महाराष्ट्र में इन दिनों बात पकड़ने का दौर चल रहा है। कभी इसकी बात पकड़ी जा रही है‚ तो कभी उसकी बात। बात का सिर्फ एक सिरा बीच से या किनारे से पकड़कर उसका बतंगड़ बना देना ही असली राजनीति माना जाने लगा है। खासतौर से राज्य में महाविकास आघाड़ी सरकार (एमवीए) का पतन होने के बाद से।
इसका ताजा उदाहरण बुधवार को राज्य के पर्यटन मंत्री मंगलप्रभात लोढ़ा का एक बयान आने के बाद मिला। लोढ़ा सातारा जिले के महाबलेश्वर क्षेत्र में उस प्रतापगढ़ किले के परिसर में भाषण दे रहे थे‚ जहां मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध किया था। छत्रपति शिवाजी की यह वीरता इतिहास में काफी चर्चित रही है। दरअसल‚ अफजल खान बीजापुर के आदिलशाही वंश का सेनापति था। कद–काठी में वह छत्रपति शिवाजी से मजबूत था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने सातारा के प्रतापगढ़ किले के नीचे अपने बघनखे से उसका पेट फाड़कर उसका वध कर दिया था। मारने के बाद उसका सिर तो तोप के सामने बांधकर उड़वा दिया गया था‚ और धड़ उसी स्थान पर दफना दिया गया था‚ जहां उसका वध हुआ था। अफजल वध के बाद तीन सदियों तक वहां कुछ नहीं हुआ‚ लेकिन देश आजाद होने के बाद अचानक उसकी कब्र को मकबरे में बदलने का काम शुरू हो गया। सन २००० के बाद महाराष्ट्र में संप्रग की सरकार के कार्यकाल में तो कब्र के आसपास की जगह का सौंदर्यीकरण भी शुरू कर दिया गया। कब्र के ऊपर बड़ी जगह में मंडप बना दिया गया। उसमें कुछ मौलवी भी रहने आ गए।
चूंकि यह कब्र प्रतापगढ़ किले की ओर जाते समय रास्ते में ही पड़ती है। इसलिए पर्यटक इधर से ही होकर गुजरते हैं। आसपास के ग्रामीणों के अनुसार अफजल की कब्र के पास रहने वाले मौलवी अब तो पर्यटकों को उसकी वीरता के किस्से भी सुनाने लगे थे। ये सारी घटनाएं उसी सरकार के कार्यकाल में होती रहीं‚ जिसमें राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी आधे की हिस्सेदार थी और खुद को मराठों का झंडाबरदार समझती है। अफजल खान की कब्र के पास यह सब होते देख स्थानीय लोगों ने ही उच्च न्यायालय की शरण ली और कब्र के आसपास हो रहे अतिक्रमण को हटाने की मांग की। उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद अतिक्रमण हटाने का आदेश भी दे दिया‚ लेकिन कई कारणों से अब तक इस आदेश पर पालन नहीं हो सका था। राज्य में शिंदे– फड़नवीस सरकार आने के बाद १० नवम्बर को उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने घोषणा करके बड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कब्र के आसपास वनभूमि पर किया गया अतिक्रमण ध्वस्त कर दिया गया। अब तक इस अतिक्रमण का मूक समर्थन करते आ रहे राजनीतिक दल खुलकर तो अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। इसलिए इन दिनों छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में कही गई कोई भी बात पकड़कर उसका बतंगड़ बनाने की मुहिम चालू है।
बुधवार को भी ऐसा ही एक अवसर बात का बतंगड़ बनाने वालों के हाथ लग गया। महाराष्ट्र में अफजल खान वध का दिन ‘शिवप्रताप दिवस’ के रूप में मनाया जाता है (तिथियों के भ्रम में कुछ लोग शिवप्रताप दिवस १० नवम्बर को मनाते हैं‚ तो कुछ लोग ३० नवम्बर को)। इस बार ३० नवम्बर को राज्य सरकार की ओर से प्रतापगढ़ किले पर ३६३वें शिवप्रताप दिवस का भव्य आयोजन किया गया था। इसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और पर्यटन मंत्री मंगल प्रताप लोढ़ा सहित अनेक नेता मौजूद थे। इस समारोह में मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय के किलों और दुर्गों को संरक्षित करने के लिए ‘दुर्ग प्राधिकरण’ की स्थापना की जाएगी। साथ ही‚ विशेष तौर पर प्रतापगढ़ किले के संरक्षण एवं सौंदर्यीकरण के लिए उन्होंने १०० करोड़ रु पयों की निधि देने का प्रस्ताव भी रखा।
पर्यटन मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने इसमें से २५ करोड़ रुपयों की राशि तुरंत पर्यटन मंत्रालय के खाते से देने की घोषणा की और कहा कि जिस स्थान पर अफजल खान की कब्र है। उसके पास ही छत्रपति शिवाजी महाराज की अफजल खान का वध करते हुए एक विशाल प्रतिमा लगाई जाएगी। अपने इसी भाषण के दौरान लोढ़ा हल्के–फुल्के अंदाज में कह गए कि जिस प्रकार औरंगजेब की कैद से छत्रपति शिवाजी महाराज बच निकले थे‚ उसी प्रकार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी कैद से बाहर आ गए थे। बस‚ उनकी इसी बात को लेकर अब बतंगड़ बनाया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की तुलना छत्रपति शिवाजी महाराज से की। हालांकि अपने बयान पर सफाई देते हुए मंगल प्रभात लोढ़ा कह चुके हैं कि उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज से मुख्यमंत्री की तुलना नहीं की है। उन्होंने तो सिर्फ आगरा के किले में घटी एक घटना से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के शिवसेना छोड़ने की तुलना की है‚ लेकिन बात का बतंगड़ बनाने वालों का क्याॽ उनके हाथ तो बात का एक सिरा लग चुका है। वास्तव में बात का बतंगड़ बनाने की इस राजनीति को समझना है तो पिछले एक माह के ही घटनाक्रम को देख लेना पर्याप्त होगा।
महाराष्ट्र की शिंदे/फड़नवीस सरकार ने जिस तरह अफजल खान के महिमामंडन का प्रयास रोककर छत्रपति शिवाजी के प्रतापगढ़ किले के सौंदर्यीकरण के लिए १०० करोड़ रुपये खर्च करने की योजना प्रस्तुत की है‚ वह उन राजनीतिज्ञों के लिए करारा जवाब है‚ जो अब तक सिर्फ छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर राजनीतिक करते रहे हैं। यही बात विरोधियों को हजम नहीं हो रही है। महात्मा गांधी ने राम राज की बात की। बालासाहब ठाकरे ने शिवशाही सरकार की बात की। उनके ऐसा कहने से जिस प्रकार किसी की भगवान राम या शिवाजी महाराज से तुलना नहीं हो गई‚ उसी प्रकार उनके आदर्शं पर चलने की बात करना छत्रपति शिवाजी का अपमान कैसे हो सकता है ॽ