आज राष्ट्रीय संविधान दिवस है , जिसका मुख्य कार्यक्रम का आयोजन सुप्रीम कोर्ट में किया गया था । इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ , केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजूजू सहित कई अहम लोगो ने अपने विचार व्यक्त किये । इसका मूल निष्कर्ष यह निकला की समय पर लोगों को सेवाएं प्रदान करना ,न्याय को सुलभ, पारदर्शी और विश्वसनीय बनाना , त्वरित न्याय व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करना ।
परन्तु आज की वास्तविकता यह है की पिछले कई वर्षो से लाख प्रयासों के बावजूद देश की अदालतों में मुकदमों का अंबार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश की अदालतों में सात करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। इनमें से करीब 87 फीसदी केस देश की निचली अदालतों में लंबित हैं तो करीब 12 फीसदी केस राज्यों के उच्च न्यायालयों में लंबित चल रहे हैं। देश की सर्वोच्च अदालत में एक प्रतिशत केस लंबित हैं। सबसे आश्चर्य की बात है की इन मुकदमों में आधे जमीन बिबाद से सम्बंधित है और आधारहीन , झूठ , फरेब लालच के वजह से किये जाते है ।
दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान दिवस समारोह में हिस्सा लिया और इस दौरान ई-कोर्ट परियोजना के तहत विभिन्न नई पहलों और वेबसाइट का उद्घाटन किया।#ConstitutionDay pic.twitter.com/hgEOewkVCk
— ANI_HindiNews (@AHindinews) November 26, 2022
देश में सबसे ज्यादा केस गाँवों के हैं। गांवों में जमीन के बंटवारे या सीमा निर्धारण को लेकर देश की निचली अदालतों में अंबार लगा हुआ है। बिहार भी कोई अछूता नही है इससे । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जनता दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम में जमीन विवाद से जुड़ी शिकायतों की बढ़ती संख्या से पता चलता है । न्यायलय से लेकर विधायकी तक इससे परेशान है । जमीन से जुड़े मामले अपने साथ अपराधिक मुकदमे भी लेकर आते है जिससे इनकी संख्या में दोहरा इजाफा होते जा रहा है । सबसे कमाल है की भूमि विवाद जैसे मामले से जुड़े अपराधिक मामले जैसे मारपीट का आरोप , जान से मरने की धमकी का आरोप , हत्या , अपहरण जैसे अपराधिक इल्जाम भी लगाये जाते है । इनमें आधे से अधिक झूठ , फरेब और परेशान करने की नियत से लगाए जाते है । जिसके कारण न्यायलयो पर अनावश्यक दबाव , पुलिस कार्यप्रणाली पर सवाल के साथ आम-जन पर आर्थिक-मानसिक नुकासन के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रो के समाजिक-परिवारिक परिवेश में जहर घोलते जा रहा है । इसको लेकर उच्चतम न्यायालय से लेकर निचली अदालतों तक , केंद्र सरकार से लेकर स्थानीय प्रसाशन तक अपनी तरफ से पहल कर रहे है । किन्तु अब तक यह यक्ष प्रश्न है की इसका समाधान कब और कैसे होगा ?
ऐसे ही ताजा मामला है बिहार के सारण जिले के मरौढा थाना के नरहरपुर चमारी का है जहाँ परिवारिक जमीनी विवाद ने मारपीट के आरोप के साथ थाने तक पहुँच गया है । इस प्रकरण के तथ्य में हमारे संवाददाता द्वारा जब खोज बीन की गई तो पता चला कि पूरा प्रकरण ही आधारहीन है और पूरी तरह से परिवारिक जमीनी विवाद का मामला है। जो लगभग तिन दशकों से चला आ रहा है।
इस मामले में एक महिला रुपकांती देवी द्वारा मरौढा थाने में आवेदन दिया गया है जिसमे आरोप लगाया गया है की उसके घर को तोड़कर उसके साथ उनके हीं पटीदार अनुज सिंह और विरेश सिंह द्वारा मार पिट किया गया है जिसमे वह जख्मी हो गई है । वही अनुज सिंह का कहना है की हमारे पिता स्वर्गीय रामकुमार सिंह द्वारा घर के जमीन के बगल में एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा स्व अर्जित की गई है । उसी को हड़पने के लिए ही सारा जाल बुना गया है चूंकि उसके बगल में ही हमारे चाचा नंदजी सिंह का भी जमीन है और वे लोग इस हडपने का प्रयास कर रहे है ।
जब इस बावत

से पूछने पर उन्होंने बताया की वास्तविकता में किसी भी तरह की मारपीट की घटना हुई ही नहीं है। रहीं बात पुराना जर्जर एक कमरा तोड़ने का, जो पुराने घर का एक भाग था तो उसे हमारे चाचा के बड़े भाई के द्वारा तोड़वाया गया है और सच्चाई ऐ भी है कि इन लोगों के पुराने पुस्तैनी मकान को भी बंटवारा करने के उद्देश्य से ही इसी बर्ष जनवरी माह में उन लोंगों के द्वारा ही तोड़वाया गया था। जिसके लिए इन्होंने मढ़ौरा थाना में अपना बयान भी दे दिया गया है।
अनुज सिंह ने बताया की चाचा द्वारा कई सालों से बार बार यह धमकी मिलती आ रही की अगर वो जमीन तुमलोग नहीं दोगे तुम लोगों को हर तरफ से परेशान कर देंगे। फिर इसी के अनुसार चाचा के कहने पर ही यह झूठा आरोप लगाया गया है। दरअसल चाचा उच्च पद पर आसीन है जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत है और उसी के कारण वे हम लोगों को परेशान कर रहे हैं। यह एक पूर्णतः पारिवारिक झगड़ा है और कुछ नहीं। जिसे बिना मतलब परेशान करने के उद्देश्य से अक्सर गाली गलोज , मार पिट , कोर्ट कचहरी की धमकी दी जाती है।
बिहार ही नही पुरे देश में ऐसे करोडो मामले है जिसका वजूद ही झूठ और फरेब की नीव पर है जिससे सरकारों पर अनावश्यक दबाव बढ़ता है । ऐसे मुकदमो के निपटारे में ग्राम पंचायत की कहीं कोई भूमिका तय हो तो शायद कोई स्थाई समाधान संभव हो सकता है। पंच परमेश्वर की अवधारणा कहीं इस तरह के मुकदमों के निपटारे में अधिक सहायक हो सकती है। यह मुकदमे अपील दर अपील पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं और मामूली सा सीमा विवाद लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझ कर रह जाता है। जिससे वास्तविक मामलों के निपटारो में बिना वजह वक्त जाया होता है।
ऐसे ही भूमिविवादों के निपटारे के लिए बिहार सरकार ने विशेष न्यायालय बनाने का निर्णय लिया है । फिलहाल बिहार में 91 हजार एकड़ जमीन का इस्तेमाल मुकदमों के कारण नहीं हो रहा है। उमीद कर सकते है की विशेष न्यायालय के जरिए ही इन मुकदमों का जल्द निपटारा संभव हो पायेगा ।