राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के इस विचार पर गंभीरता से मंथन जरूरी है कि सभी वर्गों पर लागू जनसंख्या नियंत्रण नीति तैयार की जानी चाहिए क्योंकि जनसांख्यिकीय असंतुलन भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन का कारण बन सकता है। दशहरा पर आयोजित कार्यक्रम में सरसंघचालक ने कहा कि देश में अल्पसंख्यकों के लिए कोई खतरा नहीं है। समुदाय आधारित जनसंख्या असंतुलन पर वह विशेष चिंतित दिखे जिस पर वह नियंत्रण चाहते हैं और कहते हैं कि इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
भागवत के अनुसार पचहत्तर साल पहले‚ हमने अपने देश में इसका अनुभव किया है। उनका इशारा भारत विभाजन की ओर था। २१वीं सदी में तीन नए देशों पूर्वी तिमोर‚ दक्षिण सूड़ान और कोसोवो का जन्म जनसंख्या असंतुलन का ही परिणाम था। उनका विचार है कि नई जनसंख्या नीति सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। इससे समाज में संतुलन कायम होगा। चीन का जिक्र करते हुए भागवत का कहना था कि उसने एक परिवार‚ एक संतान नीति को अपनाया और अब वह बूढ़ा हो रहा है। भागवत ने सवाल उठाया कि अपने देश की विशाल जनसंख्या वास्तविकता है। अगर जनसंख्या बढ़ती ही जाए तो उसके लिए जरूरी खाद्य सामग्री व अन्य संसाधन कहां से आएंगे। ऐसी हालत में जनसंख्या संपत्ति की जगह बोझ बन जाएगी। जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता और उस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में पूरा देश अग्रसर है। वर्ष २००० में भारत सरकार ने प्रजनन दर को २.१ पर लाने का लक्ष्य तय किया था। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से इसे हासिल किया जा चुका है। भागवत के विचार पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जनसंख्या नियंत्रण की वर्गीय जरूरत को खारिज करते हुए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि क्योंकि देश पहले ही प्रतिस्थापन दर हासिल कर चुका है तब इसकी जरूरत क्या है। चिंता एक बूढ़ी होती आबादी और बेरोजगार युवाओं की करनी चाहिए जो बुजुर्गों की सहायता नहीं कर सकते। मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेज गिरावट आई है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि भागवत का विचार सही है कि परिवार नियोजन को सभी वर्गों द्वारा अपनाया जाना चाहिए। यह आज की वास्तविक जरूरत है।
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