रूस ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका और पश्चिमी देशों के मंसूबों को लेकर सतर्क किया है। रूस विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने अपने हाल के इंटरव्यू में कहा है कि लोकतंत्र बनाम तानाशाही के नाम पर अमेरिका रूस के विरुद्ध नया मोर्चा खोल रहा है। बीबीसी और अड़ानी प्रकरण ने अमेरिकी कंपनी हिंड़नबर्ग के खुलासे के बीच लावरोव की यह चेतावनी सामने आई है। रूस के विदेश मंत्रालय ने ब्रिटेन के प्रचार तंत्र के मुख्य हथियार बीबीसी की गुजरात संबंधी ड़ाक्यूमेंट्री के बारे में कहा था कि यह ‘सूचना युद्ध’ का हिस्सा है। हिंड़नबर्ग खुलासे के बारे में रूस की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन वहां के विशेषज्ञोें के अनुसार यह एक ‘आर्थिक युद्ध’ का हिस्सा है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में यूक्रेन युद्ध के बारे में भारत की तटस्थ भूमिका और रूस के प्रति समर्थन के प्रकाश में बीबीसी और हिंड़नबर्ग खुलासे की समीक्षा की जा रही है।
विदेश मंत्री लावरोव ने अपने इंटरव्यू में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडे़न के आगामी मार्च महीने में दूसरी ‘लोकतंत्र शिखर वार्ता’ (डे़मोक्रेसी समिट) का उल्लेख किया है। उन्होंने कहा कि इस शिखर वार्ता के जरिये अमेरिका लोकतंत्र बनाम तानाशाही के आधार पर रूस और चीन के खिलाफ नई अंतरराष्ट्रीय लामबंदी कायम करने की कोशिश में है। ॥ शिखर वार्ता रूस‚ चीन‚ ईरान और वेनेजुएला जैसे देशोें के खिलाफतथाकथित लोकतांत्रिक देशों को एकजुट करने की फिराक में हैं। लावरोव ने यह भी कहा कि इस शिखर वार्ता में एक घोषणापत्र भी जारी किया जा सकता है‚ जिसमें रूस और चीन के खिलाफ रणनीति का जिक्र होगा। लावरोव ने कहा कि इस शिखर वार्ता में शामिल होने वाले देशों के नाम बाइडे़न प्रशासन ने खुद तय किए हैं। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि सूची में अनेक ऐसे देशों के नाम हैं जिन्हें अमेरिका गैर लोकतांत्रिक मानता रहा है।
‘लोकतंत्र शिखर वार्ता’ में भारत को भी भाग लेना है। दुनिया के सबसे बड़े़ लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत का ऐसे किसी आयोजन में भाग लेना स्वाभाविक है लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पश्चिमी देशों के सत्ता–प्रतिष्ठान‚ थिंक टैंक और मीडि़या भारत को पूरी तरह लोकतांत्रिक देश नहीं मानते। अमेरिकी थिंक टैंक फ्रीड़म हाउस ने पिछले दिनों भारत को आंशिक रूप से लोकतांत्रिक देश करार दिया था। इसी तरह एक अन्य थिंक टैंक ने प्रधानमंत्री मोदी को ‘निर्वाचित तानाशाह’ की संज्ञा दी थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के लिए जी–२० शिखर वार्ता के आयोजन वर्ष में इस भारत विरोधी दुष्प्रचार का सामना करना बड़़ी चुनौती साबित होगा। यह समय मीठी–मीठी बातें बोलने का नहीं बल्कि खरी–खोटी सुनाने का है।
हिंड़नबर्ग खुलासे के संबंध में मीडि़या के आलेख आंख खोलने वाले हैं। न्यूयार्क टाइम्स‚ फाइनेंशियल टाइम्स‚ फोर्ब्स‚ ब्लूमबर्ग और टाइम जैसे प्रभावशाली पत्र–पत्रिकाओं के आलेख ऐसे हैं मानो किसी एक व्यक्ति ने उन्हें लिखा हो। सबसे अधिक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इन आलेखों में गौतम अड़ानी से अधिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया गया है।
आलेख कार्पोरेट जगत की हेराफेरी और वित्तीय नियामक संस्थाओं की असफलता तक ही सीमित नहीं हैं‚ बल्कि इनमें भारत की विकास यात्रा को भी खारिज करने की कोशिश की गई है। इन आलेखों में गुजरात दंगों‚ अड़ानी–मोदी की सांठगांठ और भारत की विकास यात्रा के खोखलेपन वाली तस्वीर पेश की गई है। पश्चिमी देशों की सरकारें मोदी और जयशंकर को यह दिलासा दे सकती हैं कि यह सब उनकी आधिकारिक राय नहीं हैं‚ लेकिन हकीकत ंहै कि इस पूरे घटनाक्रम से भारत की छवि और विकास यात्रा को घातक नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
रूस के विदेश मंत्रालय ने ब्रिटेन के प्रचार तंत्र के मुख्य हथियार बीबीसी की गुजरात संबंधी ड़ाक्यूमेंट्री के बारे में कहा था कि यह ‘सूचना युद्ध’ का हिस्सा है। हिंड़नबर्ग खुलासे के बारे में रूस की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन वहां के विशेषज्ञों के अनुसार यह एक ‘आर्थिक युद्ध’ का हिस्सा है