर सुबहानी पत्र लिखकर सभी अधिकारियों से मर्यादित आचरण करने की हिदायत दी थी। 10 जून 2015 को सुबहानी ने सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्रमंडलीय आयुक्त और डीएम को पत्र लिखकर सभी अधिकारियों को मर्यादित आचरण की हिदायत दी थी। उन्होंने लिखा था कि नियमावली में साफ लिखा है कि सभी उच्च अधिकारी अपने जूनियर के साथ अच्छे आचरण एवं मर्यादित व्यवहार करें। कोई ऐसा काम न करें, जो सरकारी सेवक के लिए अशोभनीय हो। इसके बावजूद समय-समय पर ऐसे मामले प्रकाश में आते रहे हैं। ताजा दो घटनाओं की जांच के आदेश सरकार ने दे दिये हैं। पहले सीनियर आईएएस केके पाठक के अधिकारियों को गाली देने का मामला प्रकाश में आया। अब आईजी विकास वैभव डीजी शोभा अहोतकर का प्रकरण चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
पहले विधायिका का मानमर्दन, अब अधिकारी दे रहे चुनौती
बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा का कहना है कि ‘महागठबंधन सरकार के अधिकारियों ने पहले विधायिका का मानमर्दन किया। अब गाली गलौच कर बिहारी अस्मिता को चुनौती दे रहे हैं, बिहारियों का अपमान कर रहे हैं। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों पर लगे दुर्व्यवहार के आरोपों से यह साफ है कि बिहार पूरी तरह से प्रशासनिक अराजकता के दौर में है। बिहारियों को खुलेआम भद्दी गालियां देने वाले आईएएस अधिकारी पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। बिहारी अस्मिता पर तूफान खड़ा करने वाली पार्टियां जदयू और राजद इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुई हैं। हर छोटी-बड़ी घटना पर रिएक्ट करने वाले मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी मौन हैं।’