भारत और चीन के बीच हिंद महासागर अब पिछले 10 वर्षों में टकराव का नया केंद्र बनता रहा है। चीन ने दुनिया पर राज करने के लिए सबसे बड़ी नौसेना बना ली है। चीनी सेना के युद्धपोत मलक्का स्ट्रेट के रास्ते अफ्रीका के जिबूती स्थित नेवल बेस तक गश्त लगा रहे हैं। यही नहीं चीनी जासूसी जहाज लगातार हिंद महासागर में टोह की फिराक में आ रहे हैं। पीएलए की पनडुब्बियों का हिंद महासागर का दौरा भी तेज हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति के तहत हिंद महासागर में भारत की घेरेबंदी करने में जुट गया है। चीन को करारा जवाब देने के लिए अब भारत ने भी कमर कस ली है और फ्रांस तथा जापान के साथ मिलकर ड्रैगन के खिलाफ ‘नेकलेस ऑफ डॉयमंड’ नीति को मजबूत करने में जुट गया है। इसी रणनीति के तहत भारत का समुद्री शिकारी पी-8 आई विमान फ्रांस के रियूनियन द्वीप नेवल बेस पर उतरा है। वहीं जापान में भी भारतीय नौसेना के युद्धपोत पहुंचे हैं।
भारतीय नौसेना ने तीसरी बार बेहद शक्तिशाली पी-8 आई निगरानी विमान को रियूनियन द्वीप पर उतारा है। भारत ने यह कदम ऐसे समय पर उठाया है जब चीन ने पश्चिमी हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी को काफी बढ़ा दिया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि चीन अफ्रीका में एक और नेवल बेस बनाने जा रहा है। इससे पहले साल 2020 में भारतीय नौसेना ने अपने इस शिकारी को रियूनियन द्वीप पर उतारा था। यही नहीं भारतीय विमान ने इस इलाके में तैनात फ्रांस के युद्धपोतों के साथ मिलकर सर्विलांस का काम किया था। भारत ने इस विमान को ऐसे समय पर रियूनियन भेजा है जब भारत ने पहले त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को दो पूर्व अफ्रीकी देशों तंजानिया और मोजांबिक के साथ मिलकर अंजाम दिया है। यह अभ्यास पश्चिमी हिंद महासागर में अफ्रीका महाद्वीपी के पूर्वी तट पर अंजाम दिया गया।

स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स बनाम नेकलेस ऑफ डायमंड
स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स बनाम भारत का नेकलेस ऑफ डायमंड
भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिए मोजाबिंक चैनल समेत दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर, चीनी के भारी भरकम निवेश वाले पूर्वी अफ्रीकी तट को बेहद अहम मानता है। विश्लेषकों का मानना है कि ये अभ्यास हिंद महासागर में पूर्वी अफ्रीकी देशों और द्वीपीय देशों के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है। पिछले कुछ वर्षों में हिंद महासागर भारत और चीन के बीच टकराव का नया केंद्र बनता जा रहा है। भारत ने चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स की नीति को मात देने के लिए नेकलेस ऑफ डायमंड नीति को मजबूत करना शुरू किया है। हिंद महासागर दुनिया के लिए बहुत ही अहम है। दुनिया का दो तिहाई तेल, एक तिहाई सामान और विश्व के आधे कंटेनर इसी हिंद महासागर के रास्ते से होकर गुजरते हैं।
चीन ने साल 2017 में जिबूती में पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाया
यही वजह है कि भारत इस पूरे क्षेत्र में अपनी पहुंच को बढ़ा रहा है। भारत लक्षद्वीप में नेवल बेस बना रहा है। यही नहीं भारत मारिशस समेत अफ्रीकी देशों के साथ-साथ वियतनाम और जापान के साथ भी रिश्ते मजबूत कर रहा है। भारत लगातार जापान और अमेरिका की नौसेना के साथ प्रशांत महासागर में अभ्यास करता रहता है। चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के कम से कम 17 बंदरगाहों में निवेश किया है। इससे पश्चिमी हिंद महासागर में चीन की उपस्थिति बहुत ज्यादा बढ़ गई है। चीन ने साल 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाया था। विशेषज्ञों का कहना है कि इन जगहों का इस्तेमाल चीन अपने सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर सकता है। चीनी नौसेना को इस इलाके में लंबे समय तक वह तैनात कर सकता है।
मॉरिशस के अगालेगा द्वीप में सैन्य ठिकाना बना रहा भारत
चीन ने साल 2008 में समुद्री लुटेरों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर अपने युद्धपोतों को हिंद महासागर के इस इलाके में भेजना शुरू किया था। साल 2013 में चीन ने अपनी परमाणु पनडुब्बी को इस इलाके में भेजकर अपने इरादे साफ कर दिए। अब चीन ने जिबूती में सबमरीन और एयरक्राफ्ट कैरियर को खड़ा करने की सुविधा बना रहा है। भारत खुद को हिंद महासागर में सुरक्षा देने वाला और मदद करने वाला देश मानता है। भारत ने इंडोनेशिया से लेकर मोजांबिक तक को मानवीय मदद दी है। भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीपीय देशों के साथ करीबी रक्षा संबंध बनाए हैं। भारत मॉरिशस के अगालेगा द्वीप में सैन्य ठिकाना बना रहा है जो जून 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगा। इस अड्डे पर 3000 मीटर लंबा रनवे भी होगा। इससे भारत इस इलाके में चीन को करारा जवाब दे सकेगा। भारत अपने समुद्री शिकारी पी-8 आई को तैनात कर सकेगा। भारत पहले ही फ्रांस के रियूनियन, जापान और अमेरिका के विभिन्न सैन्य अड्डों के लिए करार कर चुका है। भारत चीन की पनडुब्बियों का शिकार करने के लिए बड़े पैमाने पर अमेरिका से पी 8 आई विमान खरीद रहा है।