प्रधानमंत्री ने कहा कि डाटा सस्ता हो गया। लोग कह रहे हैं कि आटा महंगा हो गया। हो सकता है कि बाटा की यह चतुराई अभी चल रही हो कि कीमत को राउंड फिगर से पांच पैसे कम पर रोक दो। अब टाटा की बात कौन करे‚ आजकल तो अडानी ही अडानी हो रहा है। पर जी‚ किराने का बाजार बाटा का शोरूम नहीं है। वहां कोशिश यही होती है कि जिन्सों की कीमत राउंड फिगर में ही चलें। छुट्टे के चक्कर में कौन पडे। हालांकि रेजगारी को लेकर अब वह पहले वाली मारा–मारी नहीं रही। वहां भी तो राउंड फिगर चल गया न। चवन्नियां–अट्ठनियां गुजरे जमाने की बात हो गई। अब तो एक का सिक्का लेने देने में भी आनाकानी होती है। वैसे भी जब बेरोजगारी इतनी जबर्दस्त हो तो रेजगारी को कौन पूछता है। आटे की फितरत है कि गरीबी में ही गीला होता है। बेरोजगारी से अमीरों में तो अमीरी आ सकती है‚ पर गरीबों में गरीबी ही आती है। तो इस गरीबी में भैया आटा गीला है। कायदे से आटे को महंगा बताए जाने का बुरा मानना चाहिए। उसे कहना चाहिए कि आलू–टमाटर सस्ता है क्या‚ गोभी–घीया सस्ती हैं क्या‚ दालें सस्ती हैं क्या‚ तेल सस्ता है क्या। फिर मुझे ही क्यों महंगा बताया जा रहा है। यह मुझे बदनाम करने की साजिश है।
इस मामले में उसका साथ सिर्फ सरकार समर्थक ही देते हैं‚ जब वे यह कहते हैं कि पाकिस्तान को देखो‚ वहां तो आटा और महंगा है। पाकिस्तान इस मामले में सरकार के बडे काम आता है। जब–जब अपनी ओर उंगली उठती है‚ वह उस उंगली को पाकिस्तान की तरफ मोड देती है। आटे का साथ महंगी होकर सब्जियां और दालें तो बेशक‚ दे रही हों पर रुपये ने उसका साथ छोड दिया है। इंसान की जान के बाद एक वही तो है‚ जो सस्ता हो रहा है। कुछ लोग उसे कमजोर भी कहते हैं। हालांकि वित्त मंत्री जी कहती हैं कि रुपया कमजोर नहीं हुआ। बस‚ डॉलर मजबूत हो गया। बात भी ठीक है रुपया कमजोर तो बिल्कुल भी नहीं हुआ है। अभी भी सरकार गिराने का दम–खम उसमें बचा है। सांसदों और विधायकों को खरीदने का दम–खम उसमें बचा है। बस‚ वह तो आटा ही नहीं खरीद पा रहा। सब्जियां और दालें खरीदने में ही उसकी जान निकली जा रही है। डाटा तो वह लपक कर खरीदता है। सस्ता जो है। इससे आप बडे आराम से अपने अतीत पर गर्व कर सकते हैं‚ और सस्ते में वाट्सएप युनिवर्सिटी से पीएचडी कर सकते हैं। हालांकि जलकुकडों की शिकायत यहीं नहीं रुकती। वे कहते हैं कि शिक्षा भी तो महंगी हो रही है। तो क्या आटे ने ही महंगा होने का ठेका ले रखा है। दूसरा कोई महंगा नहीं हो सकता क्या। देखो‚ चुनाव कितने महंगे हो गए।
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