रूस–यूक्रेन युद्ध को आठ महीने पूरे होने वाले हैं। यूक्रेन की सेना रूस के आगे हथियार ड़ालने की बजाय बहादुरी से सामना कर रही है। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि रूसी सेना अपने सैन्य उद्देश्यों में सफल क्यों नहीं हो पा रही। इस सवाल पर रूस समर्थक सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि रूस ने बंधे हाथों से यूक्रेन के विरुद्ध विशेष सैनिक अभियान शुरू किया था। हकीकत यह है कि यूक्रेन के लोगों को रूस अपने ही धार्मिक–सांस्कृतिक दायरे का हिस्सा मानता है‚ लेकिन क्रीमिया पुल पर हमले के बाद रूस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के अनुसार पिछले कुछ दिनों में यूक्रेन के २९ ठिकानों को निशाना बनाया गया। पुतिन ने कहा कि नये फैसलों के अनुसार तीन लाख सैनिकों की लामबंदी का काम अगले दो सप्ताह में पूरा हो जाएगा। रूस की नई युद्धरणनीति से संकेत मिलता है कि यूक्रेन में असली युद्धनवम्बर में शुरू होगा। इसी समय दोनों देशों की सेनाओं पर जाड़े़ के मौसम की मार पड़े़गी। नवम्बर महीने में ही इंड़ोनेशिया के बाली में जी–२० देशों की शिखर वार्ता आयोजित है‚ इसमें राष्ट्रपति पुतिन‚ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइड़न और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग सहित विश्व के अन्य शीर्ष नेता भाग लेंगे। विश्व मानवता के लिए खतरा बने यूक्रेन युद्ध का वार्ता के जरिए समाधान खोजने के लिए यह स्वर्णिम अवसर होगा। युद्धोन्माद और संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर पुतिन और बाइड़न बात कर सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ऐसी किसी मुलाकात और वार्ता पर सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। अच्छी बात यह है कि शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन में राष्ट्रपति पुतिन ने लचीला रुûख दिखाते हुए यूक्रेन के साथ वार्ता का संकेत दिया‚ लेकिन उनका मानना है कि यूक्रेन बातचीत के लिए तैयार नहीं है। माना जा रहा है कि वार्ता के लिए पुतिन ने जो रुख दिखाया है‚ उसके पीछे भारत और चीन हैं। वास्तव में भारत और चीन‚ दोनों बातचीत के जरिए यूक्रेन संघर्ष का समाधान चाहते हैं। पुतिन इन दिनों अपने सहयोगियों को नाराज नहीं कर सकते। उम्मीद की जानी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे पुतिन और बाइड़न वार्ता की मेज पर आएंगे और आपसी संवाद से यूक्रेन की समस्या का कोई उचित समाधान निकल आएगा।
भारत में एंट्री के लिए स्टारलिंक को कौन सी शर्तें माननी होगी ?
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