हाल ही में उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत प्रत्येक क्षेत्र में शोध एवं नवाचार का समर्थन करते हुए अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। २०२२ में भारत की अर्थव्यवस्था में ७.५ फीसदी वृद्धि करने की आशा है‚ जो विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक होगी। यह भी कहा कि आज भारत में ७०‚००० से अधिक स्टार्ट–अप हैं‚ जिनमें १०० से अधिक यूनिकॉर्न हैं। ऐसे में भारत शोध एवं नवाचार को और अधिक प्रोत्साहन देते हुए देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने सहित विभिन्न क्षेत्रों में विकास को नई रफ्तार देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है।
गौरतलब है कि सरकार पिछले सात–आठ वर्षों से भारत को अनुसंधान एवं नवाचार के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में लगातार समर्थन देते हुए दिखाई दे रही है। २०१४ के बाद से विज्ञान एवं नवाचार पर निवेश बढ़ा है। यही कारण है कि भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में इस समय ४६वें स्थान पर है‚ जबकि २०१५ में ८१वें स्थान पर था। इस समय जब भारत चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व कर रहा है‚ तब भारत के विज्ञान एवं नवाचार की अहम भूमिका से विकास की आस पूरी होगी। सरकार ने देश को २०४७ तक विकसित देश बनाने के बड़े लक्ष्य को हासिल करने के मद्देनजर शोध एवं नवाचार की भूमिका को अब अधिक अहम एवं प्रभावी बनाए जाने का संकेत दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले दशक में शोध‚ नवाचार एवं तकनीकी विकास के परिपेक्ष्य में भारत लगातार बढ़ा है। शोध एवं नवाचार के कारण बुनियादी ढांचा‚ स्वास्थ्य‚ डिजिटल‚ प्रौद्योगिकी‚ कृषि‚ शिक्षा‚ रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हो रही है। भारत के नवाचार दुनिया में सबसे प्रतियोगी‚ किफायती‚ टिकाऊ‚ सुरक्षित और बड़े स्तर पर लागू होने वाले समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। नये वैश्विक ग्लोबल इंडेक्स के तहत भारत में कारोबारी विशेषज्ञता‚ रचनात्मकता‚ राजनीतिक और संचालन से जुड़ी स्थिरता‚ सरकार की प्रभावशीलता और दिवालियापन की समस्या को हल करने में आसानी जैसे संकेतकों में अच्छे सुधार किए गए हैं। भारत में डिजिटल अर्थव्यवस्था‚ घरेलू कारोबार में सरलता‚ स्टार्टअप‚ विदेशी निवेश जैसे मानकों में भी बड़ा सुधार दिखाई दिया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक देश में कृषि शोध से जुड़े सौ से अधिक रिसर्च इंस्टीट्यूट‚ ७५ कृषि विश्वविद्यालयों और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के २० हजार से अधिक वैज्ञानिकों के समÌपत शोध कार्य‚ प्री एंड पोस्ट हार्वेस्टिंग मैनेजमेंट‚ कृषि क्षेत्र में बढ़ते निजी निवेश‚ ७३१ कृषि विज्ञान केंद्रों से मुफ्त बीज वितरण आदि से कृषि क्षेत्र में विकास का नया अध्याय लिखा जा रहा है।
जब हम इस प्रश्न पर विचार करते हैं कि भारत को विकसित देश बनाने के लिए शोध एवं नवाचार में कितना आगे बढ़ना होगा तो हमारे सामने दुनिया के ३८ विकसित देशों का आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) दिखाई देता है। इस समूह के सभी देशों ने अपने–अपने देश में आर्थिक विकास को >ंचाई पर पहुंचाने के लिए शोध एवं विकास की भूमिका को प्रभावी बनाया है। इस समय यूरोपीय संघ में शोध एवं विकास (आरएंडडी) पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब २ प्रतिशत‚ अमेरिका और जापान में करीब ३ प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में करीब ४.५ प्रतिशत व्यय किया जाता है। जहां दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आरएंडडी पर खर्च निरंतर तेजी से बढ़ा है वहीं भारत में आरएंडडी पर करीब ०.६७ प्रतिशत ही व्यय हो रहा है।
यदि हम आरएंडडी की दृष्टि से देखें तो आज भारत उसी मुकाम पर खड़ा है‚ जहां ६०–७० वर्ष पहले अमेरिका था। अमेरिका ने आरएंडडी पर अधिक खर्च करके सूचना प्रौद्योगिकी‚ संचार‚ दवाओं‚ अंतरिक्ष अन्वेषण‚ ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढकर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है। भारत को भी आर्थिक रूप से शक्तिशाली और विकसित देश बनाने के लिए आरएंडडी की ऐसी सुविचारित रणनीति पर आगे बढना होगा ताकि सरकारी‚ निजी क्षेत्र और शोध संस्थानों के बीच सहजीविता और समन्वय के सूत्र आगे बढ़ाए जा सकें। सरकार द्वारा शोध एवं नवाचार की भूमिका को प्रभावी बनाने के मद्देनजर आरएंडडी पर देश की कुल जीडीपी का कोई दो प्रतिशत तक खर्च किया जाना सुनिश्चित करना उपयुक्त होगा। आरएंडडी में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ानी होगी। आरएंडडी की राशि को सरकारी शोध प्रयोगशालाओं तक सीमित न करके बुनियादी एवं अनुप्रयुक्त शोध के लिए व्यापक आधार तैयार करने पर भी खर्च किया जाना होगा। बड़ी कंपनियों के लिए अपने लाभ का एक हिस्सा आरएंडडी के लिए सुनिश्चित करना होगा।
यह भी महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों का पुनर्गठन किया जाए। मिशन–आधारित उपक्रम बनाने होंगे‚ डीआरडीओ और अंतरिक्ष आयोग जैसे मिशन–केंद्रित अनुसंधान संस्थानों का निजी क्षेत्र के साथ बेहतर जुड़ाव करना होगा। उच्च शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में उच्च शोध एवं नवाचार को प्रोत्साहित करना होगा। जलवायु परिवर्तन और जैव–अर्थव्यवस्था जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के साथ ही नैनो टेक्नोलॅजी और एआई जैसे दीर्घकालिक अवसरों को मुट्ठी में लेने के लिए नये मिशन–केंद्रित कार्यक्रमों पर ध्यान देना होगा। चिप डिजाइन और फार्मा जैसे–उत्पादों में आरएंडी की और अधिक दखल जरूरी होगी।
उम्मीद करें कि सरकार शोध एवं नवाचार पर जीडीपी की दो प्रतिशत से अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढेगी। इससे जहां ब्रांड इंडिया और मेड इन इंडिया की वैश्विक स्वीकार्यता सुनिश्चित की जा सकेगी वहीं स्वास्थ्य‚ कृषि‚ उद्योग‚ कारोबार‚ ऊर्जा‚ शिक्षा‚ रक्षा‚ संचार‚ अंतरिक्ष सहित विभिन्न क्षेत्रों में देश तेजी से आगे बढ़ते हुए दिखाई देगा। २०४७ में आजादी के सौ वर्ष पूरा करने के अवसर पर भारत आर्थिक रूप से शक्तिशाली और विकसित भारत बनने के सपने को भी साकार करते हुए दिखाई सकेगा।
आरएंडडी की दृष्टि से देखें तो आज भारत उसी मुकाम पर खड़ा है‚ जहां ६०–७० वर्ष पहले अमेरिका था। अमेरिका ने आरएंडडी पर अधिक खर्च करके सूचना प्रौद्योगिकी‚ संचार‚ दवाओं‚ अंतरिक्ष अन्वेषण‚ ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढकर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने का अध्याय लिखा है। भारत को भी आर्थिक रूप से शक्तिशाली और विकसित देश बनाने के लिए आरएंडडी की सुविचारित रणनीति पर आगे बढना होगा