गुजरात विधानसभा चुनाव की दुंदुभी बज चुकी है. सभी राजनीतिक दलों ने अपने रथियों को मैदान में उतार दिये हैं. भारी भरकम सेना के साथ सभी रथी चुनावी महाभारत में उतर चुके हैं. इन रथियों में कईयों की पहचान अतिरथी की है, तो कई महारथी भी चुनावी युद्ध में ताल ठोंक रहे हैं. बहुत सारे योद्धाओं ने चुनाव से पहले पाले भी बदले हैं, तो कुछ ने समय रहते अपने पालों की खुद ही पहचान कर ली थी. पाला बदलने वालों में हार्दिक पटेल से लेकर तमाम नाम हैं. ये पाले तमाम समीकरणों को ध्यान में रखकर बदले गए हैं. कुछ ने अपनी जड़ों को काटकर नई जड़ें जमाने की कोशिश की है, तो कुछ ने वटवृक्षों के नीचे ही खुद के सर्वाइवल को अपना मुस्तकबिल मान लिया है. बहरहाल, अब मुख्य मुद्दे की तरफ देखें तो हेडलाइन में ‘KOKAM, KHAM, OPT’ का जिक्र आया है. इस बारे में ज्यादा कुछ जानने वाले लोग या तो गुजरात में ही मिलेंगे, या फिर राजनीतिक खेलों के माहिर खिलाड़ी ही इनकी तह तक पड़ताल कर पाएंगे. वैसे, इसमें ‘KHAMP’ का जिक्र छूट गया है, जो KHAM का ही विस्तारित स्वरूप है. लेकिन एक चुनाव में ये फॉर्मूला थोड़े अंतर की वजह से प्रत्याशित परिणाम हासिल करने से चूक गया था.
‘KHAM, KOKAM, KHAMP और OPT फॉर्मूला’
गुजरात की राजनीति भी भारत के अन्य राज्यों से अलग नहीं है. जाति, समुदाय, क्षेत्र आधारित राजनीति ही गुजरात की जड़ों में है. इन सबकी शुरुआत का श्रेय भी कांग्रेस से जुड़े नेताओं को ही जाता है. चूंकि विभाजन जैसी चीजों को देखने का अनुभव भी उनके पास अधिक रहा था. फिर खुद गुजरात की नींव ही विभाजन, हिंसा पर रखी गई थी. चूंकि आजादी से पहले गुजरात का वजूद नहीं था. गुजरात बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. व्यापारी पूरे भारतवर्ष में फैले हुए थे. लेकिन गुजरात राज्य बनने के बाद के 20 सालों में वहां की जनता का राजनीतिक विभाजन जितना हुआ, उतना पहले कभी नहीं हुआ था. कांग्रेस ने सत्ता में पकड़ बनाए रखने के लिए KHAM थ्यौरी पेश की. माधव सिंह सोलंकी खाम थ्यौरी के प्रणेता माने जाते हैं, जिसने उन्हें 1980 की दशक में जोरदार सफलता दिलाई. इसकी काट में जनता मोर्चा ने KOKAM थ्यौरी पेश की. फिर KHAM का विस्तार माधव सिंह सोलंकी के बेटे भारत सिंह सोलंकी ने 2017 के चुनाव में की. KHAM के साथ उन्होंने P को जोड़ने की कोशिश की, जो अंशत: उनके साथ जुड़ा भी. कांग्रेस को सफलता भी मिली, लेकिन इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली कि उन्हें सत्ता मिल सके. इस बीच बीजेपी लगातार OPT के फॉर्मूले पर चलती रही, जिसमें T कभी जुड़ा तो कभी छिटकता गया. लेकिन बीजेपी के पास सत्ता अनवरत रूप से पिछले 27 सालों से है.
क्या है ‘KHAM, KOKAM, KHAMP और OPT’ मतलब?
KHAM: K=Koli Kshatriya, H=Harijan, A=Adivasi और M= Muslim. ये फॉर्मूला बेहद सफल रहा. माधव सिंह सोलंकी 1980 में राज्य के मुख्यमंत्री बने. उन्होंने ओबीसी आरक्षण कोटा लागू किया. जिसके बाद गुजरात में हिंसा भड़क उठी. गुजरात में 1981 से 1985 तक नव निर्माण के नाम पर आरक्षण विरोधी प्रदर्शन हुए. और पहली बार ओबीसी की वोटबैंक वाली ताकत को पूरा हिंदुस्तान समझ पाया. प्रदर्शनों की वजह से माधवसिंह सोलंकी को इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन इस फॉर्मूले की वजह से 1985 के चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत (182 सीटों में से 149 सीटों पर जीत) मिला. गुजरात में कथित अगड़ी और अमीर जातियां राजनीतिक रूप से अप्रभावी हो गईं. पहली बार कांग्रेस को आदिवासी मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी के रूप में मिला. 4 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अमर सिंह की जगह फिर से माधव सिंह सोलंकी मुख्यमंत्री बने. अगला चुनाव उन्हीं की अगुवाई में लड़ा गया. लेकिन जब तक चिमनभाई पटेल इसकी खाट खोज चुके थे.
KOKAM: चिमनभाई पटेल कांग्रेस नेता थे. गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके थे. लेकिन सत्ता से हटने के बाद खुद की पार्टी बनाई. जनता मोर्चा, जनता दल और जनता दल (गुजरात) जैसे दलों में रहे. साल 1985 में खाम की वजह से सत्ता से बाहर रहे, लेकिन 1990 में उन्होंने KOKAM थ्यौरी के दम पर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. कोकम का मतलब है : KO=Kolis, KA=Kanbi और M=मुस्लिम. इस चुनाव में उनकी पार्टी ने 70 सीटों पर जीत दर्ज की. भारतीय जनता पार्टी के साथ उन्होंने सरकार बनाई. केंद्र से लेकर राज्यों तक मंडल-कमंडल की राजनीति बढ़ गई. फिर भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल से समर्थन वापस ले लिया. सरकार फिर भी नहीं गिरी. चिमनभाई पटेल कांग्रेस के पुराने नेता थे. संबंध काम आए. कांग्रेस के 34 विधायकों ने उनकी सरकार को समर्थन दे दिया. चिमनभाई पटेल 1994 में अपनी जिंदगी के आखिर दिन तक मुख्यमंत्री रहे. उनकी मौत के बाद छाबिलदास मेहता मुख्यमंत्री बने और सरकार पूरे 5 साल तक रही. ये आखिरी बार था, जब गुजरात में कांग्रेस सत्ता में रही. इसके बाद वो हमेशा विपक्ष में बैठने को अभिशप्त हो गई.
KHAMP: साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी ने खांप फॉर्मूले पर आगे बढ़ने का निश्चल किया. उन्होंने अपने पिता के खाम फॉर्मूले में उस P को जोड़ने का प्रयास किया, जिसने उनके पिता के KHAM फॉर्मूले की वजह से हमेशा के लिए कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था. पाटीदार आंदोलन के बाद P यानी पटेलों का बीजेपी से मोहभंग होता देख भारत सिंह सोलंकी ने इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया. KHAMP का मतलब है: K=Kshatrita Koli, H=Harijan, A=Adiwasi, M=Muslim और P=Patidars खासकर पटेल. कांग्रेस को सफलता तो मिली, लेकिन बहुमत से चूक गई. कांग्रेस ने 1985 के बाद सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया. 41.4 प्रतिशत वोटों के साथ 77 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली. हालांकि OTP फॉर्मूले के दम पर बीजेपी 49.1 फीसदी वोटों के साथ 99 सीटें जीतने में सफल रही. इसका मतलब हुआ कि KHAMP का P यानी पाटीदार पूरी तरह से कांग्रेस के पास नहीं जा पाया. गुजरात में पाटीदार भले ही 11 फीसदी की आबादी वाले हों, लेकिन सबसे मजबूत इन्हें माना जाता है.
OPT: ये बीजेपी का विनिंग फॉर्मूला है. इसमें O=OBC, P=Patidars (Patel) और T=ट्राइबल यानी आदिवासी. इसके अलावा 5 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण, बनिया, पारसी, जैन व अन्य समुदाय भी बीजेपी के साथ पारंपरिक रूप से माने जाते हैं. अगर अभी ओपीटी की बात करें तो ओबीसी 48 फीसदी हैं. पाटीदार राज्य में 11 फीसदी हैं, तो आदिवारी करीब 15 फीसदी. इस तरह से ओपीटी फॉर्मूले के तहत राज्य के 74 फीसदी जनता आ जाती है. इसमें कुछ स्थानीय समीकरणों की वजह से पाला बदलते भी हैं, तब भी बीजेपी पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. वो पिछले 27 सालों से विजय रथ पर सवार है. इस बार वो पिछली बार के नाराज पाटीदारों को मनाने में सफल दिख रही है.
आप लगा पाएगी सेंध?
आम आदमी पार्टी गुजरात में अपनी जड़े जमाने की कोशिश कर रही है. पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. आम आदमी पार्टी की निगाहें उसी मतदाता वर्ग पर हैं, जो आम तौर पर बीजेपी का मतदाता वर्ग माना जाता है. पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर भी चलती दिख रही है. वहीं. बीजेपी अपनी ताकत को फिर से एकजुट कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह ने खुद मोर्चा संभाला हुआ है. कई पुराने नेताओं का टिकट काट दिया गया है. इसके अलावा बीजेपी हर उस जमीनी फॉर्मूले को चुनाव में लागू कर रही है, जो उसे जीत दिलाता दिख रहा है. ऐसे में ओपीटी अभी तो बीजेपी के साथ ही खड़ा दिख रहा है. लेकिन आम आदमी पार्टी इसमें कितना सेंध लगा पाती है, इसका पता तो चुनावी नतीजों के सामने आने के बाद ही चल पाएगा.