धार्मिक मान्यताओं में आम जन की आस्था के बरकरार रहने के लिए शासन व्यवस्थाओं की उदार प्रकृति अपरिहार्य है। आधुनिक विभिन्नताओं को भांपते हुए यूरोपियन देशों ने इसे तकरीबन पांच सौ साल पहले समझ लिया था‚ इसलिए वहां धर्म और सभ्यताएं फलते–फूलते आगे बढ़ी‚ जबकि एशिया और अमरीका के कई देशों की कई शासन व्यवस्थाओं ने धर्म को आधार बनाकर आस्था को थोपने की कोशिश की। लिहाजा कुछ देश टूट कर बिखर गए और अधिकांश देश गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच गएै। दरअसल‚ १९७९ की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान में धर्म को सत्ता के परिसंचलन का साधन बना दिया गया।
यह भी दिलचस्प है कि ईरान की जनता ने इस्लामिक क्रांति को राजतंत्र की समाप्ति और लोकतंत्र की शुरुआत के तौर पर देखा था‚ लेकिन ईरान में सत्ता के शिखर पर धर्म गुरु की ताजपोशी से लोकतंत्र के उदात्त चरित्र पर भारी चोट पहुंची और धर्मतंत्र की सर्वोच्चता को थोपने की ताकतवर कोशिशें की गई। खास कर इस्लामिक देशों में जनता का यह दुर्भाग्य रहा है कि वहां की स्थापित सत्ताएं वैधानिक नियमों को कुचलने को बेकरार रहती है और येन–केन कर सत्ता के शीर्ष पर काबिज रहने की उनकी कोशिशें ही जनता में हताशा और निराशा का कारण बन जाती है। मुसलमान कई पंथों में बंटे हैं और उनकी मान्यताएं एक दूसरे से टकराती रहती है। सत्ता से उपजी निराशा का फायदा कबीलों के सरदारों को मिलता है। ईरान‚ इराक‚ सीरिया‚ पाकिस्तान‚ अफगानिस्तान‚ लीबिया‚ लेबनान‚ सूडान से लेकर तुर्की जैसे देशों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
शिया बहुल ईरान अपनी नीतियों–रीतियों को लेकर वैसे ही पश्चिम के निशाने पर रहा है। अनेक वैश्विक प्रतिबंधों से जूझते इस देश में गरीबी और बेरोजगारी चरम पर है। शिया सुन्नी की प्रतिद्वंद्विता का असर इस देश पर खूब नजर आता है। इराक‚ सीरिया जैसे देशों में शिया समूहों को हथियारों की आपूर्ति ईरान की नीति रही है। सऊदी अरब से पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता के चलते अमेरिका से इस देश के संबंध बेहद खराब हैं। इजराइल को अपना सबसे बड़ा शत्रु बताने वाला ईरान मोसाद की आक्रामकता को बुरी तरह से भोगता रहा है। ईरान में खुफिया विभाग के अधिकारी यह स्वीकार करते हैं कि उनके देश के अंदर मोसाद का इतना असर है कि ईरानी नेतृत्व का हर सदस्य अपनी जिंदगी और इसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहता है। दो साल पहले ईरान के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या जिस प्रकार से की गई थी‚ उससे दुनिया अचंभित रह गई। इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का साथ देने के आरोप ईरान के कई महत्वपूर्ण सैन्य अधिकारियों और धर्मगुरु ओं पर लग चुके हैं। इन सबके बीच ईरान की सत्ता का ध्यान अपने देश की जनता की बेहतरी से ज्यादा जनता को दबाए रखने पर रहा है। १९७९ से पहले ईरान एक साम्यवादी देश होकर आधुनिकता के साथ आगे बढ़ रहा था‚ लेकिन देश में इस्लामिक क्रांति के बाद महिलाओं से कई अधिकार छीन लिए गए।
धर्मगुरुओं का राजनीति पर प्रभाव बढ़ा और इसका खामियाजा सबसे ज्यादा महिलाओं को भोगने को मजबूर होना पड़ा। इस देश में महिलाओं पर घरेलू हिंसा को सामान्य माना जाता है तथा इसे पारिवारिक मामला कह कर पुलिस भी नजरअंदाज करती है। इसी वजह से घरेलू हिंसा किसी महामारी की तरह फैल गई है। ईरान में महिलाएं कानून की नजर में भेदभाव का सामना करती हैं। वो शादी और तलाक‚ पारिवारिक संपत्ति पर हक‚ बच्चों पर हक‚ राष्ट्रीयता और अन्य देशों की यात्रा में भी भेदभाव झेलती हैं। धार्मिक मामलों पर सख्ती का असर यह हुआ है कि देश के लोगों का आस्था पर विश्वास कम हुआ है। इससे डरे हुए शिया धर्मगुरुओं ने देश में नैतिकता के नाम पर लोगों पर बेतहाशा अत्याचार शुरू कर दिए हैं। इस समय ईरान में जो सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं‚ वह दरअसल धार्मिक सत्ता का ही विरोध है। इस्लामिक सत्ता लोक कल्याणकारी कार्यों को नजरअंदाज कर धार्मिक कार्यों पर बेतहाशा पूंजी को खर्च करती है। इसका विरोध करने वालों को ईरान विरोधी बताकर जेल में डाल दिया जाता है। देश में मानवाधिकार संगठनों को चुन–चुन कर निशाना बनाया गया है‚ जिससे यहां काम करने वाले गैर सरकारी संगठन खत्म हो गए हैं। ईरान के कुरदस्तान प्रांत की २२ वर्षीया महसा अमीनी की पुलिस हिरासत में मौत का कारण ईरान में सामाजिक मुद्दों से निपटने के लिए मोरैलिटी पुलिस के अत्याचारों को माना जा रहा है।
मोरैलिटी पुलिस ईरान में सार्वजनिक तौर पर इस्लामी आचार संहिता को लागू करने के नाम पर महिलाओं को निशाना बनती रही है। ईरान में धार्मिक सत्ता का रु झान इस बात पर है कि जो लोग इस्लामिक कड़े कानूनों के तहत बर्ताव न करें‚ नास्तिकता की ओर बढ़ें या अन्य धर्मों की और रु झान बढ़ाएं तो इसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है। इस समय सरकार का विरोध देश की नौजवान पीढ़ी कर रही है। ये युवा दुनिया की तरह ईरान में स्वतंत्रता चाहते हैं और धार्मिक नेताओं के आतंक से मुक्ति चाहते हैं। करीब नौ करोड़ की आबादी वाले देश में अधिकांश लोग ईरान की इस्लामी व्यवस्था‚ उसके अलोकतांत्रिक चरित्र और विचारधारा से जुड़ी नीतियों में बुनियादी बदलाव चाहते हैं। सरकार विरोधी आंदोलन कुर्द्स्तान से लेकर तेहरान और पूरे देश में जोर पकड़ चुका है। ईरान के उत्तर पश्चिम में कुर्द हैं‚ जिनकी आबादी ७ से १० फीसद है। यह हिंसक आंदोलन कुर्द्स्तान से ही शुरू हुआ है।
गौरतलब है कि पुलिस अत्याचार से मरने वाली अमीनी कुर्द्स्तान की ही रहने वाली थीं। अलग कुर्द्स्तान की मांग मध्य पूर्व में सौ साल से रही है और इससे प्रभावित कई देश है। इस समय ईरान का आंदोलन नेतृत्वविहीन है‚ लेकिन यदि इसमें सरकार विरोधी धड़े और अन्य लड़ाकू संगठन शामिल हो गए तो निश्चित ही ईरान में गृहयुद्ध भडक उठेगा। अमेरिका‚ सऊदी अरब और इजराइल को ईरान में अस्थिरता का लंबे समय से इंतजार है। ईरान में जिस प्रकार सरकार विरोधी आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है‚ उससे लगता नहीं की यह अब जल्द थमेगा। जाहिर है मध्य पूर्व का एक और देश अस्थिरता की और तेजी से बढ़ रहा है।