देश में प्रदूषण को लेकर जितनी चिंता दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के शहरों में दिखती है‚ उतनी देश के अन्य हिस्सों में नहीं दिखती। हालांकि दिल्ली–एनसीआर में प्रदूषण की मार ज्यादा है‚ मगर अब इसे सिर्फ कुछ इलाकों की समस्या बताना शायद ठीक नहीं होगा। दूसरे और तृतीयक (सेकेंड़री और टरशियरी) श्रेणी के शहरों में भी प्रदूषण का कहर आम जन को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। कोढ़ में खाज यह कि छोटे शहरों में प्रदूषण को कम करने को लेकर न तो सरकार में और न ही सरकारी महकमे में संजीदापन दिखता है।
खैर‚ दिल्ली सरकार ने प्रदूषण की दुश्वारियों को समझते हुए फैसला किया है कि पीयूसी सर्टिफिकेट (प्रदूषण जांच प्रमाणपत्र) के बिना वाहनों को पेट्रोल–ड़ीजल नहीं दिया जाएगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण का एक बड़़ा कारक है। इस नाते हालिया निर्णय प्रदूषण रोकने की दिशा में बड़़ा कदम माना जाएगा। दिल्ली के बाशिंदे प्रदूषण से कितने आक्रांत हैं‚ यह हाल के वर्षों में देखा और महसूस किया गया है। खासकर जाड़े के दिनों में राजधानी गैस का चैंबर बन जाती है। सांस लेना तक मुहाल हो जाता है। यही हाल कमोबेश आसपास के शहरों नोएड़ा‚ गाजियाबाद‚ गुरुग्राम‚ फरीदाबाद आदि का भी है। इसलिए सिर्फ पीयूसी प्रमाणपत्र की अनिवार्यता सिर्फ दिल्ली तक सीमित रह जाने में कोई फायदा या औचित्य नजर नहीं आता। अगर प्रदूषण का गला घोटना है‚ तो दिल्ली और उसके सेटेलाइट शहरों की सरकारों को भी इस मुहिम में शामिल होना पड़े़गा। वैसे भी अब प्रदूषण की लड़़ाई दिल्ली और इसके आसपास के शहरों की नहीं रह गई है। प्रदूषण से पर्वतीय राज्यों को छोड़़कर कमोबेश पूरा देश ही आज के वक्त में दूषित हवा की गिरफ्त में है। दिल्ली सरकार के इस निर्णय (बिना पीयूसी प्रमाणपत्र के इधन नहीं) को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। वैसे भी प्रदूषण की समस्या दिल्ली–एनसीआर की समस्या नहीं रह गई है। इसके लिए राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में निर्णय लेना होगा। हर सूबे और शहर को शुद्ध हवा मुहैया कराने की प्रतिबद्धता दिखानी होगी। हां‚ यह आसान काम कतई नहीं है‚ मगर इसके बिना अब गुजारा भी नहीं है। स्मार्ट शहरों की बेहतरी के लिए सरकारी खजाना लुटाने से बेहतर है कि पहले प्रदूषण के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया जाए क्योंकि हमारे पास वक्त बहुत कम बचा है।