अंततः 24 साल बाद कांग्रेस पार्टी ने एक गैर–परिवारी सदस्य को अपना अध्यक्ष चुन लिया। अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को 7897 और शशि थरूर को 1072 वोट मिले। परिणामों के अनुसार खड़गे ने भारी जीत दर्ज की‚ लेकिन इस परिणाम में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। आम धारणा के अनुसार खड़गे गांधी परिवार के अघोषित तौर पर घोषित प्रत्याशी थे। यह तथ्य उतना ही उजागर था जितना कोई भी अनुमानित तथ्य हो सकता है। इस परिणाम में पहली अप्रत्याशित बात यह थी कि गांधी परिवार के अघोषित प्रत्याशी के विरुद्ध शशि थरूर ने अपनी दावेदारी प्रस्तुत की और चुनाव लड़े। इसे थोड़े़ आश्चर्य के तौर पर लिया जाना चाहिए कि उन्होंने इतने वोट प्राप्त किए। इसका सीधा अर्थ है कि थरूर को वोट देने वाले सदस्य गांधी परिवार की लाइन के पिछलग्गू नहीं रहना चाहते। वे नीतिगत और संगठनगत असहमति व्यक्त करना चाहते हैं। परिवार समर्थक लोगों को भले ही थरूर की प्रत्याशिता पर नाराजगी हो‚ लेकिन सच बात यह है कि इससे कांग्रेस को थोड़ी गतिशीलता मिलेगी‚ उसके भीतर नीतिगत मुद्दों पर विचार–विमर्श होगा और इसके चलते उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस की उस भूमिका में जिसे लेकर वह निरंतर क्षरित हो रही है‚ सकारात्मक सुधार होगा। यह भी सर्वविदित है कि नवनिर्वाचित खड़गे कभी भी परिवार की छाया से बाहर नहीं आएंगे लेकिन अगर वह कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर पार्टी का भला चाहते हैं‚ तो उन्हें थरूर समर्थकों को न केवल सम्मान देना चाहिए‚ बल्कि नीतिगत मुद्दों पर उनसे सलाह भी लेनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो पार्टी के भीतर लोकतंत्र मजबूत होगा। खड़़गे के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि पार्टी के जनाधार में जो लगातार गिरावट आ रही है‚ उसे कैसे रोका जाए और कांग्रेस को कैसे भाजपा का उचित विकल्प बनाया जाए और कैसे अपनी खोई जमीन वापस ली जाए। अगर खड़़गे परिवार की छाया में रहकर पुरानी परिपाटी पर चलते हैं‚ तो किसी का भला नहीं होगा। इसलिए खड़गे के लिए आवश्यक होगा कि वह संगठन और कांग्रेस की विचारधारा के स्तर पर वांछित परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज करें और इस में सबसे पहले थरूर गुट का समर्थन हासिल करें।
तमिलनाडु में बागमती एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकराई, 12 डिब्बे उतरे, 19 यात्री घायल
तमिलनाडु में चेन्नई के पास मैसूर-दरभंगा बागमती एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से टकरा गई। 11 अक्टूबर रात 8:30 बजे हुए हादसे...