इक्कीसवीं सदी के शुरु आती सालों में दुनिया में जो कुछ बड़ी हलचलें हुई हैं‚ नये घटनाक्रम सामने आए हैं‚ उनसे अंतरराष्ट्रीय संबंध और हैसियत का नया वर्ल्ड़ ऑर्डर तय हो रहा है। इस दौरान वैश्विक मंदी‚ उच्च महंगाई दर और ऊर्जा व खाद्य संकट का खतरा नया विस्तार पा रहा है। वैश्विक हालात ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के कदमों और क्लाइमेट एक्शन को खासा धीमा कर दिया है। दुनिया आज पहले से कहीं ज्यादा ध्रुवीकृत है। इसलिए इस बात की आश्वस्ति और मूल्यांकन महत्तवपूर्ण है कि भारत को अब समस्या–समाधानकर्ता और एजेंडा तय करने वाले राष्ट्र के तौर पर देखा जा रहा है। दुनिया के सामने भारत की यह छवि नई और तारीखी तौर पर खासी अहम है।
बात करें राष्ट्रों की बड़ी गोलबंदी और नई साझी सहमति की तो इस लिहाज से जी–२० का मंच बहुत बड़ा है। भारत को जी–२० अध्यक्षता संयोगवश ऐसे समय मिली है‚ जब वह दिसम्बर‚ २०२२ के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के अध्यक्ष और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अध्यक्ष की जिम्मेवारी भी संभाल रहा है। गौरतलब है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ वर्षों में भारत की वैश्विक स्थिति ने इसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भागीदारों‚ क्षेत्रीय वार्ताकारों और विकासशील दुनिया के साथ सार्थक जुड़ाव सुरक्षित करने का माहौल प्रदान किया है। भारत जी–७ में नियमित आमंत्रित सदस्य है‚ जिसमें प्रमुख विकसित राष्ट्र शामिल हैं। हम ब्रिक्स (ब्राजील‚ रूस‚ भारत‚ चीन‚ दक्षिण अमेरिका) के भी सदस्य हैं‚ जिसमें प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। भारत अमेरिका‚ जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड का भी हिस्सा है।
एससीओ से भी जुड़ा हुआ है‚ जिसमें रूस‚ चीन और मध्य एशियाई देश शामिल हैं। भारत ने क्षेत्रीय साझेदारों को प्रभावी ढंग से एक साथ जोड़ने का काम भी किया है‚ जैसा कि हाल में यूरोपीय संघ‚ अमेरिकी संघ‚ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ और मध्य एशियाई राज्यों के साथ हुइ शिखरस्तरीय बैठकों में स्पष्ट हुआ है। बात करें जी–२० की तो उत्तर–दक्षिण से लेकर पूर्व–पश्चिम तक विस्तारित विभाजन एवं मजबूत भू–राजनीतिक ध्रुवीकरण को देखते हुए भारत की अध्यक्षता में कठिन चुनौतियों के साथ ही असाधारण अपेक्षाएं भी शामिल हैं। इन चुनौतियों के बावजूद जो इस क्षण को अद्वितीय बनाता है‚ वह है कि दुनिया इन विभाजनों को पाटने की भारत की क्षमता और कौशल के बारे में पहले से कहीं अधिक आ·ास्त है। इसे प्रधानमंत्री मोदी ने ‘आरोग्यकर‚ आशा और सद्भाव की अध्यक्षता’ कहा है। जी–२० के मंच और इसकी सदारत पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं। दिसम्बर के पहले हफ्ते में उदयपुर में भारत की अध्यक्षता में आयोजित पहली शेरपा बैठक में भारत की भूमिका धारणा स्पष्ट देखने को मिली। सदस्य देशों के शेरपाओं ने न केवल भारत की समृद्ध संस्कृति‚ बल्कि देश के डिजिटल और तकनीकी कौशल को भी महसूस किया। स्वाभाविक तौर पर यह मंच अंतरराष्ट्रीय समुदाय भू–राजनीतिक और व्यापक आर्थिक स्तरों पर अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए विश्वसनीय उपायों की तलाश करेगा। जी–२० विशिष्ट रूप से ऐसा मंच है‚ जो विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की प्राथमिकताओं को सामने रखने में सहायक है।
गौरतलब है कि जी–७ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद‚ दोनों ही उस विश्व व्यवस्था की याद दिलाते हैं‚ जो दूसरे विश्व युद्ध के तुरंत बाद दिखी थी। दूसरी ओर‚ जी–२० अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ जी–७ को समान भागीदार के तौर पर एक मंच पर लेकर आया है। यह अन्य प्रमुख देशों के साथ पी–५ को भी साथ लाया है। इसके अलावा‚ जी–२० प्रक्रिया में आमंत्रितों के रूप में अमेरिकी संघ‚ नेपैड और आसियान जैसे अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों की नियमित भागीदारी इसे समावेशी और प्रतिनिधि दोनों बनाती है। बड़ी बात यह है कि अतीत में इस समूह ने वैश्विक महत्व के मुद्दों पर बेहतर परिणाम दिए हैं। कोविड–१९ से पैदा हुए संकट के बाद विकासशील देशों के लिए ऋण–निलंबन पहल और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए समान कर व्यवस्था पर सहमत होने के इसके हालिया निर्णयों को अच्छी तरह से अपनाया गया है। हालांकि‚ इसकी सफलताओं के बीच कुछ मतभेदों की संभावना भी बनती है‚ और रूस–यूक्रेन संघर्ष के दौरान हमने यह देखा है। यहां जो बात अलग से समझने की है‚ वह यह कि दुनिया जिन तनावों और अनिश्चितताओं का सामना कर रही है‚ उनके लिए दूरदर्शी नेतृत्व और राजकीय कौशल जैसे गुणों की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री मोदी के न्यू इंडिया ने हमारे देश को कोविड–१९ महामारी से उबारा है‚ और भारत को वैश्विक परिदृश्य पर उज्ज्वल स्थान में बदल दिया है। यह एक लचीला भारत है‚ जिसने बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने के लिए वापसी की है। यह ऐसा भारत भी है‚ जिसने सबसे कठिन समय में वैश्विक भलाई के लिए अपने संसाधनों और क्षमताओं को साझा करने में संकोच नहीं किया। पीएम मोदी के दृष्टिकोण के तहत भारत की विदेश नीति वसुधैव कुटुम्बकम के हमारे प्राचीन दर्शन ‘विश्व एक साझा भविष्य वाला एक परिवार है’‚ को ध्यान में रखते हुए वैश्विक भलाई के लिए काम करने को लेकर प्रेरित है। महामारी से निपटने के लिए मार्च‚ २०२० में सऊदी अरब द्वारा बुलाई गई जी २० शिखर बैठक में पीएम मोदी ने ‘जन–केंद्रित वैश्वीकरण’ का आह्वान किया था। इस व्यापक दृष्टि को ध्यान में रखते हुए भारत का प्रयास विश्व स्तर पर योगदान करने के लिए अपनी घरेलू ताकत और उपलब्धियों का लाभ उठाने का रहा है।
स्वाभाविक तौर पर नई चुनौतियों और उम्मीदों के बीच ध्रुवीकरण और तकनीकी संतुलन से बंटी दुनिया में भारत सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि आने वाले वर्षों में विश्व में समृद्ध एवं समावेशी समाज के साथ एक न्यायसंगत प्रणाली हो। भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है‚ जिसके पास मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेंटल्स‚ मजबूत सार्वजनिक वित्त और मजबूत विनिर्माण और निर्यात वृद्धि है। यह शीर्ष एफडीआई गंतव्य है। नवाचार के स्रोत के रूप में डिजिटल स्पेस में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने वाला सबसे बड़ा स्मार्टफोन डेटा कंज्यूमर और वैश्विक फिनटेक को अपनाने वाला देश है।