हरियाणा सरकार का दिल जिस पर मेहरबान है‚ वह कोई अधिकारी‚ कर्मचारी‚ मंत्री‚ विधायक और सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यकर्ता नहीं‚ बल्कि बलात्कार और हत्या का दोषी गुरमीत राम रहीम हैं। एक बार फिर डे़रा सच्चा सौदा प्रमुख को हरियाणा सरकार ने ४० दिन का पैरोल दिया है। इससे पहले ७–२७ फरवरी तक उन्हें २१ दिनों तक फरलो दिया गया था। इसके बाद बाबा को फिर जून के महीने में करीब महीने भर के लिए पैरोल पर रिहा किया गया था।
आश्चर्य की बात है कि जब–जब बाबा के जेल से बाहर आने का कार्यक्रम बना‚ तब–तब हरियाणा और पंजाब में चुनावी कार्यक्रम थे। फरवरी में जब बाबा बाहर आए तो उस वक्त पंजाब में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। जून में जब उन्हें पैरोल मिला तब हरियाणा में पगर निकाय चुनाव के कार्यक्रम थे। इस बार हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। साथ ही‚ पंचायत चुनाव भी होने हैं। सरकार या बाबा के समर्थक भले यह तर्क रखें कि उनकी रिहाई चुनाव को देखते हुए नहीं‚ बल्कि जेल में उनके अच्छे आचरण के बाबत दी गई है‚ मगर इस दलील में कोई दम नहीं है। देश भर की जेल में कई खूंखार अपराधी सजा काट रहे हैं। कइयोें का व्यवहार जेल में अच्छा भी होगा‚ मगर कभी ऐसा सुनने या पढ़ने को नहीं मिला कि उन्हें पैरोल या फरलो मिला हो। रेप के आरोप में बाबा को २०१७ में २० वर्ष की सजा सुनाई गई थी‚ जबकि हत्या के आरोप में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें अक्टूबर‚ २०२१ में उम्रकैद की सजा दी गई थी। सवाल यही पैदा होता है कि एक ऐसे शख्स पर हरियाणा की सरकार क्यों प्रसन्न है‚ जिसकी गिरफ्तारी के दौरान करीब ३८ लोगों की मौत हो गई थी‚ जिस शख्स पर अपने अनुयायियों के साथ बलात्कार और कई अन्य गंभीर किस्म के आरोप लगे थे। यह सरासर अदालत के आदेश को धता बताने सरीखा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। जिस तरह का अपराध है‚ उसके मुताबिक ही सजा काटने का विधान है। ऐसे आदेश तो न्यायिक प्रक्रिया को झूठा और कमजोर सिद्ध करते हैं। सरकार की इस मनमर्जी के खिलाफ उठ खड़़ा होना होगा। अदालत को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि न्याय प्रक्रिया पर आम जन का भरोसा कायम रहे। ऐसे मौकों पर कसौटी पर न्यायपालिका ही होती है‚ लिहाजा‚ बेहतरी की उम्मीद भी उन्हीं से है।