कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की उठापटक के बीच और राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) रविवार को दोपहर में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित प्रसिद्ध तनोट माता के दरबार (Tanot Mata Temple) में पहुंचे. 1965 में भारत पाक युद्ध में पाकिस्तानी बमों से भारतीय सैनिकों की रक्षा करने की मान्यता को लेकर प्रसिद्ध इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मां का आशीर्वाद बड़े से बड़े संकट को टाला जा सकता है. कांग्रेस में चल रही सियासी सरगर्मियों के बीच गहलोत की इस धार्मिक यात्रा के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत रविवार को दोपहर में हेलिकॉप्टर से पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर जिले में धोरों में स्थित तनोट माता मंदिर पहुंचे. गहलोत ने तनोट माताजी के दर्शन कर आशीर्वाद लिया. मुख्यमंत्री की इस धार्मिक यात्रा में दौरान प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भी उनके साथ रहे. सीएम विशेष विमान पर पहले जैसलमेर पहुंचे थे.
जैसलमेर एयएपोर्ट पर पहुंचे कांग्रेस नेता
जैसलमेर एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री का कैबिनेट मंत्री शाले मोहम्मद, विधायक रूपा राम, बाड़मेर विधायक मेवाराम जैन, कांग्रेस जिलाध्यक्ष उम्मेदसिंह तंवर, नगरपरिषद सभापति हरिवल्लभ कल्ला और कई कांग्रेसी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया. गहलोत 3.15 बजे तनोट से जैसलमेर के लिए हेलिकॉप्टर से वापस रवाना होंगे. इसके बाद 4.30 बजे विशेष विमान से जैसलमेर से जयपुर के लिए रवाना होंगे.
शाम को है कांग्रेस विधायक दल की बैठक
रविवार शाम को जयपुर में मुख्यमंत्री निवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक है. माना जा रहा है कि गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव लड़ने के मद्देनजर इस बैठक में राजस्थान सूबे के नए सीएम फेस को लेकर बड़ा फैसला हो सकता है. विधायक दल की इस बैठक में पर्यवेक्षक के तौर पर राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन और पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जयपुर पहुंच चुके हैं. सीएम फेस के मद्देनजर यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है.
सियासी चर्चाओं का चल पड़ा दौर
दूसरी तरफ सीएम अशोक गहलोत के रातोंरात तनोट माता के दर्शन करने का प्लान चर्चा का विषय बन चुका है. सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार फिर गर्म हो गया है. सीएम गहलोत कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से पहले माता के दरबार में आ रहे और या फिर एक बार फिर राजस्थान की सियासत मे फेरबदल को रोकने के लिए.
राजस्थान में इस वक्त राजनीति बहुत ही रोचक बनी हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने मौजदा पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे। यहां सीएम की कुर्सी खाली हो जाएगी और यही आलाकमान के लिए सरदर्द का कारण बना हुआ है। एकतरफ अशोक गहलोत चाहते हैं कि राज्य उनके बाद उनका कोई विश्वासपात्र सीएम पद पर आसीन हो वहीं सचिन पायलट राज्य के नए खेवनहार बनना चाह रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि सीएम पद के लिए चर्चा में केवल एक ही नाम हो। इस वक्त कई नाम हवा में तैर रहे हैं, लेकिन अभी यह तय नहीं है कि आलाकमान किसके नाम का ऐलान करता है।
आज जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई गई है। जिसमें नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर बड़ा फैसला हो सकता है। 2018 से ही ‘सब्र’ करके बैठे सचिन पायलट सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान खासकर राहुल और प्रियंका गांधी पायलट के पक्ष में बताए जा रहे हैं। हालांकि, गहलोत इसके लिए अभी तक तैयार नहीं है और राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले वरिष्ठ नेता अपने दांव से चौंका सकते हैं।
गहलोत के मुख्यमंत्री बने रहने की कोशिश और सचिन पायलट के उत्तराधिकारी की रेस में सबसे आगे होने के अलावा कुछ और चेहरों पर भी चर्चा चल रही है। पायलट के अलावा विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी भी प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। 2008 के चुनाव में महज एक वोट से हार की वजह से मुख्यमंत्री बनते बनते रह गए सीपी जोशी को गहलोत का भी समर्थन प्राप्त है। ब्राह्मणों की कथित नाराजगी दूर करने को लेकर पार्टी उन्हें आगे कर सकती है। सीपी जोशी 4 बार केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। उन्हें राहुल गांधी का विश्वास भी हासिल है।
सीपी जोशी के अलावा बीडी कल्ला का भी नाम चर्चा में है, जो ब्राह्मणों के जानेमाने नेता हैं। उनका लंबा अनुभव उनका पक्ष मजबूत करता है। हालांकि, विधायकों पर उनकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं है। लेकिन माना जा रहा है कि गहलोत उनको आगे करके पर्दे के पीछे से नियंत्रण अपने हाथ रख सकते हैं। तीसरे दावेदार के रूप में वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का नाम चल रहा है। जाट समुदाय से आने वाले गोविंद को सीएन बनाकर पार्टी जाटों को साथ सकती है। राजस्थान में 11 लोकसभा सीटों पर जाट अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में 2024 में पार्टी को लाभ हो सकता है।
लेकिन अभी कुछ तय नहीं है कि राजस्थान सीएम का ऊंट किस करवट बैठेगा, लेकिन माना जा रहा है कि फैसला कुछ भी हो बवाल तय है। अगर आलाकमान सचिन को ‘पायलट’ बनाता है तो अशोक गहलोत इसका पुरजोर विरोध करेंगे। क्योंकि वे नहीं चाहेंगे कि उनके दिल्ली जाने के बाद राज्य में उनकी पकड़ कमजोर हो और इसका नुकसान उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में हो। इसलिए गहलोत पूरी कोशिस करेंगे कि दिल्ली जाने के बावजूद राजस्थान की चाबी उनके ही हाथ में रहे।