एक राष्ट्र की सबसे छोटी इकाई परिवार तक के सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए सर्वोदय के विचार से भारत को धनी बनाने वाले‚ भारतीय चिंतकों में अग्रणी‚ विश्व स्तर पर पूजनीय‚ महान राष्ट्रभक्त तथा बापू की संज्ञा से शोभित‚ महात्मा व राष्ट्रपिता के नाम से पहचाने जाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी‚ एक दुबले हाड़–मांस का सजीव ढांचा मात्र नहीं‚ बल्कि आजाद भारत की आधारशिला में एक अनूठे क्रांति की मजबूत इट को स्थापित करने वाले विशाल शख्सियत के मालिक हैं। यहां ‘हैं’ लिखना इसीलिए प्रासंगिक है क्योंकि वर्तमान भारत को भी गांधी जी के विचारों की उतनी ही आवश्यकता है‚ जितनी औपनिवेशिक भारत को थी। बस! अंतर है कि तब औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ जरूरत थी और अब स्वविकास‚ स्वशासन और स्वावलंबन के लिए अपरिहार्य है।
वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो संपूर्ण वैश्विक अशांति‚ संघर्ष‚ लड़ाई व युद्ध इत्यादि की ओर अग्रसर है जिसका दूरगामी परिणाम विनाश मात्र है। वहीं गांधी ‘सत्य को ईश्वर मानते हैं।’ बौद्ध धर्म व जैन धर्म के प्रभाव के साथ पंचव्रत का पालन करते थे। आज अभिव्यक्ति के अधिकार के नाम पर कुछ भी नकारात्मक तक बोलने का अधिकार हो गया है‚ तब भी लोग सच बोलना तो दूर सच का साथ तक नहीं दे पाते हैं। यह सोचनीय है कि औपनिवेशिक भारत में जहां बोलने तक कि छूट नहीं थी तब गांधी जी अहिंसा के साथ सभी प्रताड़नाओं को झेलते हुए‚ सत्य की ही पूजा करते रहे। गांधी जी का मानना है कि अत्याचार करने वालों की तुलना में सहने वाले ज्यादा पापी हैं क्योंकि यदि हम गलत के विरु द्ध आवाज तक नहीं उठा सकते तो इसका अर्थ है कि हम गलत को सहमति दे रहे हैं। गांधी जी ऑन टू द लास्ट (जॉन रस्किन द्वारा रचित) से काफी प्रभावित थे जिसका गुजराती संस्करण उन्होंने सर्वोदय नाम से लिखा। गांधी जी ने अनेक पुस्तक–पत्रिकाओं के साथ ही श्रीमद्भागवत गीता पर टीका भी लिखी। गीता के बारे में गांधी जी का कहना है‚ ‘जो समस्या कहीं और न सुलझे उसका भी समाधान है गीता में‚ मैं गीता को मां का स्थान देता हूं। जब कभी अशांत होता हूं‚ तब विशेष तौर पर गीता का अध्ययन करता हूं।’ गांधी जी के बचपन व उनका पारिवारिक और राजनैतिक दौर सामान्य तौर पर कमोबेश प्रत्येक भारतीय नागरिक को पता होता है क्योंकि यह हमारे स्कूली शिक्षा से उच्चत्तर शिक्षा तक में समावेशित है जिससे कि देश के कर्णधार उस प्रेरणा को स्वयं के चरित्र में समाहित कर सकें। किन्तु गांधी के दर्शन जो विभिन्न संदर्भों को सारगर्भित करता है‚ वह दिलचस्प है। गांधी स्वराज की बात करते थे जिसका अभिप्राय था विशुद्ध नैतिक प्राधिकार पर आधारित लोगों की प्रभुसत्ता जिसका बुनियाद श्रम और स्वाबलंबन है‚ जिसमें अधिकारों का मूल स्रोत कर्त्तव्य को बताया गया है।
गांधी जी ने रोटी–श्रम का सिद्धांत अपनाया जिसके अनुसार हर व्यक्ति को अपने मूलभूत आवश्यकताओं के लिए मेहनत करना चाहिए। इसी संदर्भ में भारत में श्रम की बहुलता को देखते हुए गांधी जी मशीनीकरण के आलोचक थे और औद्योगिकीकरण के भविष्य को अंधकारमय बताते थे क्योंकि यह शोषण पर आधारित है। लघु व कुटीर उद्योग पर बल देते थे। गांधी जी के अनुसार स्वराज वह खजाना है‚ जिसे राज्य को अपना रक्त दे कर खरीदना होगा जहां अमीरों–गरीबों द्वारा जीवन की जरूरतों को पूरा किया जाता हो और आम लोगों के आर्थिक स्थिति में सुधार होता हो। आज भी भारत की बड़ी आबादी ग्रामीण परिवेश की निवासी है। यद्धपि यह कहना उचित है‚ ‘भारत गांवों में बसता है।’ इस संदर्भ में गांधी जी ने पूर्ण विकेंद्रीकरण की बात की जिसके अंतर्गत वे गांवों को राजनैतिक रूप से सुदृढ़ देखना चाहते थे अर्थात ‘पंचायतीराज’ जिसे बलवंत राय समिति‚ १९५८ की सिफारिश पर स्वीकार किया गया और १९९३ में ७३वें और ७४वें संविधान संशोधन के माध्यम से त्रि–स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया। वर्तमान में जिसका सफल क्रियान्वयन वास्तविक धरातल पर स्पष्ट देखा जा सकता है। महिलाओं के बारे में गांधी जी के विचारों को देखा जाए तो उन्होंने कहा है कि महिलाएं अधिक बलिदानी‚ नैतिक शक्ति से पूर्ण और अहिंसा के गुणों को धारण करने वाली होती हैं।
जब व्यक्ति किसी मुश्किल में पड़ जाए तो व्यक्ति के पास दो रास्ते हैं–संघर्ष व त्याग। गांधी जी ने सत्य के साथ संघर्ष को चुना और कहा कि यदि अकेले भी पड़ जाओ तो भी सत्य को नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि यह ईश्वर को त्यागना है। हालांकि वे अहिंसा के पुजारी थे और सत्य व अहिंसा को इंसान के दोनों फेफड़ों के समान बताया है किंतु यह ध्यान रखने योग्य है कि उन्होंने कहा‚‘यदि हिंसा व कायरता में एक को चुनना पड़े तो मैं हिंसा को ही चुनूंगा।’ अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण प्रतिरोध कमजोर लोगों द्वारा किया जाता है क्योंकि वे सशस्त्र विरोध करने में अक्षम होते हैं जबकि अहिंसा साहसी व शक्तिशाली लोगों द्वारा अपनाई जाती है क्योंकि वे सशस्त्र विरोध के लिए इच्छा नहीं रखते। कुल मिला कर कहा जाए तो वैश्विक भू–राजनीतिक अस्थिरता को भी देखते हुए कहा जा सकता है कि सकारात्मकता‚ स्वविश्वास‚ सत्य‚ स्वावलम्बन व स्वराज‚ जो गांधी जीवन का सारांश हैं‚ को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है‚ और इसीलिए वर्तमान में भी वैश्विक प्रासंगिकता बने रहने से महात्मा गांधी आज भी एक जीवंत विचार हैं।
औद्योगिक क्रांति 4 के दौर में गांधी की प्रासंगिकता
नहीं चाहता कि मेरा घर चारों ओर दीवारों से घिरा हो‚ मेरी खिड़कियां बंद हों‚ मैं तो चाहता हूं कि सभी देशों की संस्कृतियां मेरे घर के चहुंओर यथासंभव मुक्त होकर उड़े.परंतु कोई हवा मेरे पैर उखाड़ कर मुझे ही न उड़ा ले जाए। महात्मा गांधी ने ये बात विकसित देशों की तकनीकों और प्रौद्योगिकी के कुप्रभावों को सामने रखते हुए कही। समकालीन समय में भारत और विश्व आज बड़े स्तर पर परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं‚ चारों तरफ ऑटोमेशन जैसी तकनीकों का दायरा बढ़ता जा रहा है‚ और इन नई डिजिटल तकनीकों ने विश्व के सभी देशों को कुछ फायदों और कुछ नुकसान से अवगत करवाया है परंतु इसके बावजूद इन तकनीकों का प्रसार विश्व में इतना तेजी से हो रहा है कि कोई भी देश इनको अपनाए बिना नहीं रह सकता। इसमें कोई दो राय नहीं कि औद्योगिक क्रांति ४.० में आइ नई तकनीकों ने विश्व को बहुत तेजी से आपस में जोड़ा है‚ उत्पादन की गति को तेज किया है और उत्पादन की गुणवत्ता में भी सुधार किया है परंतु इन नई ऑटोमेशन तकनीकों को अपनाने से खासकर अल्पविकसित और विकासशील देशों को ज्यादा नुकसान हुआ है क्योंकि इस प्रकार की तकनीक विकसित करने की क्षमता इन देशों के पास नहीं है‚ और यदि ये देश विकसित देशों से इन तकनीकों को खरीदते हैं‚ तो इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ेगी जिसका इन देशों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ–साथ इन नई तकनीकों का प्रयोग और संचालन करने के लिए इन देशों के पास कौशलयुक्त श्रमिकों की कमी है‚ और इन तकनीकों के अपनाने से मौजूदा श्रमिकों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिलेगी।
जैसे भारत की ही बात करें तो बिजनेस लाइन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि बैंक में नई तकनीकें जैसे एटीएम‚ मोबाइल बैंकिंग‚ ऑनलाइन ट्रांजेक्शन आदि के आने से बैंकों में क्लर्क और अन्य स्टाफ की नियुक्तियों में ज्यादा कमी आई है‚ और एक आंकड़ा यह भी दिखाया कि २००५ में सरकारी बैंकों में क्लर्कों की संख्या ७.४८ लाख थी जो १६ वर्षों में २०२१ तक बढ़कर ७.८३ लाख तक ही पहुंची है। श्रमिकों की संख्या में इस प्रकार की गिरावट विश्व भर के देशों में देखने को मिल रही है। महात्मा गांधी का मानना था कि मशीन और तकनीक के तेजी से हुए विकास ने मनुष्य की कठिनाइयों को बढ़ाया है‚ और मानव प्राणी औद्योगिकीकिरण पर आधारित आधुनिक सभ्यता के भारी बोझ के तले कुचला जा रहा है। गांधी जी मशीनों का उतना ही प्रयोग चाहते थे जिससे मानव श्रम का विस्थापन न हो। वे चाहते थे कि नव प्रवर्तनों द्वारा ऐसे जटिल आविष्कार न हों‚ जो बेरोजगारों की फौज खड़ी कर दें और मशीनों पर काम करने को निष्प्राण‚ यांत्रिक और नीरस बना कर काम करने के आकर्षण को ही नष्ट कर दें।
ऑटोमेशन और कंप्यूयूटरों के इस युग में जब चिंतन प्रक्रियाएं और संवेगों को भी मशीन द्वारा लिखा जा सकता है‚ तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मानव हाथ उत्पादन प्रक्रिया में पंगु हो रहे हैं। अमेरिका जैसे अति विकसित देशों में ऑटोमेशन की तकनीकों ने बेरोजगारी और मानव श्रम के विस्थापन का गंभीर खतरा पैदा कर दिया है‚ इसलिए अमेरिका जैसे देशों से सबक लेकर गांधी जी न विकेंद्रित तकनीकों और हस्तशिल्प के पुनरु द्धार की पुरजोर वकालत की थी ताकि यांत्रिक मशीनों के दबाव से मानव रूपी मशीनें बेकार पड़ी न रह जाएं। महात्मा गांधी को अनुमान था कि भारी और बड़ी प्रौद्योगिकी व तकनीकें केंद्रीयकरण को बढ़ावा देती हैं‚ इनसे सारा धन कुछ ही लोगों के पास‚ जो ये तकनीकें खरीद पाने और संचालन करने की क्षमता रखते हैं‚ के हाथों में केंद्रित हो जाता है। इससे बचने के लिए उन्होंने लघु उद्योगों को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मुझे मशीनों और इन नई तकनीकों से परहेज नहीं है‚ बल्कि मशीनों के नशे या पागलपन से है।
भारत जैसे देशों में बढ़ती जनसंख्या के साथ बढ़ती बेरोजगारी और पूंजी की कमी ने गंभीर रूप धारण कर लिया है‚ ऐसी स्थिति में यहां पर आर्थिक सत्ता और तकनीकों के केंद्रीयकरण पर जोर देने से समस्या का कोई समाधान होने वाला नहीं दिखता। इसके विपरित गांधी द्वारा सुझाई गई विकेंद्रित अर्थव्यवस्था अपनाने से अवश्य ही विकासशील और अल्पविकसित देशों को कुछ समस्याओं से उभरने में मदद मिल सकती है। तकनीकों और प्रौद्योगिकी पर हुए हाल के शोधों से सामने आया है कि गांधी जी के विचारों को अधिक तार्किक और आधुनिक बनाया जा सकता है जिससे विश्व को मौजूदा समय में विकास करने के लिए सहयता मिलेगी। गांधी जी ऐसे महान क्रांतिकारी थे‚ जिन्होंने औद्योगिक क्रांतियों से पनपे जटिल प्रश्नों के समाधान ढूंढने के प्रयास किए और सामाजिक पुननर्माण के अभियान में अनेक देशों के प्रबुद्ध जनों को प्रभावित किया अर्थात उनके विचारों से अवगत होना किसी भी शिक्षित व्यक्ति के लिए आवश्यक और प्रेरणादायक अनुभव है।