‘आंचल में दूध ‚आंखों में पानी अबला नारी तेरी यही कहानी।’ इस उक्ति से उलट हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में नारी की एक नई परिभाषा गढ़ी जो स्वाभिमानी‚ सबल‚जागरूक और सशक्त है। बच्चों को जन्म देने और गर्भपात से जुड़े कोर्ट के इस निर्णय का देश भर में स्वागत किया गया। मेडिकल टरमनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एमटीपी एक्ट को केंद्र में रखकर इसकी पुनव्र्याख्या के जरिए विवाहित और अविवाहित सभी महिलाओं को कानून सम्मत तरीके से २० से २४ सप्ताह के बीच गर्भपात कराने का अधिकार दे दिया गया है। इस फैसले की एक अच्छी बात ये रही कि इसके तहत न केवल विवाहित महिलाएं अपितु अठारह वर्ष से उपर की सभी युवतियां कानूनन सुरक्षित गर्भपात करा सकेंगी। जाहिर है इस फैसले ने न केवल देश बल्कि विदेशों में भी आधुनिक और विकसित सोच वाले भारत की छवि को पुख्ता किया है। पश्चिमी देशों अब भी इस कानून को लेकर जद्दोजहद जारी है‚ लेकिन एक कदम आगे बढ़कर भारत ने दुनिया के सामने नजीर पेश की है।
देश में पुरातन और रूढ़ीवादी चश्मे के जरिए विवाहपूर्व गर्भपात कराने वाली महिलाओं और लड़कियों को दोषयुक्त शील आचारण के साथ देखा परखा जाता रहा है‚ जबकि नैतिक और अनैतिक गर्भाधान में पुरुष वर्ग भी समान रूप से जिम्मेदार होता है। अनचाहे बच्चो के जन्म के बाद की सारी जिम्मेदारी बिनब्याही मां के जिम्मे आ जाती है। अपमान‚ पीड़ा और जलालत के चलते कई बार ऐसी महिलाओं को मृत्यु का भी वरन करना पड़ता है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए महिलाएं अवैध संतानों को गिराने के लिए गैर लाइसेंस प्राप्त क्लिनिक‚ अप्रशिक्षित डॉक्टरों और दाइयों का चोरी–छुपे सहारा लेती है‚ जिससे कई बार उनकी जान पर बन आती थी। कानून होने के बावजूद सुरक्षित गर्भपात कराने में आने वाली बाधाओं के चलते महिलाएं असुरक्षित गर्भपात को मजबूर थी। पर्याप्त ढांचागत संसाधनों का अभाव‚ जानकारी की कमी‚ सामाजिक कलंक और कुछ मामलों में गोपनीय तरीके से सुरक्षित देखभाल उपलब्ध नहीं होना चिंताजनक था जिसे इस नये कानून के जरिए आसान बनाने की कोशिश की गई है। अब सहमति से यौन संबंध बनाने वाली नाबालिग भी मेडिकल टरमनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के प्रावधानों का लाभ उठा सकेंगी। इस फैसले के बाद से ऐसी गर्भपात मृत्यु दर में कमी आएगी और महिलाओं के प्रजनन अधिकार की स्वायत्तता पर भी मुहर लगेगी। साथ ही समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। कानून सम्मत तरीके से तय अवधि में गर्भपात का अधिकार और स्वायत्तता देने से विवाहित अविवाहित एकल महिला सबको बराबरी का हक मिलेगा।
कोर्ट की सबसे अच्छी पहल ये है कि पहली बार संभवतःदुष्कर्म की परिभाषा में वैवाहिक दुष्कर्म को भी शामिल किया गया है। जाहिर है इस कानून के आने से डॉक्टर को पोक्सो एक्ट के तहत अपराधों की अनिवार्य रूप से रिपोर्ट करने की बाध्यता और संविधान के अनुच्छेद २१ के तहत नाबालिक लडि़कयों के प्रजनन और स्वायत्तता के अधिकारों के बीच किसी भी तरह के टकराव को रोकने में मदद मिलेगी। सहमति से यौन संबंध बनाने वाली १८ साल की लडि़कयों को निश्चित ही इससे मदद मिलेगी। महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक और नये कदम से आधी आबादी की सशक्तीकरण की राह आसान होगी।