सोमवार को पूर्व में खारकीव से पश्चिम में लवीव तक 12 से ज्यादा शहरों को 84 मिसाइलों से निशाना बनाया गया। राजधानी कीव के दिल पर भी बम बरसाए गए। इन हमलों में यूक्रेन के मुताबिक 11 लोगों की मौत हुई जबकि 60 से ज्यादा नागरिक घायल हुए हैं। महीने भर पहले दोनों देशों के बीच वाकयुद्ध तो जारी था, मगर हमले छिटपुट हो रहे थे।
ऐसा लगने लगा था कि अब दोनों मुल्क लड़ाई को त्यागना चाहते हैं। एक-दूसरे के इलाकों में हमला करने के बजाय कूटनीति का सहारा लिया जा रहा था, बयानबाजी भले उफान पर थी मगर दोनों देशों के सैनिकों में आक्रामकता नहीं थी। कह सकते हैं कि हालात सुधरने लगे थे। मगर वो चुप्पी एक बड़े हमले का संकेत भर थी।
यूक्रेन ने जब रूस से क्रीमिया को जोड़ने वाले पुल को हमला कर जलाया, उसके बाद से हालात एकाएक बिगड़ते चले जा रहे हैं। रूस ने क्रीमिया ब्रिज का बदला लेने के लिए यूक्रेन पर मिसाइल हमलों की झड़ी लगा दी। स्वाभाविक रूप से सबकुछ सामान्य होने की खुशी क्षणभर में काफूर हो गई। खासकर भारत ने ताजातरीन हमले को लेकर खासी चिंता का इजहार किया है।
इससे पहले 21 सितम्बर को समरकंद में आयोजित शंघाई कोऑपरेशन आग्रेनाइजेशन (एससीओ) सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के दौरान कहा था कि ‘यह युद्ध का समय नहीं है।’ यह बताता है कि भारत इस युद्ध के खिलाफ है और जल्द-से-जल्द इसे खत्म करने के पक्ष में है। साथ ही दोनों देशों को बातचीत की मेज पर आने की सलाह दे रहा है। भारत की एक चिंता यूक्रेन और रूस में मौजूद अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर भी है। ताबड़तोड़ हमले से आशंकित भारत ने यूक्रेन में मौजूद अपने नागरिकों को जरूरत पड़ने पर ही बाहर निकलने की सलाह दी है।
निश्चित तौर पर यूक्रेन में संकट लगातार गहराता जा रहा है। बुनियादी ढांचे पर हमला होने और आम नागरिकों के मारे जाने से सुलह और शांति की संभावना क्षीण होती जा रही है। दोनों में से कोई भी देश झुकना नहीं चाहता है। जबकि यह शात सत्य है कि युद्ध से कभी किसी का भला नहीं हुआ है। अब भी वक्त है, वैश्विक दबाव से हो सकता है दोनों मुल्क इस बात को समझ सकें कि यह तनातनी किसी के हित में नहीं है। मूंछ की लड़ाई में शासक तो सुरक्षित रहते हैं, मगर जनता की किस्मत में कभी न भूलने वाले जख्म ही आते हैं।