अर्जंटीना के चैंपियन बनने से लियोनल मेसी का सपना जरूर साकार हो गया। पर कतर में खेले गए इस फीफा विश्व कप के फाइनल में सही मायनों में फुटबॉल की जीत हुई है। अर्जंटीना और पिछली चैंपियन फ्रांस के बीच खेले गए फाइनल में जिस तरह से खेल खेला गया‚ उसकी कोई दूसरी मिसाल मुझे तो नहीं दिखती है। फुटबॉल को आमतौर पर रणनीति‚ अनुशासन और एकाग्रता का खेल माना जाता है और इसमें फिटनेस और कौशल की भी भूमिका होती है। पर कभी–कभी यह सभी बातें धरी–की–धरी रह जातीं हैं और लुसैल स्टेडि़यम में खेले गए फाइनल भी काफी कुछ ऐसा था। इस मुकाबले में जिस तरह से स्थितियां बदलीं‚ उसके हिसाब से ही स्टेडि़यम और टेलीविजन सेटों के सामने चुपककर बैठे प्रशंसकों के हाव–भाव भी बदलते रहे।
दोनों टीमों के हीरो लियोनल मेसी और किलियन एमबापे अपनी टीम को विजेता बनाने में कोई कसर छोड़़ने को तैयार नहीं दिख रहे थे। इसी का परिणाम था कि पहले निर्धारित समय में दो–दो की बराबरी के बाद अतिरिक्त समय में भी ३–३ की बराबरी बने रहने पर आखिर में गोलकीपर एमीलियो मार्टीनेज ने पेनल्टी शूटआउट में अर्जंटीना को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई। अर्जंटीना ने इस खिताब पर ३६ सालों बाद कब्जा जमाया है। कतर को विश्व कप मिलने का तमाम देशों ने विरोध किया था पर फीफा अपने फैसले पर ड़टा रहा और अब कतर ने आयोजन को सफलतापूर्वक करके आलोचकों मुंह बंद कर दिए हैं। इस विश्व कप की सफलता को महान फुटबॉलर पेले के बधाई संदेश से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा‚ फुटबॉल ने एक बार फिर अपनी कहानी दिलचस्प तरीके से बयां की। मेसी ने अपना पहला विश्व कप जीता‚ जिसके वे पूरी तरह से हकदार थे। हमारे खेल के भविष्य के लिए यह शानदार प्रदर्शन को देखना किसी उपहार से कम नहीं था। लियोनल मेसी ने महान फुटबॉलर माराड़ोना की तरह अपने देश और अपने क्लबों को हर तरह की सफलताएं दिलाइ थीं। पर वह विश्व कप जीतने के मामले में पिछड़़े नजर आते थे। माराड़ोना १९८६ में अर्जंटीना को चैंपियन बना चुके थे और मेसी २०१४ में इसके करीब पहुंचकर भी विश्व कप को चूमने का गौरव हासिल नहीं कर सके थे‚ लेकिन अब वह अपनी इस कमी को दूर करने में सफल हो गए हैं। मेसी २०१८ के रूसी विश्व कप में चैंपियन का तमगा हासिल नहीं कर पाने के बाद २०१६ में कोपा अमेरिका के फाइनल में जब चिली के हाथों हार का सामना किया तो वह निराशा में संन्यास का फैसला करने को मजबूर हो गए। पर अर्जंटीना के राष्ट्रपति के प्रयासों से मेसी का फैसला बदल गया और इसका फायदा २०१८ के विश्व कप के बाद कोच की जिम्मेदारी संभालने वाले लियोनल स्केलोनी को मिला। स्केलोनी कोच की जिम्मेदारी संभालने के समय किसी सीनियर टीम को प्रशिक्षित करने की काबिलियत नहीं रखते थे। इस नियुक्ति पर माराड़ोना ने कहा था कि वह ट्रैफिक को तो निर्देश दे नहीं सकता‚ राष्ट्रीय टीम को कैसे संभालेगाॽ क्या हम सभी पागल हो गए हैं। पर स्केलोनी वह कर दिखाया‚ जो पिछले ३६ सालों से कोच नहीं कर पा रहे थे। दुनियाभर के फुटबाल फ्रेमियों के लिए एक खुशखबरी यह भी है कि मेसी अभी अंतरराष्ट्रीय फुटबाल से संन्यास लेने नहीं जा रहे हैं। अर्जंटीना के चैंपियन बनने पर मेसी ने कहा‚ ‘निश्चित तौर पर मैं इस खिताब के साथ अपने कॅरियर को संपूर्ण बनाना चाहता था। इसके बाद अब क्या बचा है। मैं विश्व चैंपियन के नाते अपनी राष्ट्रीय टीम के साथ अभी कुछ और खेलना चाहूंगा।’ यही नहीं कोच स्केलोरी तो चाहते हैं कि मेसी अगले विश्व कप तक खेलते रहे हैं। यह सही है कि अर्जंटीना की यह सफलता टीम प्रयासों का फल है। पर १९८६ में माराड़ोना ने पांच गोल करके और पांच में सहयोग करके अहम भूमिका निभाई थी‚ उसी तरह मेसी ने इस बार यह भूमिका निभाई। उन्होंने सात गोल किए और तीन गोल में सहयोग किया।
इस प्रदर्शन पर उन्हें गोल्ड़न बॉल अवॉर्ड़ मिला। मेसी सबसे ज्यादा विश्व कप मैच खेलने वाले खिलाड़़ी बन गए हैं। उन्होंने २६ मैच खेलकर जर्मनी के पूर्व खिलाड़़ी लोथर मथायस का २५ मैचों के रिकॉर्ड़ को तोड़़ा है। मेसी की अहमियत को इससे भी समझा जा सकता है कि वह ग्रुप चरण‚ क्वार्टर फाइनल‚ सेमीफाइनल और फाइनल सभी में गोल जमाने वाले पहले खिलाड़़ी बन गए हैं। फ्रांस लगातार दूसरा विश्व कप जीतने में भले ही सफल नहीं हो सकी‚ लेकिन उन्होंने एमबापे की अगुआई में जिस संघर्ष क्षमता का प्रदर्शन किया‚ उसे सालों–साल याद रखा जाएगा। एमबापे ने हैट्रिक जमाकर दो बार टीम की खेल में वापसी कराई। लेकिन उनके यह प्रयास भी टीम को सफल बना नहीं सके। इसका दर्द उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था। वह सबसे ज्यादा आठ गोल जमाकर गोल्ड़न बूट अवार्ड़ पान के बाद भी खिताब नहीं जीत पाने की वजह से मायूस नजर आए। हर विश्व कप की तरह इस बार कुछ दिग्गज इस खेल से जुदा होते दिखेंगे‚ तो कई युवा स्टार बनकर आने वाले सालों में राज करते दिखेंगे।