बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) के आसपास मई के बाद से एक आदमखोर बाघ का खौफ लोगों में देखने को मिला। करीब 9 लोगों को इस बाघ ने अपना शिकार बनाया। हालांकि, शनिवार को सरकारी आदेश के बाद शिकारियों ने इस बाघ (T-105) का खात्मा कर दिया। हालांकि, जिस तरह से इस इलाके में लोगों को बाघ ने निशाना बनाया उसको लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। चर्चा ये भी है कि क्या इतनी मौतों का जिम्मेदार एक अकेला बाघ ही हो सकता है? ऐसी आशंका जताई जा रही कि शायद एक और टाइगर भी शिकार पर हो सकता है।
बगहा में मारा गया आदमखोर बाघ
देशभर में बाघ और मनुष्यों के बीच हुए संघर्ष पर नजर रखने वाले जानकारों के अनुसार, इतनी मौतों के पीछे एक और आदमखोर टाइगर भी हो सकता है। उन्होंने आशंका जताई कि एक बाघ भी VTR के आस-पास शिकार पर हो सकता है। इससे पहले बिहार सरकार ने शुक्रवार को ही बगहा के आदमखोर बाघ को ‘देखते ही गोली मारने’ का आदेश जारी किया था। जिसके बाद शनिवार को ये ‘आदमखोर’ मारा गया। हालांकि, अभी शिकारी लगातार मैदान पर मौजूद हैं और किसी दूसरे बाघ के होने की जानकारी लेने में जुटे हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि ऐसी किसी भी घटना से रोका जाए तो अगर दूसरा बाघ है तो उसे सुरक्षित जंगल में अंदर धकेल दिया जाए।
‘शायद इलाके में दो बाघ हैं’
ग्लोबल टाइगर फोरम के महासचिव राजेश गोपाल ने टीओआई को बताया कि मुझे फील्ड डायरेक्टर से एक अपडेट मिला और अंतरराष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ भी बातचीत की है। शायद इलाके में दो बाघ हैं। एक जो बगहा में हाल ही में हुई लोगों की मौत का कारण है, जिसका पिछले एक महीने में पांच लोगों को मारे जाने का ट्रैक रिकॉर्ड था। हालांकि, इससे पहले हुई मौतों को लेकर मैं कह सकता हूं इसी जानवर को जिम्मेदार नहीं जा सकता।
टाइगर ने कब-कब बनाया लोगों को निशाना
बाघ के हमले से वीटीआर के आस-पास पहली मौत 8 मई को हुई थी। इसके बाद, 14 मई, 20 मई और 14 जुलाई को लोगों के शिकार की खबर आई थी। इसके बाद 12 सितंबर, 21 सितंबर, 5 अक्टूबर को तीन लोग हताहत हुए, फिर 7 अक्टूबर और 8 अक्टूबर को बाघ ने और लोगों को अपना शिकार बनाया। इतनी मौतों के बाद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इस बाघ को आदमखोर घोषित किया गया।
‘बाघ को मारने का फैसला आसान नहीं होता’
राजेश गोपाल, जिन्होंने 35 से अधिक वर्षो तक जंगली बाघ के संरक्षण में उठाई गई पहल का नेतृत्व किया। उन्होंने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के साथ काम किया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के लिए ये आदेश इतना आसान नहीं था। मुझे कई उदाहरण याद आ रहे- चाहे वह पीलीभीत (यूपी), दुधवा (यूपी), कान्हा (एमपी) और अन्य टाइगर रिजर्व में हो। शुरू में कोशिश उन्हें जिंदा पकड़ने के लिए होता है। लेकिन अगर वे नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं, तो ऐसे जानवरों को खत्म करने की जरूरत है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के आसपास की हालिया घटनाएं मनुष्य और बाघ के बीच संघर्ष कई आशंकाओं की वजह बन रहे।
शूट एट साइट। देखते ही गोली मार दो। शुक्रवार रात बिहार के बगहा गांव में यह आदेश निकल चुका था। उसे जिंदा दबोचने की हर कोशिश नाकाम होने के बाद हैदराबाद से बुलाए गए शॉर्प शूटर सफाकत अली को उसकी मौत का यह परवाना थमाया गया। हथियारों और टॉर्च से लैस 400 का दस्ता उस आदमखोर को दिन रात खोजता रहा। वाल्मिकी टाइगर रिजर्व (वीटीआर) इलाके में वह अब तक नौ लोगों को मार चुका था। लोग घरों में दुबके थे। कोई भरोसा नहीं, कब किसका नंबर आ जाए। बुधवार को ही वह 12 साल की बच्ची को बिस्तर से उठा ले गया था। चंपारण के छोटे से कस्बे बगहा में यह बाघ लगा हुआ था। यह सारी दहशत उसकी की थी। लेकिन शनिवार दोपहर यह खौफ खत्म हो गया। उस आदमखोर को मार गिराया गया।
बाघ या फिर तेंदुए के आदमखोर हो जाने की एक कोई पहली घटना नहीं है। हिमालयी राज्य उत्तराखंड से हर साल इस तरह की कई खबरें आती रही हैं। आखिर बाघ आदमखोर क्यों हो जाता है? एक अनुभवी शिकारी कैसे उसे पहचानता है? एक आदमखोर बाघ को मारने की नौबत क्यों आ जाती है? उसे जिंदा क्यों नहीं पकड़ा जा सकता है? ऐसे कई सवाल हैं, जो आपके मन में होंगे। हमने 44 आदमखोर तेंदुओं को मार चुके उत्तराखंड के मशहूर शिकारी जॉय हुकिल से इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश की। उन्होंने जो कुछ बताया, वह न केवल बेहद रोमांच से भरा हुआ है, बल्कि रोंगटे भी खड़े करता है।
किसी आदमखोर को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा जा सकता?
जॉय हुकिल बताते हैं कि बाघ या फिर तेंदुए के आदमखोर हो जाने पर सबसे पहले उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश की जाती है। उसके लिए पिंजरे लगाए जाते हैं। लेकिन कोशिश नाकाम होने और वारदातें बढ़ने पर पब्लिक का दबाव बढ़ने लगता है। यह दबाव बहुत जबर्दस्त होता है। अपनों को खो चुके लोग उससे हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहते हैं। लोगों के इसी दबाव में वन विभाग के पास आखिरी विकल्प बचता है। इसके लिए शूट एट साइट का आदेश दे दिया जाता है। इसके लिए एक अनुभवी शिकारी को परमिट दिया जाता है।
आखिर कोई बाघ आदमखोर क्यों हो जाता है?
जॉय हुकिल बताते हैं कि हर बाघ या तेंदुए का व्यवहार अलग होता है। जंगल में कई जानवर होते हैं, लेकिन उनमें से कुछेक ही आदमखोर हो जाते हैं। इंसानी खून चखने के बाद उसे इसकी आदत लग जाती है। मन आने पर वह दूसरे जानवरों को छोड़कर इंसान की तलाश करने लगता है। हुकिल के मुताबिक आमतौर पर बाघ घायल या फिर बूढ़ा होने पर ही इंसान को निशाना बनाता है। बूढ़े होने पर उसके दांत या फिर नाखून टूट जाते हैं। वह आसान शिकार तलाशने लगता है। लेकिन अपने अनुभव के आधार पर वह कहते हैं कि यह भी जरूरी नहीं है कि बूढ़े बाघ या तेंदुए ही आदमखोर बनते हैं। उनके मुताबिक उन्होंने जिन 44 आदमखोर तेंदुओं का शिकार किया है, उसमें से अधिकतर युवा थे। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के यह शॉर्प शूटर बताते हैं कि दरअसल यह दिमागी तौर पर होता है। कुछ तेंदुए नया स्वाद तलाशने के लिए इंसान पर हमला करते हैं। इंसान नमक खाता है। ऐसे में उसका खून उसे जानवरों से अलग लगता है। इसके बाद उसे इसकी लत लग जाती है। हालांकि वह कहते हैं कि हर जानवर ऐसा व्यवहार नहीं करता है।
आखिर एक शिकारी कैसे आदमखोर को पहचानता है?
हुकिल के मुताबिक यह बेहद कठिन टास्क होता है। आदमखोर जानवर को जंगल के अंदर पहचानने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है। यह अनुभव और जंगल में उसकी खोजबीन से तय होता है। हुकिल के मुताबिक बाघ के आदमखोर हो जाने के बाद विकल्प के तौर पर शिकारी को जोड़ा जाता है। सबसे बड़ी दिक्कत यह आती है कि तब तक सारे सबूत और पगमार्क (बाघ के पैरों के निशान) मिट चुके होते हैं। आदमखोर जानवर को पहचानने के लिए जंगल में कई दिनों तक गहरी नजर रखनी पड़ती है। इसके लिए रात को भी जंगल में घूमना पड़ता है। यह कितना चुनौतीपूर्ण होता है, इसे वह इसी 1 सितंबर को उत्तराखंड के थलीसैंण ब्लॉक में एक आदमखोर तेंदुए मारने के उदाहरण से समझाते हैं। उनके मुताबिक जंगल में कई तेंदुए थे। मैंने कई दिन इंतजार किया। उनकी ऐक्टिविटी देखता रहा। सही जानवर को पहचानने में 10-12 दिन लग गए। वह कहते हैं कि भूल से भी अगर गलत जानवर मारा गया, तो सारी प्रतिष्ठा चली जाती है। वह बताते हैं कि कई बारे ऐसे मौके आए जब आखिरी मौके पर उन्होंने राइफल नीचे कर दी, क्योंकि सामने गलत जानवर था।
जब बस 5 मीटर दूर खड़ा था आदमखोर तेंदुआ
इस बेहद खतरनाक अभियान में अपने रोमांचक लम्हों को याद करते हुए हुकिल बताते हैं कि एक बार आदमखोर तेंदुआ उनसे महज 5 मीटर की दूरी पर था। उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी और सूझबूझ के साथ उसे मार दिया। गोली सीधे उसके मुंह के अंदर से निकली थी। वह एक और वाकये के बारे में बताते हैं कि कैसे एक तेंदुए ने उनके ऊपर छंलाग लगा दी थी। वह तब बाल-बाल बचे थे। हुकिल के मुताबिक एक लोकल शिकारी ने एक तेंदुए को गोली मार दी थी। वह घायल था। जब उन्हें बुलाया गया, तो वह उसके शिकार के लिए निकले। जंगल में अचानक झाड़ियों से उसने सीधे उनके ऊपर छलांग लगा दी। उन्होंने राइफल के बैरल से उसे एक तरफ फेंका। फिर फायर किया।
क्या जानवर को मारने के बाद दुख नहीं होता?
हुकिल कहते हैं कि किसी आदमखोर को मारने के बाद उनकी आंखों के सामने वे बिलखते चेहरे तैरते हैं, जिन्होंने कोई अपना खोया होता है। हां, कभी-कभी अकेले में इसका दर्द रहता है। अगर वह आदमखोर न हुआ होता, तो फिर वह भी दूसरे जानवरों की तरह जिंदा होता। कुछ एनिमल लवर्स हमें कोसते हैं। लेकिन अगर वह हमारी या फिर पीड़ित लोगों की जगह खड़े होकर सोचेंगे, तो वह असली बात समझ सकेंगे। वह कहते हैं कि अगर किसी शहर में कोई आतंकी घुस जाए तो किसी न किसी को उसे मारने के लिए सामने आना पड़ता है। हमारी स्थिति भी ऐसी ही होती है। हमें इस बात का संतोष रहता है कि हमने कितनी बेगुनाह लोगों की जान बचाई है।
जब बाघ या तेंदुआ सामने आ जाए तो कैसे बचना चाहिए?
हमने जॉय हुकिल से इसको लेकर भी सवाल किया। उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर इसका एक दिलचस्प तरीका बताया। हुकिल के मुताबिक बाघ या तेंदुआ सीधे गले पर अटैक करता है। अगर तेंदुआ सामने पड़ जाए तो गले को कवर करते हुए एक हाथ से कंधे को पकड़ लेना चाहिए। एक हाथ और पैर से जीवन बचाने का संघर्ष किया जा सकता है। वह कहते हैं कि बाघ का ध्यान जल्दी भटक भी जाता है। अगर वह छोड़कर चला जाए तुरंत सेफ जगह की तरफ भाग लेना चाहिए क्योंकि कुछ देर बाद वह शिकार की तलाश में दोबारा आता है और फिर उसे छोड़ता नहीं है।