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US MidTerms अहम क्यों? जनता देगी ताकत या शक्तिहीन हो जाएंगे बाइडेन?

UB India News by UB India News
November 6, 2022
in अन्तर्राष्ट्रीय, खास खबर
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US MidTerms अहम क्यों? जनता देगी ताकत या शक्तिहीन हो जाएंगे बाइडेन?
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अमेरिका में हर चार साल में ओलंपिक गेम्स की तरह राष्ट्रपति चुनाव होते हैं. और विंटर गेम्स की तरह ‘मध्यावधि चुनाव’. इसे आसान भाषा में ‘मिड टर्म्स’ के नाम से जाना जाता है. अमेरिकी राजनीति (US Politics) में मध्यावधि (US Midterm Elections) में जीत का मतलब है कि किसी भी राष्ट्रपति के कामों को लेकर जनता की स्वीकार्यता पर मुहर. या यूं कहें कि राष्ट्रपति के काम से अमेरिकी जनता कितनी खुश है, क्या राष्ट्रपति को और पॉवर जनता दे सकती है या फिर नाराजगी में जनता विरोधी दल को इतनी सीटें जिता सकती है कि कोई राष्ट्रपति पूरी तरह से पंगु और बेबस हो जाए.

इन चुनाव में भले ही राष्ट्रपति जो बाइडेन चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी को कम सीटों पर जीत का मतलब है उनकी ताकत का खत्म होना. न तो वो मनमानी बिल पेश कर पाएंगे, न कानून बना पाएंगे, न ही किसी मद में खर्च बढ़ा पाएंगे. ऐसे में नकारा राष्ट्रपति का ठप्पा भी खुद पर लगवा सकते हैं. दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही अभी तक सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है, जब सत्ताधारी पार्टी को मिडटर्म्स या यूं कहें कि मध्यावधि चुनाव में जीत मिली हो. ये गणित दिखने में जितना आसान है, हकीकत में है उतना ही उलझा हुआ.

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US MidTerms का असली मतलब क्या?

US Midterms या अमेरिकी मध्यावधि चुनाव को साफ शब्दों में समझाएं तो इसका मतलब है अमेरिका के दोनों सदनों के सदस्यों का चुनाव. हालांकि इस चुनाव की वजह से राष्ट्रपति की कुर्सी नहीं जाती, लेकिन दांव पर बहुत कुछ लगा होता है. इसे यूं समझिए कि भारत में जैसे संसद के दो सदन हैं-लोक सभा और राज्य सभा. इसमें लोकसभा के लिए हर पांच साल में चुनाव होते हैं, जबकि राज्यसभा के सदस्य  साल के लिए चुने जाते हैं. वैसे ही अमेरिकी संसद को कांग्रेस कहते हैं और इसमें भी दो सदन हैं.  हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (House of Representatives) और अमेरिकी सीनेट. हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स को वहां की लोकसभा समझिए और सीनेट को राज्यसभा. हमारे राज्यसभा की तरह वहां के सीनेट सदस्य को भी 6 सालों के लिए चुना जाता है और दो तिहाई सदस्य हर दूसरे साल अपना पद छोड़ते हैं. उन सीटों पर चुनाव होता है. सीनेट में वहीं, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स का कार्यकाल महज 2 साल का होता है. एक बार इनका चुनाव राष्ट्रपति चुनाव के साथ होता है, तो दूसरी बार मिड टर्म्स में. इसके अलावा मिड टर्म्स में उन सभी कानूनों को भी रेफरेंडम (जनता की राय या मतदान) के लिए रखा जाता है, जिस पर जनता की सहमति जरूरी होती है.

मिड टर्म्स चुनाव में काफी कुछ दांव पर

  • यूएस सीनेट की 35 सीटों पर चुनाव
  • हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की 435 सीटों पर चुनाव
  • यूएस स्टेट गवर्नर की 36 सीटों पर चुनाव
  • 3 केंद्रशासित राज्यों के गवर्नर पद पर भी चुनाव
  • स्टेट सेक्रेटरीज की 27 सीटों पर चुनाव
  • 129 ऐसे मुद्दों पर रेफरेंडम, जिनपर जनता की राय मांगी गई है

US MidTerms में सीटों का गणित

अभी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में 2 सीटें खाली हैं. इसमें सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic party) के पास 221 सीटें हैं. तो विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी (Republican Party) के पास 212 सीटें. वहीं, सीनेट में दोनों ही पक्षों के पास 50-50 सीटें हैं. चुनावी इतिहास और पूर्वानुमानों के मुताबिक, इन चुनावों में रिपब्लिकन्स को बहुमत मिलने जा रहा है. चूंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सिर्फ एक बार को छोड़कर हमेशा से विपक्षी पार्टियों को बहुमत मिलता रहा है, ऐसे में अनुमान एक बार फिर से उसी तरफ हैं. वहीं, सीनेट में अगर रिपब्लिकन्स के पास बहुमत दो जाता है, तो ये राष्ट्रपति जो बाईडेन के लिए बेहद अपमानजनक स्थिति होगी. उनकी सरकार का हर प्रस्ताव सदन में गिर सकता है. हालांकि एक स्थिति ये भी है कि सीनेट की जिन 35 सीटों पर चुनाव होना है, उसमें से 14 सीटों पर ही डेमोक्रेटिक पार्टी का कब्जा है, जबकि रिपब्लिकन्स को अपनी 21 सीटें बचाने की चुनौती है.

ये ताकत का खेल है!

अभी सीनेट में संख्या बल के बराबर होने की वजह से उप राष्ट्रपति कमला हैरिस 26 प्रस्तावों पर टाईब्रेक का सामना कर चुकी हैं. इसका मतलब है कि उनकी सरकार के 26 प्रस्तावों पर जब वोटिंग हुई, तो उन्हें बहुमत नहीं मिला. बल्कि पक्ष के बराबर ही विपक्ष में भी वोट पड़े. ऐसी स्थिति में अगर रिपब्लिकन की संख्या ज्यादा हो जाएगी तो वो कोई प्रस्ताव पास ही नहीं करा पाएंगी. ऐसी स्थिति में रिपब्लिकन पार्टी अपने फैसलों को सरकार के ऊपर थोप सकती है, जिसमें राष्ट्रपति के बेटे के खिलाफ जांच की शुरुआत करने से लेकर किसी भी तरह की सरकारी नियुक्तियों को ब्लॉक करने की ताकत तक, सबकुछ रिपब्लिकन्स के पास आ जाएगी. और जो बाइडेन ‘असहाय’ राष्ट्रपति के तौर पर बदनाम हो सकते हैं. ऐसे में दो साल बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी की जीत की संभावनाएं काफी बढ़ जाएंगी. वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत की सूरत में जो बाइडेन (Joe Biden) शक्तिशाली राष्ट्रपति बनकर उभरेंगे.

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