तीन उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और एक वरिष्ठ वकील की सुप्रीम कोर्ट जजों के रूप में नियुक्ति के लिए देश के प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित (CJI UU Lalit) के सिफारिशी प्रस्ताव का कॉलिजियम के ही दो जजों ने ही विरोध कर दिया है। यानी, पांच जजों के कॉलिजियम में तीन जज इस प्रस्ताव के पक्ष में है। हालांकि, सिर्फ एक जज का बहुमत वैधानिक रूप से पर्याप्त नहीं माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने ही साल 1998 में जजों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर को लेकर एक प्रेसिडेंशियल रेफरेंस केस में यह फैसला दिया था। तब शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘हमें इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि अगर कॉलेजियम के दो जज भी किसी भी खास व्यक्ति की नियुक्ति का कड़ा विरोध करते हैं तो भारत के प्रधान न्यायाधीश उस खास व्यक्ति की नियुक्ति पर विशेष बल नहीं देंगे।’
वर्ष 2015 से चली आ रही है यह परंपरा
तब से कॉलेजियम ने किसी भी ऐसे व्यक्ति की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट जज की नियुक्ति के लिए नहीं की है जिसके नाम के प्रस्ताव को कम से कम चार जजों की मंजूरी नहीं मिली हो। वर्ष 2015 में 3-2 के बहुमत से एक जज की नियुक्ती की सिफारिश का प्रयास हुआ था, लेकिन तब केंद्र सरकार ने परंपरा का ध्यान दिलाते हुए सिफारिश को मंजूर नहीं किया था। ज्यादातर पूर्व प्रधान न्यायाधीशों ने हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) से कहा कि उन्होंने कभी वैसे नाम की सिफारिश सरकार से की ही नहीं थी जिन्हें सिर्फ तीन जजों का समर्थन हासिल होता था।
दो जजों ने किया विरोध, अलग-अलग नियमों का हवाला
ताजा मामले में सीजेआई के प्रस्ताव का दो जजों ने अलग-अलग कारणों से विरोध किया है। एक ने कहा कि जब तक आमने-सामने बैठकर कॉलेजियम की मीटिंग नहीं हो तब तक देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पोस्ट पर नियुक्तियों के लिए किसी नाम पर सहमति मांगना ही अनुचित है। वहीं, दूसरे जज ने कहा कि सीजेआई जस्टिस यूयू ललित को कॉलेजियम मीटिंग का अधिकार ही नहीं है क्योंकि वो एक महीने से भी कम वक्त में रिटायर होने जा रहे हैं। सीजेआई ललित 8 नवंबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। दरअसल, सीजेआई की तरफ से कॉलेजियम के बाकी चार जजों को नामों का प्रस्ताव भेज दिया गया था, उनके साथ मीटिंग नहीं की गई।
जस्टिस ललित ने ही तब बनाया था यह नियम
दरअसल, सीजेआई ललित ने ही इस वर्ष 1 अगस्त को ही तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमन के लिए समयसीमा का नियम बनाया था। तब उन्होंने कहा था कि चूंकि सीजेआई रमन के पास रिटायरमेंट के लिए एक महीने से भी कम का वक्त है, इसलिए वो कॉलेजियम की मीटिंग नहीं बुला सकते। जस्टिरमन रमन सीजेआई के पोस्ट से 26 अगस्त को रिटायर हुए थे। तब जस्टिस ललित ने तत्कालीन सीजेआई रमन से साफ-साफ कहा था कि अगर उन्होंने कॉलेजियम मीटिंग बुलाई भी तो वो (जस्टिस ललित) इसमें भाग नहीं लेंगे।
तब सरकार ने सीजेआई रमन को चिट्ठी लिखकर उनके उत्तराधिकार के नाम का प्रस्ताव मांगा था। उसके दो दिन पहले ही जस्टिस ललित ने सीजेआई को चिट्ठी लिखकर कॉलेजियम मीटिंग को लेकर अपना साफ-सुथरा विचार रखा था। 3 अगस्त को रात 9.30 बजे सरकारी की चिट्ठी सीजेआई ऑफिस पहुंची थी, उसके 12 घंटे के अंदर उन्होंने अगले सीजेआई के रूप में जस्टिस यूयू ललित का नाम सरकार को भेज दिया। 27 अगस्त को जस्टिस ललित ने देश के प्रधान न्यायाधीश के पद की शपथ ली तब कॉलेजियम की मीटिंग हुई थी।
क्या परंपरा पालन करेंगे सीजेआई ललित?
रिटायरमेंट के नजदीक आने के अलावा सीजेआई के प्रस्ताव का विरोध जिस कारण से हुआ है, उसमें एक यह भी है कि सरकार उनसे उनके उत्तराधिकारी का नाम मांग चुकी है। जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) का अगला सीजेआई बनना तय माना जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सीजेआई ललित अपने ही बनाए नियम की मर्यादा रखते हुए परंपरा का पालन करेंगे और जस्टिस चंद्रचूड़ का नाम यथासंभव तुरंत भेज देंगे?
तब जस्टिस ललित ने किया था कड़ा विरोध, और अब…
जस्टिस ललित ने 2 अगस्त को तत्कालीन सीजेआई रमन को दूसरी चिट्ठी लिखी थी। तब उन्होंने अपनी 1 अगस्त वाली चिट्ठी का हवाला देकर कहा था कि 26 अगस्त तक कॉलेजियम की मीटिंग नहीं हो सकती है। उन्होंने 3 अगस्त को बुलाई गई कॉलेजियम मीटिंग कैंसल करने को भी कहा था। उन्होंने कहा था, ‘आपसे आग्रह है कि कल बुलाई गई बैठक रद्द कर दें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मेरा सिद्धांत कहता है कि इस मीटिंग में भाग नहीं लूं।’