बहुप्रतीक्षित नये बजट का शोर लगभग थम चुका है। देश की एक कद्दावर महिला वित्त मंत्री ने संसद से केंद्रीय बजट की जब हुंकार भरी तो देश की आधी आबादी की आकांक्षाओं को नया पर लगने की उम्मीद जगी। टकटकी बांधे आधी आबादी की किस्मत के सितारे खुले भी पर कुछेक लोक लुभावने वादों के साथ पिटारा बंद होता नजर आया। देश के विकास और वित्त की मजबूत डोर जब महिला नेतृत्व के हाथों में आती है तो उम्मीदों का दूसरा सिरा निश्चित ही तरक्की‚ तदवीर और तसल्ली की ओर खुलता है। संसद में पांचवें बजट को लेकर महिला सशक्तिकरण की अपेक्षाएं जायज थीं। वास्तव में महिलाओं को केंद्र में रखकर बजट मीमांसा की जाए तो इसके प्रतिफलन में महिला फ्रेंडली बजट की अपेक्षा निराधार साबित होती है। हालांकि इसका एक मजबूत पक्ष ये भी है कि इस बार कुछेक बेहतरीन बदलाव महिलाओं के हिस्से जरूर आया।
महिला बचत सम्मान पत्र शुरू किए जाने की घोषणा हाशिए की महिलाओं के लिए उम्मीद का एक दरवाजा खोलती है। वन टाइम सेविंग स्कीम वाले इस बचत योजना में अन्य बचत योजनाओं के मुकाबले ज्यादा ब्याज मिलने की संभावना है‚ लेकिन केवल दो साल के लिए इस योजना की घोषणा निराशा पैदा करती है। यदि इसे महिलाओं के पर्सनल सेविंग के लिहाज से बनाया गया है तो जाहिर है लंबे वक्त के लिए इसका जारी होना जरु री था।
पिछले वित्त वर्ष २०२२–२३ के बजट में महिलाओं के लिए १‚७१‚००६ करोड़ रु पये का बजट आवंटित किया गया था‚ जिसमेें शक्ति‚ पोषण‚ सक्षम आंगनबाड़ी‚ मिशन वात्सल्य आदि कल्याणकारी योजनाओं के जरिए महिलाओं को नये सिरे से आत्मनिर्भरता की मुख्यधारा में जोड़ने की बात कही गई थी। साथ ही दो लाख आंगनबाडि़यों को अद्यतन करने पर विषेश रूप से जोर दिया गया था। पिछले बार के मुकाबले इस बार इक्यासी लाख स्व सहायता समूहों से महिलाओं को जोड़ने और उन्हें कच्चे माल की आपूर्ति और बेहतर डिजाइन के लिए प्रशिक्षण देने की बात कही गई है। बजट में महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण महिलाओं को जोड़ने के लिए सेल्फ हेल्प ग्रुप स्थापित करने की बात जरूर कही गई है‚ लेकिन बेहतर होता महिला कामगारों और श्रमिकों के लिए अलग से कुछ प्रावधान किए जाते।
इलेक्ट्रॉनिक‚ सूचना और प्रौद्योगिकी एवं कृषि उद्योग जैसे कई अहम क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है‚ लेकिन बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन‚ ऑटो स्पेयर‚ शेयर बाजार‚ रियल स्टेट‚ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली आदि के लिए पृथक बजटीय प्रावधान से उनके लिए और मजबूत रास्ते खोले जा सकते थे। मौजूदा समय में संतुलन साधने की कोशिशें तभी साकार हो पाएंगी जब महिलाओं के लिए सर्वसमावेशी बजट तैयार किया जाता। उनकी सुरक्षा की गारंटी‚ उनके विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा पर लगाम‚ उनके विरु द्ध घरेलू या सामाजिक स्तर पर रिवाजों रस्मों‚ परंपराओं अथवा प्रचलित मान्यताओं से उत्पन्न हिंसा से प्रभावी ढंग से निपटने के उपायों के लिए भारी न सही हल्के निवेश की दरकार है। इस पर सोचा जाता तो बेहतर होता। जीवन की हर चुनौती से निपटने का साहस रखने वाली इन स्त्री शक्तियों को आर्थिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाना देश को करना विकास की धुरी पर तेजी से दौड़ाएगा इसमें कोई शक नहीं।