DGP को अपने झांसे में लेने वाला अभिषेक अग्रवाल IAS-IPS से बड़ी आसानी से घुल-मिल जाता था। अभिषेक अग्रवाल की कुंडली EOU खंगाल रही है तो, कई चौंकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि अभिषेक अग्रवाल IAS, IPS, जज और नेताओं के पास पहुंचने के लिए अपनी बड़ी गाड़ी और महंगे गिफ्ट का प्रयोग करता था। अपने आप को बड़ा व्यापारी कहने वाला अभिषेक अग्रवाल अधिकारियों से ऐसे दोस्ती करता था जैसे उनका कोई सगा हो। अक्सर अधिकारियों से ‘फायदे की बात’ करता था। यह फायदा कई मायनों में अधिकारियों को लालची बना देता था।
अभिषेक अग्रवाल अधिकारियों से पहले ईमानदारी की बात करता था। अधिकारियों की खूब प्रशंसा करता था। धीरे-धीरे उनका करीबी हो जाता था, क्योंकि अभिषेक अधिकारियों को फायदा पहुंचाना चाहता था। दरअसल, अभिषेक टाइल्स का बिजनेसमैन है और अपने महंगे और इटालियन टाइल्स को लेकर वह अधिकारियों के घर में भी पहुंच बना लेता था। यहां तक कि अपने खर्च पर अधिकारियों के घर की टाइल्स बदलवा देता था। इस काम से अधिकारी और उनके परिवार वाले उससे खुश हो जाते थे। जिसका फायदा अभिषेक दूसरों पर धौंस जमाने लिए करता था।

गृह मंत्री का पीएस बनकर भी अफसरों को फोन करता था
अभिषेक अलग-अलग लोगों को अलग-अलग आदमी बनकर फोन करके काम निकलवाता था। एक अधिकारी के मुताबिक, अभिषेक कई बार गृह मंत्री का पीएस बनकर भी अफसरों को फोन करता था। MBA कर चुका अभिषेक अच्छी अंग्रेजी और दिल्ली वाली हिंदी बोलता था। अपनी बोलचाल और शिक्षित होने का उसने खूब फायदा उठाया।
2018 में भी पुलिस ने अभिषेक को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेजा था। इसके पहले 2014 में उसने बिहार के एक पुलिस अधीक्षक को भी ब्लैकमेल किया था। उस समय पुलिस अधीक्षक के पिता से मोटी रकम की भी वसूली की थी। इसके अलावे एक अन्य आईपीएस अफसर से भी दो लाख की ठगी में इसका नाम आया था। अभिषेक अग्रवाल पर बिहार में जालसाजी के कई मामले दर्ज हैं। भागलपुर में भी अभिषेक पर मामला दर्ज है।
अभिषेक ने सोशल मीडिया का खूब उपयोग करता था
अपने इस खेल में अभिषेक ने सोशल मीडिया का खूब उपयोग करता था। अभिषेक बड़े-बड़े अधिकारियों नेताओं के साथ फोटो खिंचाकर सोशल मीडिया पोस्ट करता था, ताकि लोगों के बीच उसका रुतबा बना रहे। इस बार उसने फ्रॉड करने के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल की वाट्सएप डीपी और ट्रू कॉलर सेट किया था। ताकि DGP को लगे कि वही मुख्य न्यायाधीश संजय करोल है।
इसके अलावा अभिषेक अपने पर्सनल फेसबुक पर बड़े नेता और अफसरों के साथ तस्वीरें लगाता था। बहरहाल, EOU ने आरोपी अभिषेक को धोखाधड़ी, फर्जी नाम से फोन करने और साइबर केस में जेल भेजा है। साथ ही पूछताछ में जो बातें निकलकर सामने आई है उस आधार पर उस आईपीएस अफसर के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है।
शातिर अभिषेक के बैंक डिटेल्स को भी खंगालेगी जांच एजेंसी
आईपीएस आदित्य कुमार के साथ मिलकर बड़ी साजिश रचने वाले अभिषेक अग्रवाल के कनेक्शन को खंगाला जा रहा है। खास बात यह है कि आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) इस मामले में वित्तीय जांच करेगी। सूत्रों के अनुसार ईओयू अभिषेक अग्रवाल के बैंक डिटेल्स को भी खंगालेगी।
DGP ने SSP को शराबकांड से बरी ही नहीं किया, पोस्टिंग की अनुशंसा भी की
बिहार पुलिस के मुखिया साइबर फ्रॉड में फंसते गए। चीफ जस्टिस के नाम पर अपराधी जो कहता गया, वह वही करते गए। विभाग के सबसे बड़े अफसर के साथ हुई इस घटना ने सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इससे बड़ा सवाल डीजीपी के दावे में है, कि जब उन्हें शक हो गया तो फिर IPS को शराब कांड से क्यों बरी कर दिया?
साइबर अपराधी अभिषेक अग्रवाल ने IPS आदित्य को शराब कांड से बरी कराने के लिए 40 से 50 कॉल किए। उसने यह कॉल 22 अगस्त से 15 अक्टूबर के बीच में किए। बिहार पुलिस के मुखिया साइबर अपराधी की जाल में इस तरह से फंस गए कि अभिषेक चीफ जस्टिस बोल कर जो-जो निर्देश देता था, डीजीपी उसे पूरा करते रहे।
डीजीपी ने शराब कांड में फंसे आईपीएस आदित्य को इससे बरी भी कर दिया। अब अभिषेक IPS अफसर को मनचाही पोस्टिंग दिलाने के मिशन में जुट गया।
गृह विभाग के एक बड़े अफसर के मुताबिक, अभिषेक अग्रवाल ने आईपीएस अफसर आदित्य कुमार को शराब कांड से बरी कराने के बाद जब पोस्टिंग के लिए दबाव बनाया तो डीजीपी ने डर के कारण फाइल की अनुशंसा कर दी। फाइल जब गृह विभाग पहुंची तो वहां मंथन शुरू हो गया। एक आईपीएस पर लगे शराब कांड के आरोप को इतना जल्दी खत्म कर देना और फिर पोस्टिंग की अनुशंसा करना सवाल खड़े कर रहा है।
गृह विभाग में मंथन चल ही रहा था कि इस बीच साइबर क्रिमिनल अभिषेक अग्रवाल लालच में आ गया। जिस तरह से उसने डीजीपी को शिकार बनाकर अपना काम करा लिया, ठीक ऐसे ही उसने चीफ जस्टिस बनकर गृह सचिव को फोन कर दिया।
अभिषेक का यही एक फोन कॉल इस खुलासे की बड़ी कड़ी बन गया। बार-बार गृह सचिव को फोन आने के बाद CM हाउस तक चर्चा होने लगी। मामला पूर्व मुख्य सचिव और सीएम नीतीश कुमार के प्रधान सचिव दीपक कुमार के संज्ञान में आया तो उन्होंने मामले की जांच कराने की तैयारी कर ली।
CM हाउस ने कराई जांच, डीजीपी को नहीं लगी भनक
गृह सचिव को फोन करना और इसकी चर्चा सीएम हाउस में होना, घटना के खुलासे की कड़ी से कड़ी जुड़ती चली गई। पुलिस मुख्यालय के सूत्रों की मानें तो EOU के एडीजी नैयर हसनैन खां को सीएम हाउस बुलाया गया और जांच के लिए पूरा मामला सौंपा गया। जांच में पूरा खेल सामने आया। जांच में जो बातें सामने आई उसमें यह खुलासा हुआ कि साइबर अपराधी पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के फोटो का इस्तेमाल नए नंबर के वॉट्सऐप प्रोफाइल में किया और उसी से कॉल किया करता था। कॉल की रिकॉर्डिंग नहीं हो, इस कारण से वह वॉट्सऐप कॉल ही करता था।
सीएम हाउस बुलाकर आर्थिक अपराध इकाई के एडीजी को जांच सौंपी गई थी। इस कारण से डीजीपी को भी इसकी जानकारी नहीं हो पाई कि क्या जांच चल रही है। सीएम हाउस से जांच के आदेश और जांच में आई रिपोर्ट से बड़े-बड़े अफसरों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। इस खुलासे के बाद पुलिस की तरफ से नई कहानी बनाई गई, जिसमें डीजीपी को शक होने के बाद जांच का आदेश देने का उल्लेख है, लेकिन इसमें सच्चाई होती ताे आईपीएस की फाइल आनन-फानन में आगे नहीं बढ़ा दी जाती।
डीजीपी से बातचीत का व्हाट्सएप चैट रिकवर
डीजीपी और चीफ जस्टिस बनकर फोन करने वाले के बीच व्हाट्सएप पर जो चैट हो रही थी उसे रिकवर कर लिया गया है। सूत्रों के अनुसार ईओयू की स्पेशल टीम ने अभिषेक अग्रवाल के पास से जब्त मोबाइल से व्हाट्सएप पर चैटिंग से जुड़े चैट को रिकवर कर लिया है। इतना ही नहीं आईपीएस आदित्य कुमार और अभिषेक अग्रवाल के बीच भी दूसरे नंबरों से जो चैटिंग हो रही थी उसे भी रिकवर कर लिया गया है।
आईपीएस आदित्य की गिरफ्तारी होगी, रडार पर कई और अफसर भी
माना जा रहा है कि मंगलवार को ईओयू अभिषेक को रिमांड पर लेकर पूछताछ करेगी। आईपीएस आदित्य की गिरफ्तारी के लिए ईओयू ने अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया है। रविवार की रात टीम पटना में उनके ठिकाने पर गई थी लेकिन वे गायब मिले। आदित्य यूपी के मेरठ के रहने वाले हैं।
जानिए क्या है IPS का शराब कांड
IPS आदित्य कुमार गया में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे। शराब तस्करों से सेटिंग का आरोप लगा था। साल 2021 में 8 मार्च को शराब की खेप बरामद की गई थी। इसके बाद 26 मार्च को कार से शराब की खेप बरामद हुई थी। दोनों ही मामलों में शराबबंदी कानून को तोड़ने के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के बजाए सनहा दर्ज किया गया। यह खेल फतेहपुर थाना के तत्कालीन थानेदार ने किया। शराबबंदी कानून में तस्करों की सेटिंग का मामला जब सुर्खियों में आया तो तत्कालीन एएसपपी मनीष कुमार ने जांच की और रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ। जांच रिपोर्ट में थानेदार संजय कुमार की बड़ी मनमानी सामने आई। एएसपी मनीष कुमार ने तत्कालीन एसएसपी आदित्य कुमार को जांच रिपोर्ट सौंप दी।
पूर्व एसएसपी की बड़ी सेटिंग से खेल
एसएसपी ने बड़ी सेटिंग की और आरोपित थानेदार संजय कुमार को कागजी कार्रवाई के बाद निलंबित कर दिया, लेकिन यह निलंबन सिर्फ दिखावे वाला ही था। एसएसपी ने एक माह भी इंतजार नहीं किया, महज 15 दिन में ही आरोपित संजय कुमार को बाराचट्टी का थानेदार बना दिया। नियुक्ति के एक माह बाद आईजी ने आरोपित थानेदार संजय कुमार का ट्रांसफर औरंगाबाद कर दिया, बाद में जब मामला पुलिस मुख्यालय तक पहुंचा तो, अफसरों में खूब चर्चा होने लगी। इसके बाद आरोपित थानेदार संजय कुमार को निलंबित कर दिया गया।
इस गंभीर मामले में आदित्य कुमार की मुश्किलें कम नहीं हुईं। आरोपी थानेदार संजय कुमार के साथ उनके खिलाफ गया के फतेहपुर थाना में केस दर्ज कराया गया था। उत्पाद अधिनियम के खिलाफ दर्ज मामले में पूर्व एसएसपी और पूर्व थानेदार की जमानत याचिका भी स्पेशल एक्साइज कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इस मामले को लेकर पुलिस महकमे की काफी किरकिरी हुई थी।
खुद डीजीपी ने दिए थे जांच के आदेश
गया में शराबबंदी कानून के उलंघन में थानेदार और एसएसपी की मनमानी से हुई बिहार पुलिस की किरकिरी के बाद डीजीपी ने मामले में संज्ञान लिया। इसके बाद डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए। जांच के दौरान आरोप पूरी तरह से सही पाया गया, जिसके बाद पुलिस अधीक्षक हेडक्वार्टर अंजनी कुमार सिंह ने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार और फतेहपुर के पूर्व थानेदार रहे संजय कुमार के खिलाफ फतेहपुर में ही मामला दर्ज कराया था। डीजीपी ने खुद जिस मामले की जांच के आदेश दिए और जांच में आरोपों की पुष्टि से संबंधित रिपोर्ट उनके पास आने के बाद भी आईपीएस आदित्य कुमार को बचाने में डीजीपी ने पूरा जोर लगा दिया।
साइबर अपराधियों के जाल में फंसकर डीजीपी से आईपीएस को बेदाग करा दिया। डीजीपी के लिए यह बड़ा सवाल है, क्योंकि ऐसे आरोपी आईपीएस की जांच रिपोर्ट की पुष्टि होने के बाद भी राहत की बारिश करना कहीं न कहीं से डीजीपी को भी दागदार बना रहा है। सितंबर महीने में आरोप मुक्त किए गए आईपीएस आदित्य कुमार के लिए अब पोस्टिंग की फील्डिंग चल रही थी, लेकिन मामला सीएम हाउस पहुंचा जहां से पूरा नेटवर्क खंगाल लिया गया। सेटिंग ऐसी हुई कि केस के आईओ मद्य निषेध विभाग के डीएसपी सुबोध कुमार ने पूर्व एसएसपी को शराब के मामले में निर्दोष बता दिया।
अब बढ़ आएगी आईओ की मुश्किल
गया के फतेहपुर थाना में दर्ज मामले के आईओ डीएसपी को बनाया गया। आईजी की जांच में मामला सही पाया गया। रिपोर्ट डीजीपी कार्यालय तक पहुंची लेकिन बाद में आईओ ने इस मामले को पूरी तरह से रफा दफा कर दिया। अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हुई तो पूरी कड़ी बेनकाब हो जाएगी। डीजीपी से लेकर जांच में मनमानी करने वाले पदाधिकारी भी सवालों के घेरे में होंगे। सूत्रों की मानें तो पुलिस विभाग में मामला अभी पूरी तरह से शांत करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन सीएम हाउस तक इसकी सूचना के कारण अब जांच को लेकर भी टीम बन सकती है।
गया के तत्कालीन एसएसपी आदित्य कुमार ने शराब कांड का जो कांड किया और उस दौरान जिस तरह से वह चर्चा में आए, ऐसे ही अब डीजीपी चर्चा में है। सवाल यह है कि डीजीपी ने क्यों मामले को गंभीरता से नहीं लिया और सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वाले को ही क्लीन चिट दे दी। अब सवाल ये है कि क्या, डीजीपी पर भी जांच कमेटी बैठ सकती है। डीजीपी पर कार्रवाई को लेकर पुलिस मुख्यालय में चर्चा है।
22 अगस्त से 15 अक्टूबर तक चला जालसाजी का खेल
अपराधिक घटना 22 अगस्त 2022 से शुरू हुई और 15 अक्टूबर तक चलती रही। इस दौरान अपराधिक षड्यंत्र किया गया और जालसाजी करके डीजीपी को फोन किया गया। चीफ जस्टिस के नाम पर फोन कर आईपीएस आदित्य कुमार की मदद की गई। इस दौरान लगातार फोन के बाद भी डीजीजी कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि साइबर क्रिमिनल के जाल में फंसकर उसकी बातों को मानते रहे। वह आईपीएस अफसर को रिलीफ देने की पूरी कोशिश करते रहे। आईपीएस को रिलीफ देने के बाद डीजीपी पर दबाव बनाया गया। आईपीएस की पूर्णिया में पोस्टिंग के लिए भी डीजीपी ने प्रयास शुरू कर दिया। अब सवाल यह है कि जब डीजीपी ही साइबर क्रिमिनल के जाल में फंस जा रहे हैं, तो आम लोगों का क्या होगा।
पिछले साल तिहाड़ जेल जा चुका है अभिषेक
अभिषेक ने पहली बार ऐसी हिमाकत नहीं की है। उसका पुराना आपराधिक इतिहास रहा है। ईओयू की जांच में कई तथ्य सामने आए हैं। अभिषेक पिछले साल तिहाड़ जेल जा चुका है। ईओयू के अनुसार, अभिषेक ने तब अभिषेक ने गृह मंत्रालय में तैनात एक आईएएस अधिकारी बन कर दिल्ली के एमसीडी के एमडी और कुछ अन्य अफसरों को किसी व्यक्ति के पक्ष में मदद करने के लिए फोन किया था। इसी मामले में 16 मार्च 2021 को धारा-170 और 419 आईपीसी में गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेजा गया था।
IPS अफसर के पिता से की थी ठगी
इतना ही नहीं अभिषेक ने बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी सौरभ कुमार साह के पिता से भी करीब पौने एक करोड़ की ठगी कर ली थी। इस मामले में भी यह जेल गया था। खासबात यह है कि लंबे आपराधिक इतिहास के बावजूद अभिषेक कई आईपीएस और आईएएस अधिकारियों के साथ घूमता रहा और फोटो खिंचवाता रहा।
मोबाइल शॉप के स्टाफ के नाम पर 5000 में खरीदे 2 सिम
IPS अफसर आदित्य कुमार को बचाने के लिए पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल बनकर DGP को फोन करने वाले मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। अभिषेक अग्रवाल DGP एसके सिंघल को वाट्सऐप कॉल करता। डीजीपी फोन उठाते ही उसे सर-सर बोलते थे। इस दौरान अभिषेक अग्रवाल ने डीजीपी को 40 से 50 बार कॉल किया, लेकिन उन्हें पता तक नहीं चला।
इस मामले को लेकर पुलिस मुख्यालय एडीजे जेएस गंगवार के शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एडीजे के अनुसार मामला ठगी और धोखाधड़ी का है। डीजीपी की तरफ ईओयू को सूचना दी गई थी, इस पर 5 सदस्यीय टीम बनाई गई। कई तरह की जांच अलग-अलग यूनिट के मध्यम से चल रही है। सिम मोबाइल शॉप पर काम करने वाले 17 साल के लड़के के नाम पर लिए गए थे। उसके लिए 5000 रुपए चुकाए थे।
डीजीपी पर नाराज होकर देता था धौंस
दरअसल, अभिषेक अपने ऊंचे रसूख का हवाला देकर लोगों को अपने झांसे में लेता था। अक्सर बड़ी गाड़ियों में चलने वाला अभिषेक अपने आपको बिहार के टॉप मोस्ट आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का करीबी बताता था। नकली चीफ जस्टिस संजय करोल बनकर डीजीपी को भड़काता था। यहां तक कि डीजीपी अक्सर उसे सर-सर कहते थे। पूछताछ में अभिषेक ने बताया कि कई बार उसने डीजीपी पर नाराज होकर धौंस दिखाया था। उसके बाद अवैध शराब के मामले में डीजीपी ने आईपीएस अफसर आदित्य कुमार क्लीनचिट दिया गया था।
अभिषेक अपनी पहुंच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद तक भी बताता था और कहता था कि वह उनके पड़ोसी हैं। आर्थिक अपराध इकाई ने जब इस मामले की जांच शुरू की तो उसमें एक दिलचस्प कहानी सामने आई कि जिस नंबर से अभिषेक ने डीजीपी को फोन किया था, वह नंबर एक नौकर का है।
मैट्रिक पास 17 साल के लड़के से खुली पूरी कहानी: राहुल कुमार पटना के दीवान मोहल्ला झाऊगंज का रहने वाला है। 7 साल पहले उसके पिता शत्रुघ्न ठाकुर को लकवा मार गया था। राहुल की मां मोहल्ले में ही लोगों के घर चौका बर्तन करती थी। चुंकि, राहुल की उम्र 17 साल है और उसने हाल में ही मैट्रिक की परीक्षा पास की है तो, उसने भी अपने घर को चलाने के लिए बैंक ऑफ बड़ौदा के सीएसपी का काम करने लगा। राहुल पार्ट टाइम में मुर्गन कम्युनिकेशन मोबाइल की दुकान पर भी काम कर रहा था।
एक दिन अचानक राहुल के मोबाइल पर बिहार के आर्थिक अपराध इकाई के तरफ से फोन आया और उससे पूछा गया कि क्या वह राहुल है, तो उसने बताया हां। उसके बाद अपराध इकाई के लोग लोगों ने राहुल से पूछताछ की तो पता चला राहुल के नाम पर दो मोबाइल सिम निर्गत है और उसका इस्तेमाल कहीं और हो रहा है। राहुल की हालत उस समय और खराब हो गई, जब उसे पता चला कि उसके मोबाइल सिम से बिहार के डीजीपी को फोन गया था। वह भी पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बन कर।
राहुल ने आर्थिक अपराध इकाई के अधिकारियों के सामने परत दर परत कहानी को सामने रख दिया। राहुल ने बताया कि गौरव राज के दुकान पर पार्ट टाइम नौकरी करता था। अगस्त के महीने में गौरव ने उसके आधार कार्ड को लिंक करके उसके अंगूठा का निशान लिया, लेकिन सिम नहीं दिया। गौरव ने राहुल को बताया कि सिम एक्टिवेट नहीं हो सका है। राहुल ने EOU के अधिकारियों के सामने यह कहा कि उसके साथ यह दो-तीन बार गौरव ने ऐसा किया है।
EOU की टीम राहुल को लेकर गौरव के पास पहुंची। गौरव ने एक-दूसरे मित्र शुभम का नाम बताया और उसने कहा की 5000 के एवज में उसने दो सिम शुभम को दिए हैं। आर्थिक अपराध इकाई की टीम राहुल और गौरव को लेकर शुभम के पास पहुंची तो, शुभम ने बताया कि वह रमेश जायसवाल के मोबाइल की दुकान बोरिंग रोड में काम करता है और रमेश जायसवाल ने उससे सिम की मांग की थी और उसने शुभम से सिम की मांग की थी। शुभम ने गौरव राज से सिम मांगा था। गौरव ने राहुल के आधार का गलत इस्तेमाल करके सिम निकाला था।
राहुल रंजन जायसवाल के पास जब आर्थिक अपराध इकाई की टीम पहुंची तो राहुल रंजन जायसवाल ने बताया कि अभिषेक अग्रवाल उसके नियमित ग्राहक हैं और समय-समय पर वह आकर मोबाइल लेते रहते हैं। उन्होंने ही दो सिम के साथ दो मोबाइल देने को बोला था। उन्होंने यह भी कहा था कि सिम किसी और व्यक्ति के नाम से निकलवा कर दे देना। एक सीनियर पुलिस अधिकारी को देना है, यह वही पुलिस ऑफिसर हैं जो मेरे साथ तुम्हारी दुकान पर मोबाइल लेने आते रहते हैं। राहुल ने बताया कि नियमित ग्राहक जानकर उसने मोबाइल और सिम उन्हें दे दिए थे।
अभिषेक ने माना – IPS को बचाने के लिए रचा षड्यंत्र
अब इन पांचों को लेकर आर्थिक अपराध इकाई की टीम पटना के बोरिंग रोड नागेश्वर कॉलोनी के निलय अपार्टमेंट में रहने वाले अभिषेक अग्रवाल के पास पहुंची। पहले तो अभिषेक अग्रवाल ने आनाकानी किया।। उसके बाद जब आर्थिक अपराध इकाई की टीम ने सख्ती दिखाई तो अभिषेक टूट गया। उसने बताया कि आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार उसके अभिन्न मित्रों में से हैं। उनको बचाने के लिए ही उसने यह पूरा षड्यंत्र रचा था।