बिहार में जातीय जनगणना कराने पर सहमति नीतीश कुमार के शासन में बनी और जनगणना का काम का भी पूर्व घोषित तिथि 7 जनवरी से आरंभ हो गया है। इस गणना का नफा-नुकसान तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात पक्की है कि राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की चिर प्रतीक्षित मांग पर आखिरकार अमल हो गया। यानी सीधे सपाट शब्दों में कहें तो जातीय जनगणना की शुरुआत करा करा आरजेडी ने अपनी पहली रणनीतिक जीत हासिल कर ली है। इसलिए कि नीतीश कुमार जब बीजेपी के साथ एनडीए की सरकार में थे तो आरजेडी के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने यह मांग नीतीश कुमार से की थी। नीतीश कुमार ने उसके बाद एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी के पास भेजा था। बीजेपी के नेता भले ही जातीय जनगणना की प्रासंगिता पर अब सवाल खड़ा कर रहे हैं, लेकिन उस वक्त दिल्ली पीएम से मिलने गये सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के सदस्य भी शामिल थे। बाद में तेजस्वी यादव ने कोरोना काल की सामप्ति पर नीतीश कुमार से मुलाकात की और जातीय जनगणना की मांग की। इसे इस रूप में भी देख सकते हैं कि नीतीश कुमार अगर बीजेपी का साथ छोड़ आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ आये तो उसमें जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव की सीएम से अकेले-अकेले में हुई मुलाकात ही सबसे बड़ा आधार बनी।
केंद्र ने ठुकरा दिया था जातीय जनगणना का प्रस्ताव
केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना का प्रस्ताव तकनीकी कारणों का हवाला देकर ठुकरा दिया था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है। इसलिए जनगणना के माध्यम से जाति आधारित जनगणना कराना संभव नहीं है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में कहा था कि आगामी जनगणना में पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) के बारे में जानकारी एकत्र करना संभव नहीं है। ओबीसी/ बीबीसी की गणना को हमेशा प्रशासनिक रूप से जटिल प्रक्रिया माना गया है, पिछड़े वर्ग की की पहचान का स्टैंडर्ड सुनिश्चित करने में व्यावहारिक कठिनाइयां हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में केंद्र ने हलफनामा दायर किया था।
केंद्र की ना के बावजूद बिहार में बन गयी जाति जनगणना पर सहमति
केंद्र सरकार ने जब जातिगत जनगणना से इनकार कर दिया और कहा कि राज्य चाहें तो अपने स्तर से जातिगत जनगणना करा सकते हैं। उसके बाद ही नीतीश कुमार ने तेजस्वी के रिमाइंडर पर घोषणा की थी कि राज्य सरकार अपने बूते जनगणना करायेगी। फिर इसका ड्राफ्ट तैयार हुआ र राज्य कैबिनेट से पारित होने पर 7 जनवरी 22 से जातिगत जनगणना कराने की घोषणा हुई थी। भाजपा ने जातिगत जनगणना को असंभव बता दिया था। तकनीकी कारणों का हवाला देकर मोदी सरकार ने इनकार कर दिया था। हालांकि बिहार में भाजपा इसके पक्ष में खड़ी थी। माना यह जाता है कि केंद्र की भाजपानीत सरकार के ना के बावजूद राज्य में भाजपा इसके पक्ष में इसलिए राजी हुई थी कि उसे भय था कि इसी मुद्दे पर नीतीश का झुकाव आरजेडी की ओर हो सकता है। इसलिए जातिगत जनगणना का मुद्दा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने उठाया था। उनकी हां में हां मिलाते हुए नीतीश भी इसके लिए राजी हो गये थे।
नीतीश-तेजस्वी की नजदीकी का आधार बनी जातिगत जनगणना
जातिगत जनगणना के मुद्दे पर ही तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की नजदीकी शुरू हुई थी। भाजपा इससे भयभीत थी। भाजपा के भय का कारण इसलिए भी था कि 2020 में नयी सरकार बनने पर नीतीश भाजपा से असहज महसूस कर रहे थे। बीजेपी-जेडीयू के बीच कड़वाहट कई मौकों पर उजागर हो रही थी। इसीलिए जातिगत जनगणना के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में और इसके लिए बुलाई सर्वदलीय बैठक में भाजपा शामिल होती रही थी। हालांकि बीजेपी का त्याग किसी काम नहीं आया। जातिगत जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी ने नीतीश कुमार को समर्थन देने की बात कही थी और आखिरकार नीतीश-तेजस्वी यादव एक हो गये।
ओबीसी वोट बैंक खिसकने के डर से बीजेपी ने दिया था साथ
बिहार में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है। माना जाता है कि बिहार में तकरीबन 52 फीसदी आबादी ओबीसी की है। ऐसे में जाति जनगणना का विरोध करने पर ओबीसी के वोट महागठबंधन को ट्रांसफर होने का भय भाजपा को था। यही वजह रही कि भाजपा ने केंद्र की ना के बावजूद नीतीश की हां में हां मिलाने का फैसला किया था। नीतीश के एजेंडे पर चलने का भाजपा ने फैसला लिया था।
जातिगत जनगणना का क्रेडिट आरजेडी के तेजस्वी को
बिहार सरकार का मुखिया होने के कारण नीतीश कुमार ने भले ही जातिगत जनगणना शुरू करायी है, लेकिन इसका क्रेडिट आरजेडी के नेता और फिलवक्त बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को जा रहा है। उन्होंने कहा भी है कि लालू प्रसाद का सपना पूरा हुआ। दरअसल लालू प्रसाद शुरू से ही इसकी मांग कर रहे थे। 2020 के असेंबली इलेक्शन के बाद हुए उपचुनावों में भी यह मुद्दा बना था। तब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे। हालांकि बाद में नीतीश आरजेडी के साथ आ गये और उन्होंने राज्य सरकार के स्तर पर जित जनगणना का फैसला किया। चूंकि सबसे पहले तेजस्वी ने यह मांग की और उनकी ही मांग पर नीतीश कुमार ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए भेजा, इसलिए इसका क्रेडिट तो तेजस्वी को ही जाता है। भाजपा शुरू में तो इसके पक्ष में रही, लेकिन अब इसके नेता कहते हैं कि विकास की दौड़ में जातियों की गिनती कराने का कोई औचित्य नहीं है।
500 करोड़ के खर्च से 2 चरणों में होगी जाति जनगणना
7 जनवरी से शुरू हुई जाति जनगणना दो चरणों में पूरी होगी। इस पर राज्य सरकार के 500 करोड़ रुपए खर्च होंगे। केंद्र के इनकार के बाद बिहार सरकार अपने खर्च पर जनगणना करा रही है। जाति जनगणना को लेकर नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा है कि लालू प्रसाद के रास्ते पर चलकर नीतीश कुमार बिहार में जातीय उन्माद फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार में जिस तरह से शराबबंदी फेल हुई है, उसी तरह जातिगत जनगणना भी फेल हो जाएगी। सिन्हा ने कहा कि आजादी के 75 साल बीत गए। किसी ने जातिगत जनगणना की जरूरत नहीं समझी। केंद्र सरकार हर तबके के लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। बापू, जेपी, लोहिया जैसे लोगों ने जाति विहीन समाज का सपना देखा था, लेकिन आज उस रास्ते पर नहीं चलकर नीतीश कुमार बिहार में जातीय उन्माद पैदा करने के रास्ते पर चल पड़े हैं। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार बिहार में जातीय जनगणना कराएं, लेकिन यह भी बताएं कि जो 500 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, क्या उसका लाभ बिहार की जनता को मिल पाएगा। बीपीएससी, बीएसएससी और शिक्षक अभ्यर्थियों पर जो लाठियां बरसायी जा रही हैं, उसका समाधान करने के बजाय जाति के नाम पर समाज को एक दूसरे से लड़ाने के लिए जातिगत जनगणना कराई जा रही है।