महत्वपूर्ण शख्सियत को लेकर आम जनता की टिप्पणी को इग्नोर किया जा सकता है‚ मगर किसी प्रतिष्ठित पद पर बैठा शख्स अगर किसी के बारे में नासमझी भरा बयान दे तो यह घोर निंदनीय है। कोढ़ में खाज यह कि बढ़े ओहदे वाले बार–बार बड़़ी गलती कर रहे हैं‚ जो माफी योग्य नहीं है। ठीक है कि बयान देने के बाद उससे पीछे हटना या मीडि़या पर ठीकरा फोड़़ना अपने ‘पाप’ से पीछा छुड़़ाने का शार्टकर्ट रास्ता है‚ मगर ऐसा क्यों होता है‚ इस बारे में गहरी मीमांसा की दरकार है। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोशयारी इन दिनों सुर्खियों में हैं। उनके शिवाजी महाराज पर दिए गए बयान की चहुंओर भर्त्सना हो रही है। दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने शिवाजी महाराज को ‘पुराने जमाने’ का आइकन बता दिया और उनकी तुलना करते हुए नितिन गडकरी को आज का हीरो बताया। क्या कोई देशवासी खासकर महाराष्ट्र की जनता कोश्यारी के बयान से इत्तेफाक रखेगीॽ शायद नहीं। अब भले कोशयारी अपने विवादित बयान को ‘भारी चूक’ बता रहे हों‚ मगर ये चूक अक्षम्य है। कोशयारी की गलती एक बार की नहीं है। इससे पहले उन्होंने कहा था कि‚ ‘मैं यहां के लोगों को बताना चाहता हूं कि अगर गुजरातियों और राजस्थानियों को महाराष्ट्र खास तौर पर मुंबई और ठाणे से हटा दिया जाए तो आपके पास पैसे नहीं रहेंगे और न ही मुंबई वित्तीय राजधानी बनी रह पाएगी। वहीं कुछ वर्ष पहले जीवन में गुरु के महत्व को रेखांकित करते हुए कोश्यारी ने कहा था कि शिवाजी महाराज के जीवन में रामदास स्वामी की भूमिका उतनी ही अहम थी‚ जितनी चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने में चाणक्य की। दरअसल‚ इस तरह की सतही और ओछी बात अनायास नहीं निकलती। क्या ऐसे बयानों से बचा नहीं जा सकताॽ अब बात करते हैं पश्चिम बंगाल के कैबिनेट मंत्री अखिल गिरि की। गिरि ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के रंग के बारे में बेहद आपत्तिजनक बयान दिया। राष्ट्रपति के रंग को लेकर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा‚ ‘वह राष्ट्रपति पद का सम्मान करते हैं‚ लेकिन आपकी राष्ट्रपति कैसी दिखती हैंॽ बहरहाल‚ ऐसे बयानवीरों से भारतीय राजनीति भरी पड़़ी है। जो लोग जनता के आदर्श हैं‚ प्रेरणास्रोत हैं; उनके बारे में सरकार के उचे ओहदों पर बैठे लोग ऐसे छुटपन की बातें करेंगे तो वाकई तकलीफदेह है। ममता तो राष्ट्रपति के खिलाफ अपने मंत्री के बयान पर माफी मांग चुकी हैं‚ राज्यपाल की गलती पर कौन माफी मांगेॽ
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