जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण पूरे विश्व में जैव विविधता खतरे में है। कनाडा के मॉ्ट्रिरयल शहर में 7 से 19 दिसम्बर तक आयोजित हुई कॉप 15 बायोडायवर्सिटी कॉन्फ्रेंस में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटीनियो गुटेरेश सहित तमाम प्रतिनिधि देशों ने असंतुलित वैश्विक जैव विविधता पर चिंता व्यक्त की। करीब १९६ देशों के प्रतिनिधियों को संयुक्त राष्ट्र ने कॉन्फ्रेंस ऑफ दी पार्टीज टू दी कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (कॉप) घोषित किया है। १९९४ से १९९६ तक कॉप की सालाना बैठक होती रहीं। २००० में आयोजन के नियम में संशोधन हुआ और यह बैठक प्रत्येक दो वर्ष में होने लगी।
कॉप–१५ चीन के कुनिमंग और कनाडा के मॉ्ट्रिरयल में दो फेज में संपन्न हुइ। इसमें १८८ देशों के प्रतिनिधियों‚ अमेरिका सहित द वेटिकन ने जापान के आईची शहर में हुई कॉप की ११वीं बैठक (आईची–११) के लक्ष्यों की समीक्षा करते हुए कॉप–१५ में वैश्विक जैव विविधता के संरक्षण के २३ लक्ष्य और ४ उद्देश्य को निर्धारित किया है। ऐतिहासिक समझौते पर सहमति बनना पृथ्वी की प्रकृति के लिए मील का पत्थर साबित होगा बशर्ते सभी देश कॉप–१५ में निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों के करीब पहुंचते हैं। वैश्विक जैव विविधता के मुद्दे पर पीछे मुड़कर देखें तो संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंच पर १९९२ में रियो डी जेनेरियो में संपन्न अर्थ सम्मिट में वैश्विक जैव विविधता संरक्षण पर पहली बार चिंता जताई गई। फिर दिसम्बर‚ १९९३ में कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (सीबीडी) की अंतरराष्ट्रीय संधि पर विश्व के प्रतिनिधि देशों ने हस्ताक्षर कर इसे लागू किया। विश्व स्तर पर जारी आकलन रिपोर्ट में पशु और पौधों की लाखों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं‚ जिसके पीछे इंसानी महत्वाकांक्षा है। हालांकि कॉप–१५ में २०३० तक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सुरक्षा से जुड़े उपायों में ३० प्रतिशत भूमि‚ तटीय इलाकों और अंतर्देशीय जलक्षेत्र के संरक्षण लक्षित हैं।
महत्वपूर्ण है कि वैश्विक जैव विविधता पर मंडराते खतरे से निपटने के लिए २०१० में आईची–११ में लगभग २०० देशों ने २०२० तक अपने स्तरीय क्षेत्र में कम से कम १७ प्रतिशत जमीनी और १० प्रतिशत समुद्री हिस्से को संरक्षित करने का संकल्प लिया था। लेकिन २०२० तक इस लक्ष्य तक विश्व के काफी देश नहीं पहुंच सके हैं। इसलिए कॉप–१५ में कुनिमंग–मॉ्ट्रिरयाल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (जीबीएफ) २०३० के लक्ष्य अर्थात ३० फीसदी भूमि‚ समुद्र‚ तटीय इलाकों और अंतर्देशीय जलक्षेत्र को संरक्षण करना कॉप देशों के लिए बड़ी चुनौती है। आइची–११ लक्ष्यों की समीक्षा करने पर पाया गया है कि भारत सहित दुनिया के काफी देश इस लक्ष्य तक पहुंचने में काफी दूर रहे हैं। भारत में ६ प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र ही घोषित है और २०१० से पिछले दस वर्षों में भारत मात्र ०.१ प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र ही बढा पाया है। एशिया के अधिकतर देशों की कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। भारत के आंकड़ों पर गौर करें तो देश के १‚७३‚३०६.८३ वर्ग किमी. संरक्षित क्षेत्र में ९९० संरक्षित क्षेत्रों का नेटवर्क है। इसमें १०६ राष्ट्रीय उद्यान‚ ५६५ वन्य जीव अभ्यारण‚ १०० संरक्षण रिजर्व और २१९ सामुदायिक रिजर्व शामिल हैं। हालांकि पिछले १० वर्षो में ४० प्रतिशत एशियाई देशों ने संरक्षित क्षेत्रों में १७ फीसदी हिस्से के लक्ष्य को हासिल किया है। इनमें भूटान‚ नेपाल‚ जापान‚ कतर‚ दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने संरक्षित क्षेत्र बढ़ाने में महती कामयाबी पाई है।
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं का आकलन करने वाली अंतर सरकारी विज्ञान नीति मंच (आईपीबीईएस) की गत ६ मई‚ २०१९ को जारी रिपोर्ट के मुताबिक जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की विभिन्न सेवाएं खतरे में हैं। वैश्विक आकलन के मुताबिक १० लाख पशुओं और वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। इनमें से हजारों एक दशक के भीतर ही विलुप्त हो जाएंगी। आईपीबीईएस अध्यक्ष रॉबर्ट वॉटसन की चिंता है कि तेजी से नष्ट हो रहे पारिस्थितिकी तंत्र पर सभी पूरी तरह से निर्भर है। हम पशु‚ खाद्य सुरक्षा और हमारी अर्थव्यवस्था की बुनियाद को नष्ट करते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में केवल १५ प्रतिशत पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली से ही विलुप्ति का यह खतरा ६० प्रतिशत तक कम हो सकता है। गौरव की बात है कि संयुक्त राष्ट्र ने भारत की पवित्र गंगा नदी को फिर से जीवंत करने की पहल पर काम करने के लिए नमामि गंगे की सराहना करते हुए उसे प्राकृतिक जगत को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित १० अग्रणी प्रयासों में स्थान दिया है।
आईपीबीईएस की रिपोर्ट ने दुनिया को चिंतित तो कर दिया है लेकिन वैश्विक दृढ़ प्रतिज्ञा हमें इस संकट से उबार सकती है। ग्रह और मानवता को बचाने के लिए तत्काल एक साथ आना होगा। विकसित देशों के विकासशील और गरीब देशों को आर्थिक और तकनीकी सहयोग देकर वैश्विक बायोडायवर्सिटी असंतुलन के संकट से उबरने में आगे आकर बड़े सहयोग की आवश्यकता है। तभी २०३० तक ३० प्रतिशत भूमि और समुद्र के संरक्षण के लक्ष्य को पाने में आसानी होगी॥।