राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने 29 नवंबर 2017 को एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार के पेट में दांत होने की बात कही थी। लालू ने ट्वीट में लिखा था- ‘क्या आप ‘पेट के दांत’ ठीक करने वाले किसी डेंटिस्ट को जानते हैं? बिहार में जनादेश का एक मर्डरर है, जिसके पेट में दांत है। उसने सभी नेताओं और पार्टियों को ही नहीं, बल्कि करोड़ों ग़रीब-गुरबों को भी अपने विषदंत से काटा है।’ लालू यादव का यह बयान एक विरोधी नेता के रूप में था, लेकिन समर्थक नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति के सबसे बड़े चाणक्य कहकर संबोधित करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि महज 5-7 फीसदी कुर्मी-कोइरी वोट बैंक से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले नीतीश कुमार अपने दांव पेच के दम पर करीब दो दशक से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। अब नीतीश कुमार ने सबको चौंकाते हुए तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। नीतीश कुमार ने अपने गृह जिले नालंदा में जाकर कहा कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव की अगुवाई में लड़ा जाएगा।
पहली नजर में देखें तो पता चलता है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव का रुतबा बढ़ा है। खुद सीएम ने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित किया है। लेकिन अगर आप थोड़ी बहुत भी राजनीति में इंट्रेस्ट रखते हैं तो यहां समझने की जरूरत है कि नीतीश कुमार का यह एक बड़ा राजनीतिक दांव है, जिसके बूते वह अगले तीन साल बिहार की सत्ता पर बने रहेंगे। आइए इसे विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।
तेजस्वी यादव के सीएम की राह में 3 साल के लिए अटकाया रोड़ा
नीतीश कुमार जब से बीजेपी से नाता तोड़कर लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया है तब से आरजेडी के कई नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग कर चुके हैं। खुद तेजस्वी यादव ने सीधे तौर से तो कभी नहीं कहा कि वह मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं लेकिन वह नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताकर कहीं ना कहीं अपनी मंशा जाहि कर चुके हैं। आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी जैसे नेता लगातार तेजस्वी को सीएम बनाने की मांग कर चुके हैं। मांग भी जायज है। इस वक्त बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है तो जेडीयू तीसरे नंबर की।
गोपालगंज और कुढ़नी उपचुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी की हार के बाद से नीतीश कुमार पर सीएम कुर्सी छोड़ने का प्रेशर काफी बढ़ चुका है। ऐसे में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन का नेता घोषित कर अपने लिए अगले तीन साल के लिए सीएम की कुर्सी सुरक्षित कर ली है। नीतीश की इस घोषणा के बाद आजरेडी समर्थक चाहकर भी तेजस्वी को सीएम बनाने की डिमांड नहीं कर पाएंगे।
नीतीश समझते हैं, 2025 को किसने देखा है?
2025 के विधानसभा चुनाव से पहले 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। उम्मीद की जा रही थी कि नीतीश कुमार बिहार में सीएम की कुर्सी छोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटेंगे। बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों को गोलबंद करने के लिए नीतीश कुमार दिल्ली की दौड़ भी लगा चुके हैं, लेकिन यहां खास तवज्जो नहीं मिलने के बाद वह दोबारा बिहार में अपने लिए जगह सुरक्षित रखने के मूड में दिख रहे हैं। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार ने पिछले दिनों स्पष्ट कर दिया कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की कोई मंशा नहीं है। वह केवल 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को एक मंच पर लाना चाहते हैं, ताकि बीजेपी को हराने का उनका मकसद पूरा हो पाए।
अपने इस बयान के ठीक बाद उन्होंने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित कर दिया। यानी नीतीश कुमार भांप चुके हैं कि केंद्र की राजनीति में उनके लिए ज्यादा स्कोप नहीं है। इसके अलावा गुजराज चुनाव के अलावा, बिहार और उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों में बीजेपी को जिस तरह का समर्थन देखने को मिला उससे भी नीतीश हवा का रुख समझ चुके हैं।
नीतीश कुमार की अगुवाई में 2024 के लोकसभा चुनाव में 7 दलों के महागठबंधन का प्रदर्शन बिहार में कैसा रहता है, इसपर काफी कुछ निर्भर करेगा। 2024 में अगर महागठबंधन का प्रदर्शन धमाकेदार होता है तो नीतीश कुमार एक बार फिर साबित कर पाएंगे कि बिहार में उनका जनाधार बना हुआ है। वहीं अगर प्रदर्शन खराब हुआ तो भी वह कुछ समय तक सीएम की कुर्सी बचाए रख पाएंगे। क्योंकि 2025 का चुनाव होने में अभी काफी वक्त है। तब किस दल का किसके साथ गठबंधन होगा कौन जानता है।