अब किसी सरकार या संगठन के लिए ऐसे बच्चे से भेदभाव करना संभव नहीं होगा जिसे किसी दंपत्ति ने खुद की संतान न होने पर गोद लिया हो।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने तय कर दिया है कि कि दत्तक बच्चे के भी जैविक बच्चे की तरह अधिकार होते हैं और अनुकंपा के आधार पर माता/पिता की जगह नौकरी दिए जाने पर विचार करते हुए उससे किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। अदालत ने साफ कर दिया है कि ऐसा भेदभाव होता है तो गोद लेने का उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाएगा।
राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा, मौजूदा नियमों के आधार पर दत्तक बेटे तथा जैविक बेटे के बीच भेद करने का मामले में कोई असर नहीं पड़ेगा। विभाग ने दत्तक बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इनकार करते हुए नियमों का हवाला दिया था। अदालत ने हाल में दिए अपने फैसले में कहा था, ‘बेटा, बेटा होता है और बेटी, बेटी होती है, गोद ली हो या वैसे हो, अगर ऐसे भेद को मंजूर कर लिया जाता है तो गोद लिए जाने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।’ एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने 2011 में एक बेटे को गोद लिया था। उसकी मार्च, 2018 में मौत हो गई थी। उसी साल उसके दत्तक बेटे ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने की अर्जी दी थी। विभाग ने इस आधार पर नौकरी देने से इनकार कर दिया था कि अनुकंपा के आधार दत्तक बेटे को नौकरी देने का नियम नहीं है। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया गया। अदालत की एकल पीठ ने भी 2021 में उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उसने खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर की।
इस बीच सरकार ने अप्रैल, 2021 में जैविक तथा दत्तक बेटे के बीच भेद को अमान्य कर दिया। दत्तक पुत्र के वकील ने खंडपीठ से कहा कि 2021 में हुआ संशोधन एकल पीठ के न्यायाधीश के संज्ञान में नहीं लाया गया था। सरकार के वकील की दलील थी कि चूंकि संशोधन 2021 में हुआ और दत्तक पुत्र ने 2018 में याचिका दायर की थी तो उसे संशोधन का लाभ नहीं दिया जा सकता। पीठ ने दलील ठुकराते हुए दत्तक पुत्र के पक्ष में फैसला दे दिया। यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा।