भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपना सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2 लॉन्च कर दिया है। स्मॉल सैटेलाइट लॉन्चिंग व्हीकल (SSLV) की लॉन्चिंग शुक्रवार सुबह 9:18 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन लॉन्चिंग सेंटर से हुई। SSLV-D2 तीन सैटेलाइट्स लॉन्च करने में कामयाब रहा। ये SSLV को लॉन्च करने की दूसरी कोशिश थी। इसके पहले 7 अगस्त 2022 को पहली कोशिश नाकाम रही थी।
SSLV ने जो 3 सैटेलाइट्स लॉन्च किए, उनमें अमेरिका जानूस-1, चेन्नई के स्पेस स्टार्ट अप का आजादी सैट-2 और इसरो का EOS-7 शामिल है। SSLV-D2 पृथ्वी की लोअर ऑर्बिट में 15 मिनट तक उड़ान भरी, इसके बाद सैटेलाइट्स को 450 किलोमीटर दूर ऑर्बिट में छोड़ दिए हैं।
इसरो चीफ सोमनाथ ने SSLV-D2 की लॉन्चिंग के बाद कहा, “अब हमारे पास एक नया लॉन्च व्हीकल है। SSLV-D2 ने दूसरी कोशिश में सैटेलाइट्स को एकदम सही तरह से ऑर्बिट में छोड़ दिया है। तीनों सैटेलाइट टीमों को बधाई।”

SSLV का मकसद छोटे सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग
SSLV को डेवलप करने का मकसद छोटे सैटेलाइट लॉन्च करना है। इसके साथ ही पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) का इस्तेमाल अब तक लॉन्चिंग में बहुत ज्यादा किया जाता है। SSLV के चलते अब यह बड़े मिशन के लिए फ्री हो सकेगा। SSLV 10 से 500 किलोग्राम के ऑब्जेक्ट को 500 किलोमीटर दूर प्लैनर ऑर्बिट में ले जा सकता है।

EOS-07 एक 156.3 किलो का सैटेलाइट है, जिसे इसरो ने डिजाइन और डेवलप किया है। नए एक्सपेरिमेंट में एमएम-वेव ह्यूमिडिटी साउंडर और स्पेक्ट्रम मॉनिटरिंग पेलोड शामिल हैं। जबकि, जानूस-1 एक 10.2 किलोग्राम का उपग्रह है। 8.7 किलो का आजादी सैट-2 स्पेस किड्ज इंडिया चेन्नई के डायरेक्शन में देश भर की लगभग 750 गर्ल स्टूडेंट ने बनाया था।
पिछले साल फेल हो गई थी SSLV की लॉन्चिंग
9 अगस्त 2022 में SSLV लॉन्चिंग के प्रयास किए गए थे, लेकिन लॉन्चिंग फेल हो गई थी। रॉकेट की लॉन्चिंग तो ठीक हुई थी, लेकिन बाद में रफ्तार और फिर रॉकेट के सेपरेशन के दौरान दिक्कत आई। इसके चलते तब SSLV की लॉन्चिंग को रद्द कर दिया गया था। इसरो ने बताया था कि दोनों सैटेलाइट्स गलत ऑर्बिट में चले गए थे और ये किसी काम के नहीं रह गए थे।
एसएसएलवी की पहली परीक्षण उड़ान पिछले साल 9 अगस्त को आंशिक रूप से विफल रही थी, जब प्रक्षेपण यान के ऊपरी चरण ने वेलोसिटी में कमी के कारण उपग्रह को अत्यधिक अण्डाकार अस्थिर कक्षा में पहुंचा दिया था. इसरो के अनुसार, इस परीक्षण की विफलता की जांच से यह भी पता चला था कि रॉकेट के दूसरे चरण के अलगाव के दौरान इक्विपमेंट बे डेक पर एक छोटी अवधि के लिए कंपन भी हुआ था. वाइब्रेशन ने रॉकेट के इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (INS) को प्रभावित किया. फॉल्ट डिटेक्शन एंड आइसोलेशन (FDI) सॉफ्टवेयर का सेंसर भी प्रभावित हुआ था.
SSLV को अभी आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड से लॉन्च किया जाएगा. कुछ समय बाद इस रॉकेट की लॉन्चिंग के लिए श्रीहरिकोटा के एसडीएससी में एक स्मॉल सैटेलाइल लॉन्च कॉम्प्लेक्स (SSLC) बना बनेगा. तमिलनाडु के कुलाशेखरापट्नम में नया स्पेस पोर्ट भी बन रहा है. उसके तैयार होने पर एसएसएलवी की लॉन्चिंग वहीं से होगी. इसरो के मुताबिक SSLV के एक यूनिट की लॉन्चिंग पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जबकि PSLV के एक यूनिट की लॉन्चिंग में यह खर्च 130 से 200 करोड़ रुपये के बीच बैठता है. यानी जितने में 1 पीएसएलवी रॉकेट जाता था, उतनी कीमत में 4 SSLV लॉन्च होंगे. हालांकि, इससे सिर्फ कम वजनी उपग्रह ही अंतरिक्ष में भेजे जा सकेंगे.