पिता को आखिरी बार चूमते बच्चे, आंखों से बहते आंसू, खामोश चेहरे, बंदूकों की निगरानी में कैंडल मार्च, खौफ और गुस्से की कहानी कहती यह जम्मू-कश्मीर की तस्वीर है। ऐसे में सवाल उठता है कि पिछले 30 साल में कश्मीर में क्या बदला? बातें हुईं, वादे हुए, अलग-अलग नरेटिव बने पर बेगुनाहों का खून बहना आज भी बंद नहीं हुआ? अपने पिता के खामोश चेहरे को निहार रही इस बेटी को देखिए, कलेजा कांप उठेगा। वह सातवीं कक्षा में पढ़ रही है। पिता ने ढेरों सपने देखे थे लेकिन आतंकियों की गोली ने सब कुछ छीन लिया। इन बच्चों का गुनाह क्या था। कश्मीरी पंडितों पर लगातार गोलियां बरस रही हैं और जवाब में निंदा होती है। कश्मीरी पंडित पूछ रहे हैं कि अपने ही देश में असहाय महसूस कर रहे समुदाय की सुरक्षा का ठोस इंतजाम अब तक क्यों नहीं किया गया?
जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले में शनिवार को आतंकियों ने पूरन कृष्ण भट की गोली मारकर हत्या कर दी। उनका परिवार शोपियां में रहता था, लेकिन महामारी की शुरुआत में उन्होंने अपनी पत्नी और पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे बेटे और सातवीं में पढ़ रही बेटी के रहने की जम्मू में व्यवस्था कर दी थी। जम्मू में रविवार को अंतिम संस्कार के दौरान जिसने भी भट के बच्चों की चीखें सुनीं, भीतर से हिल गया। कश्मीरी पंडित लगातार कह रहे हैं कि उनकी हत्याएं रोकने के लिए ठोस कार्रवाई की जरूरत है। एक भी कश्मीरी पंडित का खून क्यों बहे? क्या कायराना हमला बताने से कश्मीरी पंडितों का डर और दुख खत्म हो जाएगा।
भट्ट के रिश्तेदार सतीश कुमार ने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक और कश्मीरी पंडित आतंकवादियों की गोलियों का निशाना बन गया, जिससे सुरक्षा स्थिति में सुधार होने के सरकार के झूठे दावों की पोल खुल गई है। वह पिछले दो साल में मारे गए अल्पसंख्यक समुदाय के 18वें व्यक्ति हैं।’ उन्होंने कहा कि जहां भट की हत्या की गई, उसके पास ही पुलिस चौकी और सेना का एक शिविर है। यह दिखाता है कि घाटी में सुरक्षा की स्थिति 90 के दशक जैसी हो गई है। भट के रिश्तेदार कह रहे हैं कि आतंकवाद बढ़ने के बाद घाटी न छोड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी।