भारत की पहली महिला पीएम इंदिरा गांधी (Indra Gandhi) की आज जयंती है. हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ( Pandit Jawaharlal Nehru) की वे पुत्री थीं. उनका जन्म 19 नवंबर 1917 में हुआ था. इंदिरा गांधी शुरूआत से अपने पिता के नक्शे कदमों पर चल रही थीं. मात्र 11 वर्ष की उम्र में इंदिरा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बच्चों की वानर सेना को तैयार किया था. वे 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गईंं. जब जवाहरलाल नेहरू पीएम बने तो इंदिरा ने सरकार के लिए कार्य करना जारी रखा. उन्हें शुरूआत में मूक गुड़िया कहकर भी पुकारा गया. पंडित नेहरू के बाद इंदिरा ने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली. वे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. उन्होंने अपनी सरकार में कई अहम निर्णय लिए. कई फैसले काफी दमदार थे. इन निर्णयों की बदौलत उनका नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया. आइए जानते हैं उनके कुछ बड़े फैसले जिसने देश को प्रभावित किया.
देश में बैंकों का राष्ट्रीयकरण
इंदिरा सरकार में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया. 19 जुलाई, 1969 को एक अध्यादेश लाया गया. यह 14 निजी बैंको के राष्ट्रीयकरण के लिए था. इन 14 बैंकों में देश का करीब 70 फीसदी पैसा जमा था. अध्यादेश पारित होने के बाद इन बैंकों का मलिकाना हक सरकार के पास चला गया. इस तरह से आर्थिक समानता को बढ़ावा दिया गया.
1971 में पाकिस्तान को दी करारी हार
इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को ऐसा जख्म दिया, जिसे वह आज भी याद कर रोता है. 1971 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ. इसके बाद भारत के हाथों पाकिस्तान को शर्मनाक हार झेलनी पड़ी. पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए. दरअसल पाकिस्तान में उस समय सैन्य शासन था. उसकी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में जुल्म ढहा रखा था. इस कारण करीब एक करोड़ शरणार्थी भागकर भारत में आ गए. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बड़ा युद्ध हुआ. इसमें पाकिस्तान की शर्मनाक हार हुई. उसके 90 हजार सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया.
19 माह चला आपातकाल
इंदिरा गांधी सरकार में इमरजेंसी को लोग आज भी याद करते हैं. दरअसल इंदिरा गांधी के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक याचिका को दाखिल किया गया. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के खिलाफ निर्णय सुनाया. उन पर छह सालों के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई. उनसे संसद से इस्तीफा देने को कहा गया. मगर इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट का फैसला मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद देश में विरोध प्रदर्शन आरंभ हो गए. उनसे इस्तीफा देने की मांग की गई. 25 जून, 1975 को आपातकाल लगाया गया. बड़ी संख्या में विरोधियों को पकड़ा गया. भारत में इस दिन को काला दिन माना जाता है. आपातकाल करीब 19 माह तक रहा.
परमाणु परीक्षण की रखी बुनियाद
भारतीय इतिहास में 18 मई, 1974 का दिन अहम माना जाता है. इस दिन भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके दुनिया को हैरान कर दिया. इस ऑपरेशन को स्माइलिंग बुद्धा नाम दिया.
राजपरिवरों के लिए भत्ते को खत्म करना
भारत को आजादी मिलने के बाद से देश में रियासतों के विलय करने वाले राजपरिवारों का तय रकम राजभत्ते के रूप में मिलती थी. इस राशि को प्रिवी पर्स भी कहा जाता था. इंदिरा गांधी ने वर्ष 1971 में संविधान संशोधन के तहत इस तरह के चलन को पूरी तरह से खत्म कर दिया. इसे सरकारी धन की बर्बादी करार दिया.
ऑपरेशन मेघदूत के नाम से अभियान चलाया
पाकिस्तान ने 1984 में सियाचिन पर कब्जे का प्लान बनाया था. भारत को इसकी भनक लग गई थी. भारत ऑपरेशन मेघदूत के नाम से एक अभियान चलाया. इंदिरा गांधी ने इसकी मंजूरी दे दी. इसके बाद पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी.
आतंकवाद के खात्मे के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया
भारत के बंटवारे को लेकर जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके सैनिक अड़े हुए थे. उनकी मांग थी एक अलग देश खालिस्तान बनाया जाना चाहिए. देश की सेना से बचने के लिए भिंडरावाले और उसके साथी गोल्डन टेंपल में छिप गए. तब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ अभियान चलाया. इस ऑपरेशन में भिंडरवाले और उसके साथियों को मार गिराया गया. इसमें कुछ आम नागरिकों की भी मौत हो गई थी. इस अभियान का बदला लेने के लिए बाद में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई.
बिहार के बेलछी नरसंहार कांड ने पूरे देश की राजनीति को प्रभावित किया था। बेलछी नरसंहार में सारी मानवीय सीमा टूट गई थी। घटना के बाद पीड़ितों से मिलने इंदिरा गांधी खुद गांव पहुंची थी। इंदिरा गांधी की इस बेलछी यात्रा से कांग्रेस को संजीवनी मिली थी।
पटनाः बेलछी नरसंहार कांड भले बिहार के दुसाध जाति के दामन काल के रूप में जाना गया, मगर इसके फलाफल का दूसरा काल कांग्रेस के उत्कर्ष का भी रहा। यह वो कांग्रेस थी जो आपातकाल की जद में केंद्र से सत्ता विहीन हो चुकी थी और उस कांग्रेस की सिरमौर रही इंदिरा गांधी अपने पुत्र संजय गांधी की हार से दुःखी एकांतवास की परिधि में सत्ता की राजनीति से थोड़ी दूरी बना ली थी।
कांग्रेस के लिए संजीवनी बना बेलछी नरसंहार
दरअसल बेलछी कांड कुरमी बनाम दुसाध जाति के जातीय संघर्ष की कहानी है। भूमिपति और मजदूरी कर रहे जातियों का संघर्ष बिहार में यदा कदा होते रहा था। पर बेलछी नरसंहार में सारी मानवीय सीमा टूट गई। बिहार की यह ऐसी पहली घटना थी जब सामूहिक तौर पर दुसाधों को जिंदा जला दिया गया था। इस नरसंहार की लपट देश दुनिया के हर हिस्सों में उठी। इस घटना की आग से कांग्रेस राजनीति में भी गरमाहट आ गई। हालांकि इंदिरा गांधी इसे उस अंदाज में नहीं लिया जिस फलक पर उन्हें परिणाम मिला। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के रणनीतिकारों के पूरी तरह कन्विंस करने पर इंदिरा गांधी बिहार आई और बेलछी गांव की तरफ का रुख किया।
चुनावी संग्राम की तैयारी का था वक्त
दरअसल इंदिरा गांधी के हाथ से केंद्र की सत्ता चली गई थी। तब मोरारजी भाई के नेतृत्व में देश में जनता पार्टी की सरकार चल रही थी। बिहार में विधानसभा चुनाव की धमक बरकरार थी। तभी एक अविश्वसनीय घटना घटी और हथियारों से लैस एक गिरोह ने बेलछी गांव पर हमला बोल दिया। कहा जाता है कि चारों तरफ से घेर कर गोलियों की बौछार कर दी गई। करीब दर्जन भर लोगों को जिंदा जला दिया गया। यह आग की लपट इतनी उठी कि विश्व की मानवता कलाप उठी। मरने वालों में 8 पासवान और 3 सुनार जाति के लोग थे। तब यहां कर्पूरी ठाकुर की सरकार थी। पूरी सरकार इस घटना से हिल चुकी थी।
ऐसे में इंदिरा गांधी का आना
घटना के बाद उस अग्नि में स्वाहा पासवान समाज की पीड़ा जानने के लिए इंदिरा गांधी बेलछी पहुंच गई। इंदिरा गांधी की ये बेलछी यात्रा भारतीय राजनीति के लिए यादगार बन गई।
दुर्गम पथ भी बाधा नहीं बनी
बेलछी के घटनास्थल तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान नहीं था। वहीं जिस दिन इंदिरा गांधी ने बेलछी जाने का निर्णय लिया, उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी। परंतु इंदिरा गांधी अपने मकसद से हटी नहीं। फ्लाइट से पटना पहुंची इंदिरा गांधी वाया कार बेलछी की ओर चली। पर किचड़ों से सनी राह पर जब कार आगे नहीं बढ़ पाई, तो प्रत्यक्षदर्शी कहते है कि पहले ट्रैक्टर लाया गया। बाद में हाथी लाया गया। और इस हाथी पर चढ़ कर वे बेलछी गई। कहते हैं कि नदी पार करते इंदिरा गांधी की साड़ी भींग चुकी थी। और पल्लू किए इंदिरा गांधी जैसे पीड़िता के बीच पहुंची कि कांग्रेस की राजनीति अपने उत्कर्ष पर थी। प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी का आगमन तब तक एक नजीर बन चुका था। भाव विह्वल महिलाओं की दी साड़ी इंदिरा ने उनकी झोपड़ी में बदली, तो देश की राजनीति का एक चोला उतर चुका था। आंसुओं से भरी महिलाएं जब व्यथा सुना रही थी, उन्हीं आंसुओं में जनता दल के दफन होने की कहानी लिखी जा रही थी। बेलछी कांड और इंदिरा गांधी का बेलछी जाने की घटना ने पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया। खुद इंदिरा गांधी ने चिकमंगलुर का चुनाव जीता और 1980 में तो कांग्रेस ने केंद्र में जोरदार वापसी की।
क्यों हुआ बेलछी कांड
दरअसल यह महावीर महतो और सिंधवा के बीच की दुश्मनी का नतीजा था। महावीर महतो गरीब हरिजनों की जमीनों पर कब्जा कर अपनी संपत्ति बढ़ाना चाहता था। सिंधवा इसका विरोध करता था। कहते हैं कि सिंधवा ने महावीर के विरुद्ध हरिजन-दुसाधों को इकट्ठा किया। सिंधवा ने प्रतिज्ञा ली कि महावीर को गांव में नहीं घुसने देगा और किसी की फसल नहीं लूटने देगा। बस यहीं से यह लड़ाई कुर्मियों बनाम हरिजनों की हो गई। इसी बीच महावीर के एक आदमी की हत्या हो गई। यहीं से कुर्मी की नाराजगी हद पार की। कहते हैं कि कुर्मियों के पहले हमले को बेकार कर दिया गया। जब और मजबूती से दूसरा हमला हुआ तो दुसाध ग्रुप कमजोर पड़ गया। कहा जाता है सुबह 10 बजे से गोलीबारी शुरू हुई और शाम गोलियां तक चलती रही।
कहा जाता है कि पहले धोखे से सिंधवा और उसके लोगों को घर से बाहर निकाला गया। फिर जुलूस की शक्ल में सबको गांव के बाहर ले जाया गया। वहां इन लोगों को गोली मारकर आग में झोंक दिया गया।