छोटे कद के विशाल व्यक्तित्व: क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के होने पर विश्वास कर सकते हैं जो स्कूल जाने के लिए अपने सिर पर किताबें बांधकर गंगा में तैरता था, क्योंकि उनके पास नाव से जाने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे? जी हां, हम स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की बात कर रहे हैं। उनका जन्म आज ही के दिन अर्थात 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे शहर मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे, जिनकी मृत्यु तब हुई जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे।
महात्मा गांधी का प्रभाव: लाल बहादुर 16 वर्ष के थे जब गांधीजी ने देशवासियों से असहयोग आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने महात्मा के आह्वान के जवाब में तुरंत अपनी पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया। वे गांधी की राजनीतिक शिक्षाओं से प्रभावित थे।
‘कड़ी मेहनत प्रार्थना के बराबर है,’ उन्होंने एक बार अपने गुरु, अर्थात गांधीजी की याद दिलाने वाले लहजे में कहा था। शास्त्री का स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रवादी और राष्ट्र के नेता होने का व्यापक इतिहास है। वे मुख्य रूप से देश की बुनियादी आर्थिक समस्याओं, भोजन की कमी, गरीबी और बेरोजगारी से चिंतित थे।
प्रधानमंत्री: वे 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने। उन्हें 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है। इस पद पर वे करीब डेढ़ वर्ष तक रहे। उन्होंने महत्वपूर्ण युद्ध और खाद्यान्न की कमी की पृष्ठभूमि में सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ‘जय जवान, जय किसान’ का प्रसिद्ध नारा दिया।

शास्त्री जी के जीवन से सीखने-योग्य 7 बड़े सबक
1) कठिनतम परिस्थिति में नेतृत्व: आसान समय में देश का नेतृत्व करना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन शास्त्री जी ने मुश्किल समय में भारत को संभाला। उनके नेतृत्व में भारत ने 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध जीता। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपना वेतन लेना बंद कर दिया क्योंकि देश भोजन की कमी का सामना कर रहा था। 23 सितंबर, 1965 को युद्धविराम की घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री शास्त्री और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति, अयूब खान ने ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में एक समझौता किया। सबक: दृढ़ निश्चय और अटल इरादे।
2) श्वेत और हरित क्रांति: शास्त्री ने भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड बनाया। शास्त्री ही थे जिन्होंने भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) की वैज्ञानिक शुरुआत की और जागरूकता लाए। उन्होंने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उठाने और उद्योगों को प्रोत्साहित करने का गोल सेट किया। इसने भारत को एक फूड सरप्लस इकॉनमी में बदल दिया। सबक: बदले समय के नए तरीके।
3) गैर-हिंदी भाषी राज्यों को संभालना: तमिलनाडु में स्वतंत्रता के पहले और बाद में भी हिंदी का घोर विरोध था। राज्य में हिंदी की आधिकारिक स्थिति को लेकर तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और दंगे हुए। 1965 के बाद हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने के भारत सरकार के प्रयास कई गैर-हिंदी भारतीय राज्यों को स्वीकार्य नहीं थे, जो अंग्रेजी का निरंतर उपयोग ही चाहते थे। स्थिति को शांत करने के लिए, शास्त्री ने आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहते हैं, तब तक अंग्रेजी का उपयोग आधिकारिक भाषा के रूप में किया जाता रहेगा। सबक: लचीलापन और सबको साथ लेकर चलना।
4) सिम्पलिसिटी (सरलता): वे हाई सेल्फ-रेस्पेक्ट और मोरल वैल्यूज वाले व्यक्ति थे। शास्त्री के समय भारत में शादी के दौरान दहेज लेने की परंपरा थी, लेकिन शास्त्री ने दहेज में चरखा और खादी लिया था। प्रधानमंत्री आवास में रहते हुए, एक बार उन्होंने छत के पंखे की और देखते हुए कहा था ‘बस इसकी आदत लग गई है’। उनके पास प्रॉपर्टी के नाम पर केवल कुछ किताबें और धोती-कुर्ता था। सबक: सिंपल लिविंग, हाई थिंकिंग।
5) शास्त्री व्रत: प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि भोजन समान रूप से वितरित किया जाए, और यह सुनिश्चित करने के लिए दिन में एक बार भोजन न करें। सोमवार शाम को भोजनालयों को बंद रखने की उनकी अपील को अच्छी प्रतिक्रिया मिली। नागरिकों ने बाद में इसे ‘शास्त्री व्रत’ कहा। सबक: कठिन समय में हाई एक्सपेक्टेशन रखना गलत नहीं।
6) ऑनेस्टी इस द बेस्ट पॉलिसी: प्रधानमंत्री रहते हुए, वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए सरकारी कार का उपयोग नहीं करते थे, बल्कि इसके लिए उन्होंने 12,000 रुपयों में एक फिएट कार निजी तौर पर लोन लेकर खरीदी थी, जिसका भुगतान उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने पेंशन के पैसों से किया। सबक: खुद एक उदाहरण बनें, केवल भाषणबाजी न करें।
7) अस्पृश्यता का विरोध: लाल बहादुर शास्त्री ने जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनके द्वारा दिए गए कई प्रेरणादायक उद्धरणों में से एक था, ‘भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना होगा यदि एक भी व्यक्ति बचा है जिसे किसी भी तरह से अछूत कहा जाता है।’ शास्त्री ने स्कूल में अपना सरनेम केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वे जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करते थे। काशी विद्यापीठ से स्नातक होने के बाद उन्हें विद्वानों की उपलब्धि के रूप में ‘शास्त्री’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। सबक: हिम्मत से सामाजिक कुरीतियों का विरोध करें।
उनकी मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद हुई। वे मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले व्यक्ति थे।