कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा बुरहानपुर से मध्यप्रदेश में प्रवेश कर चुकी है। दक्षिण में मिले जन समर्थन के बाद अब हिंदी पट्टी में यात्रा को हिट कराने की चुनौती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूरी ताकत झोंक रहे हैं कि राहुल यहां के लोगों का दिल जीत लें। दरअसल, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मध्यप्रदेश में राहुल की यात्रा के रिस्पॉन्स का बाकी हिंदी राज्यों पर भी असर पड़ेगा। इसी से राहुल का भविष्य तय होगा। राहुल की यात्रा को शुरू हुए आज 24 नवंबर को 78 दिन हो चुके हैं।
भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ वाले 6 जिलों की 17 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरेगी। राहुल बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, इंदौर, उज्जैन और आगर मालवा जिलों से गुजरेंगे। यात्रा के दौरान वे दो ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर के दर्शन करेंगे। यात्रा जब मालवा बेल्ट से होकर गुजरेगी, तो 26 नवंबर को आंबेडकर की जन्मस्थली पर राहुल एक बड़ी सभा को संबोधित करेंगे।
मालवा-निमाड़ में 66 विधानसभा सीटें, पिछली बार कांग्रेस ने 34 जीतीं
मालवा और निमाड़ में 66 विधानसभा सीटें हैं। भाजपा को 2018 में यहां से 29 सीटें मिली थीं। वहीं, कांग्रेस 34 सीटें जीतकर मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में आई थी। इससे पहले हुए 3 चुनावों में भाजपा सत्ता में बनी थी। अगले चुनाव में कांग्रेस की कोशिश 35 सीटें जीतने की है। ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के लिए सत्ता का रास्ता बनाएगी? यात्रा 23 नवंबर से 4 दिसंबर शाम छह बजे तक मप्र में रहेगी फिर वह राजस्थान की ओर कूच करेगी।
321 लोकसभा सीटों पर समीकरण साधने की तैयारी
जिन 12 राज्यों से यात्रा निकाली जा रही है, उनके दायरे में 321 लोकसभा सीटें आती हैं। 2019 में कांग्रेस इनमें से केवल 37 सीटों पर जीत पाई थी। दक्षिण भारत के पांच राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और कर्नाटक से कुल मिलाकर लोकसभा की 129 सीटें आती हैं, जो लोकसभा की कुल 543 सीटों का करीब 24% हिस्सा है। पिछले लोकसभा चुनाव में BJP इन 129 सीटों में से सिर्फ 29 सीटें ही जीत सकी थी। कई राज्यों में तो उसका खाता भी नहीं खुला था। उत्तर भारत और अन्य क्षेत्रों के मुकाबले दक्षिण भारत में BJP की पैठ कमजोर है। राहुल इन सीटों पर ही जोर लगा रहे हैं, जो मिशन 2024 के लिए काफी अहम है।
लोकप्रियता ताे बढ़ी है, लेकिन मोदी से बहुत पीछे हैं राहुल
कांग्रेस की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस को 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में 19-20% वोट मिले हैं। यदि राहुल गांधी की लोकप्रियता देखें तो कई सर्वे हुए, जिसमें राहुल को 9 से 10% लोग ही पसंद कर रहे हैं। BJP को 31 से 38% वोट मिले, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पसंद करने वाले 50% से अधिक हैं। यदि भारत जोड़ो यात्रा के नजरिए से देखें तो राहुल को लेकर धारणा थी कि वे ज्यादातर समय विदेशों में बिताते हैं।
राहुल ने इस यात्रा से न सिर्फ अपनी विदेशी सैलानी वाली छवि को तोड़ा है, बल्कि एक गंभीर नेता के रूप में उभरे हैं। इस यात्रा का दक्षिण राज्यों में कितना प्रभाव हुआ है, इस सवाल पर किदवई कहते हैं कि राहुल को दक्षिण राज्यों में ज्यादा समर्थन मिला। तमिलनाडु की बात करें तो कांग्रेस यहां सहयोगी दल पर निर्भर है। यहां गठबंधन के सहारे ही कांग्रेस की गाड़ी चल रही है। केरल में 2021 के चुनाव में राहुल गांधी को अच्छा जनसमर्थन मिला था, लेकिन कांग्रेस को जीत नहीं मिली थी।
राजस्थान में बेबस, मप्र में मजबूत और UP- बिहार में कांग्रेस खस्ताहाल
यात्रा दक्षिण से निकलकर अब हिंदी भाषी राज्यों में प्रवेश कर चुकी है। इस पर किदवई कहते हैं कि देखिए, जब हम हिंदी पट्टी की बात करते हैं तो मूल रूप से 2 तरह के राज्य आते हैं। एक वे जहां अभी भी कांग्रेस की जमीन है, जैसे मध्यप्रदेश, जहां वह 2018 में सत्ता में आ चुकी है। मप्र में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। राज्य के जिन इलाकों से यात्रा गुजरेगी, वहां कांग्रेस सक्रिय है। यहां नेताओं ने श्रेय लेने के लिए उपयात्राएं भी निकाली गई हैं, इसका लाभ कांग्रेस को होगा। राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस की जड़ें मजबूत हैं।
राजस्थान में जिस तरह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट के बीच कलह चल रही है। उससे कांग्रेस का ग्रुप चेहरा भी नजर आ रहा है। इतना ही नहीं, जिन्हें पार्टी ने नोटिस दिया था, उन्हें यात्रा का समन्वयक बना दिया। इससे लगता है कि यहां कांग्रेस बेबस है। उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा,पंजाब और जम्मू-कश्मीर की बात करें तो यहां कांग्रेस बहुत ही कमजोर है। इन राज्यों में यात्रा का बहुत लाभ मिलेगा, ऐसी उम्मीद कम है।
चार-पांच राज्यों में राहुल की लोकप्रियता बढ़ी तो मोदी के लिए मुश्किल
किदवई का कहना है कि राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि कांग्रेस का ग्राफ कैसे बढ़े? कांग्रेस के समर्थन और उनके (राहुल गांधी) के समर्थक के बीच के गैप को पाट लेते हैं तो उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। देश में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने किसी नेता का प्रभाव सिंगल डिजिट में ही है, चाहे वह ममता बनर्जी हो या नीतीश कुमार। इसके बावजूद कांग्रेस ही इतना दमखम दिखा रही है। वो ही मोदी जैसे पहाड़ से पार पाने का दुस्साहस कर सकती है। उसका यह इतिहास भी रहा है। इस यात्रा से राहुल गांधी का ग्राफ राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ सकता है।
किदवई यह भी कहते हैं कि देश में अभी भी कुछ जगह राहुल गांधी का ग्राफ नरेंद्र मोदी से ज्यादा है, लेकिन वह राज्यवार है, जिसमें तामिलनाडु, केरल व पंजाब है। यदि इसमें चार-पांच राज्य और जुड़ जाते हैं तो यह राहुल के राजनीतिक भविष्य के लिए सुखद होगा। यात्रा के दौरान राहुल गांधी कांग्रेस का एजेंडा कम सिविल सोसाइटी के मुद्दे ज्यादा उठा रहे हैं, जिनका वोटों से सीधा तालमेल नजर नहीं आ रहा है।
आदिवासी वोटों को अपनी ओर करना है?
इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि आप देखिए, पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटें कांग्रेस को ज्यादा और BJP को कम मिली थीं। आदिवासियों को लेकर बातें ज्यादा हो रही हैं। यह वर्ग अब जागरूक हो चुका है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आदिवासी नेतृत्व बिक जाता है या फिर लालच में आ जाता है। राहुल गांधी यात्रा के दौरान गरीब, किसान और निचले और उपेक्षित तबके की बात कर रहे हैं।
मुझे लगता है कि प्रदेश के नेता प्रदेश के मुद्दों को सही दिशा में उठाने व ले जाने की कोशिश करेंगे तो असर जरूर पड़ेगा, क्योंकि कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी हो, गांधी परिवार सर्वमान्य नेतृत्व करने वाला परिवार है। इस कारण BJP की कोशिश होगी कि मध्यप्रदेश में इस यात्रा को विवादित बनाए, लेकिन मौका तो कांग्रेस के लोग ही दे रहे हैं। यदि नेता एकजुट होकर कोशिश नहीं करेंगे तो यात्रा का बहुत असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में सवाल है कि क्या राहुल गांधी की प्रदेश में 370 किमी की यात्रा से कांग्रेस की साल 2023 विधानसभा चुनाव में भाग्य पलटेगी?
भावनात्मक रूप से भी अहम थी यहां से शुरुआत
राहुल गांधी के लिए दक्षिण के इस राज्य से अपनी यात्रा की शुरुआत सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से नहीं भावनात्मक रूप से भी अहम थी। श्रीपेरंबदूर में अपने पिता राजीव गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित कर राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा शुरू की थी। 8 सितंबर को जब राहुल की पदयात्रा सड़कों पर शुरू हुई तो उन पर कमेंट किया जा रहा था कि ट्विटर की पार्टी सड़क पर उतरी है। तमिलनाडु की 39 सीटों में DMK-कांग्रेस गठबंधन ने 38 सीटों पर कामयाबी मिली। कांग्रेस को केवल 8 सीटें और एक सीट अन्ना DMK को मिली थी। तमिलनाडु में BJP कैडर और सीट के नजरिए बेहद कमजोर है, इसलिए उसकी क्रांतिकारी बढ़त की संभावना कम है। यहां DMK कांग्रेस की सहयोगी दल है।
11% ज्यादा वोट मिले थे, अब यात्रा से उम्मीद
2021 में केरल विधानसभा चुनाव इसका अपवाद था, जब LDF ज्यादा सीट और वोट शेयर के साथ सत्ता कायम रखने में सफल हुई थी। राहुल गांधी के केरल चुनाव प्रचार में सक्रियता के बावजूद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई। 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 20 सीटों में कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन UDF ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी। इतना ही नहीं गठबंधन को LDF के मुक़ाबले 11% ज्यादा वोट मिले थे। राहुल गांधी का वायनाड से सांसद होना, कांग्रेस का केरल में मुख्य विपक्षी दल होना और कार्यकर्ताओं में मायूसी के माहौल में इस यात्रा की सफलता कांग्रेस के लिए आसान नहीं थी, लेकिन हाल में हुए एक सर्वे में यह भी जाहिर हुआ है कि केरल के अलावा तमिलनाडु में राहुल गांधी काफी लोकप्रिय हैं।
7 लोकसभा और 21 विधानसभा सीटें कवर
कर्नाटक हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भी जब पूरा उत्तर भारत सूखा था। तब कांग्रेस को कर्नाटक की 28 में से 24 सीटें मिली थीं। ये भी सच है कि कई बार कांग्रेस की टूट की जड़ कर्नाटक ही रहा है। यहां विधानसभा चुनाव भी नजदीक है। ऐसे में राज्य के नेताओं के लिए यह मौके पर चौका लगाने की बात थी।
यात्रा का रूट और सियासी समीकरण देखें तो कर्नाटक में यात्रा 7 जिलों के 7 संसदीय चामराजनगर, मैसूरू, मांड्या, तुमकुर, चित्रदुर्ग, बेल्लारी और रायचूर से होकर गुजरी। इन सात संसदीय इलाकों में कम से कम 21 विधानसभा सीट हैं। यहां 2018 के चुनाव में 224 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 80 सीटें, BJP ने 104 सीटें, JDS ने 30 सीटें जीती थीं। निर्दलीयों के पास 5 सीटें थीं, लेकिन इस बीच कांग्रेस के कई विधायकों के पार्टी छोड़ने के चलते हुए उपचुनावों के बाद आज संख्या बल के लिहाज से BJP 120 तो कांग्रेस 69 पर पहुंच चुकी है।
2019 में कांग्रेस को मिले थे नोटा से भी कम वोट
सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के लिए यात्रा का एक ऐसे राज्य में प्रवेश करना था, जहां पर 2014 हो या 2019 पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी। कांग्रेस विधानसभा या लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। आंध्र एक समय में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था। 2004 में कांग्रेस की वापसी में आंध्रप्रदेश की अहम भूमिका रही थी। सियासी हालत ऐसे बदले कि कांग्रेस के लिए आंध्रप्रदेश की राजनीतिक जमीन सूखी पड़ गई है। आंध्रप्रदेश में 2019 के चुनावी समर में कांग्रेस को 1.29% वोट मिले थे, जो नोटा से भी कम थे। साल 2014 में कांग्रेस के गिरे ग्राफ के पीछे राज्य का विभाजन और तेलंगाना का गठन वजह रहा तो 2019 के चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) का उभरना जिसका कांग्रेस को एहसास था।
सिर्फ 3 सांसद और 5 विधायक
एक समय ऐसा था, जब आंध्रप्रदेश कांग्रेस के लिए ब्रह्मास्त्र से कम नहीं था। साल 2009 के आम चुनाव में 42 में से 33 सांसद यूनाइटेड आंध्र से आते थे। 2014 से कांग्रेस को तेलंगाना में भी हार का सामना करना पड़ा है। अब 8 साल बाद भी पार्टी के तेलंगाना से सिर्फ 3 सांसद और 5 विधायक हैं। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में पार्टी को 18 सीटें मिली थीं। एक साल बाद ही 12 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। तेलंगाना कांग्रेस में आपसी तनातनी चल रही है। 2014 से 2019 तक राहुल गांधी यहां आते रहे हैं। हाल ही में वारंगल में राहुल गांधी की बड़ी रैली हुई थी, जिसमें आई भीड़ को देख कांग्रेस में कुछ उम्मीद जगी है।
15 विधानसभा व 6 लोकसभा सीटों पर असर
यात्रा ने महाराष्ट्र में 14 दिन में छह जिले हंगोली, वाशिम, अकोला, नांदेड़, बुलढाणा और जलगांव का सफर पूरा किया। इस दौरान 15 विधानसभा और 6 लोकसभा सीटें कवर हुईं। इस यात्रा में महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और उद्धव ठाकरे की शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे शामिल हुए। उन्होंने राहुल गांधी के साथ मार्च भी किया। महाराष्ट्र के करीब 250 बड़े साहित्यकारों ने भी राहुल की यात्रा को समर्थन दिया। बता दें, पिछले विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं। वह शिवसेना के नेतृत्व में बनी महाराष्ट्र विकास महाअघाड़ी में तीसरी पार्टनर थी। यहां BJP (105) के बाद शिवसेना को 56 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 54 सीटें मिली थी। तीनों ने मिलकर सरकार तो बनाई, लेकिन वह 2 साल भी पूरा नहीं कर पाई।
झालवाड़ा से एंट्री, क्या वसुंधरा के किले में सेंध लगा पाएंगी कांग्रेस
राहुल जिस झालावाड़-बारां संसदीय इलाके से राजस्थान में एंट्री ले रहे हैं, वहां पिछले 9 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। यहां 5 बार पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और 4 बार से लगातार उनके पुत्र दुष्यंत सिंह (1989 से 2019 से अब तक ) सांसद हैं। इसके बाद यात्रा कोटा, बूंदी और सवाई माधोपुर, दौसा होते हुए अलवर पहुंचेगी। अलवर जिले से वह हरियाणा के झिरका और फिर पंजाब के फिरोजपुर में प्रवेश करेगी।
पूरे रूट में राजस्थान ही ऐसा जहां कांग्रेस सत्ता में
राहुल गांधी ने यात्रा केरल से शुरू की जो तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के बाद यात्रा 4 दिसंबर की रात करीब 9 बजे राजस्थान में एंट्री लेगी। खास बात यह है कि कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक यात्रा के रूट में राजस्थान ही एक मात्र राज्य है, जहां कांग्रेस सत्ता में है। वर्ष 2023 के दिसंबर में राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और फिर छह महीने बाद ही मई-2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में इन दोनों चुनावों में इस यात्रा का प्रभाव पड़ना तय है, क्योंकि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें नहीं हैं, वहां भी राहुल गांधी और उनकी यात्रा को बेहतर रिस्पॉन्स मिला है।
यात्रा से 60 विधानसभा और 9 लोकसभा सीटों पर नजर
यह यात्रा दक्षिण-पूर्वी राजस्थान से उत्तर-पूर्वी राजस्थान तक 521 किमी की दूरी कवर करेगी। इस क्षेत्र में लगभग 60 सीटों पर इसका खास असर होगा, क्योंकि राहुल गांधी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस बीच इस इलाके में होंगे। कांग्रेस इस दौरान ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट (ERCP) पर भी भाजपा को घेरेगी। यह मुद्दा पहले से ही कांग्रेस और भाजपा के बीच गरमाया हुआ है। इन 60 विधानसभा सीटों के अलावा 9 लोकसभा सीटों का प्रभाव होगा।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आज खंडवा जिले में है। मध्यप्रदेश में ये यात्रा का दूसरा दिन है। यात्रा खंडवा के बोरगांव बुजुर्ग से शुरू हुई। कन्याकुमारी से शुरू इस यात्रा का आज 78वां दिन है। पहली बार प्रियंका गांधी यात्रा में शामिल हुईं। पति रॉबर्ट वाड्रा और बेटे रेहान वाड्रा भी साथ हैं। प्रियंका हिमाचल प्रदेश के चुनाव में व्यस्त थीं। कन्हैया कुमार और सचिन पायलट भी साथ चल रहे हैं।