बिहार में किसानों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. कृषि मंत्री विभाग के अधिकारियों और सरकार की नीति पर सवाल उठा रहे हैं. इस बार कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार के कृषि रोड मैप पर ही सवालिया निशान खड़ा करने हुए जांच कराने की बात कह दी है. बिहार में कम वर्षा होने के कारण किसान पहले से परेशान स्थिति सूखे की बनते जा रहे है. सरकार के द्वारा जो राहत पहुंचाई जा रहे हैं वह ना काफी है. इधर महागठबंधन की सरकार बनने के बाद सबसे ज्यादा सवाल खड़े कृषि विभाग पर ही खड़े हुए हैं .
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने अपने ही विभाग के अधिकारियों पर पहले गंभीर आरोप लगाया और अब बिहार में लाए गए कृषि रोडमैप को भी बेकार बता रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहला कृषि रोड मैप का बहुत छोटा बजट था और लक्ष्य छोटा था. कृषि रोड मैप 2 और 3 व्यापक पैमाने पर बनाए गए लेकिन उसमे यह नीति नहीं बनाई गई कि किसानों की आमदनी कैसे बढ़ेगी और उत्पादन कितना बढ़ेगा. इन चीजों का इस में जिक्र ही नही किया गया.
कृषि रोड मैप के आंकड़े चिंताजनक हैं. बिहार में वर्ष 2011 और 12 में खाद्यान्न का उत्पादन 1 करोड़ 77 टन था और वर्ष 2021- 22 में 1 करोड़ 76 लाख टन था. 1 लाख टन बिहार का पैदावार भी घट गया .जबकि 10 वर्षो में आबादी भी बढ़ी लेकिन उत्पादन नही बढ़ा. बिहार में वर्ष 2008 में पहला कृषि रोड मैप लगाया था जो 2012 तक के लिए था .उसके बाद 2012 में 2017 के लिए कृषि रोड मैप बनाया गया .और फिर 2017 से 2022 तक के लिए रोड मैप लाया गया जिसे कोरोना के कारण के साल के लिए बढ़ाया गया है .वर्ष 2017 से 22 में लाए गए तीसरे कृषि रोड मैप का बजा करीब 1 लाख 54 हजार करोड़ था.
अब इन तीनो कृषि रोड मैप पर कृषि मंत्री सवाल उठा रहे हैं. सुधाकर सिंह अपनी ही सरकार के कृषि रोडमैप पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं. इतना ही नहीं सुधाकर सिंह बिहार के तीनों कृषि रोड मैप को जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराने के तैयारी में हैं. उनका कहना है कि यह जानना जरुरी है कि आखिर कमियां कहां रह गईं. 2.5 लाख करोड़ से अधिक कृषि रोडमैप का बजट है इसलिए अगला रोडमैप जरूर बनेगा लेकिन पुरानी कमियों को दूर करते हुए इसे बनाया जायेगा.
कृषि मंत्री के सुधाकर सिंह के बयानों में पहले भी नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ाई हैं और एक बार फिर जब कृषि रोडमैप पर उनका बयान आया है तो जदयू को नागवार गुजर रहा है. जदयू नेता नीरज कुमार ने इस मामले में कहा कि किसने क्या बयान दिया, मुझे पता नहीं लेकिन कृषि रोडमैप सिर्फ कृषि विभाग से जुड़ा हुआ नहीं है. क्षेत्र में बिहार में लाए गए कृषि रोडमैप का ही नतीजा है कि बिहार को कृषि कर्मण पुरस्कार मिला, 2018 में बेस्ट डेयरी का पुरस्कार मिला .
बिहार और बाहर यानी दो संस्थाओं से अध्ययन कराया जाएगा
उन्होंने कहा कि बिहार और बिहार से बाहर की संस्था दोनों कृषि रोड मैप का सामाजिक और आर्थिक अध्ययन करेगी कि उसके सही परिणाम सामने क्यों नहीं आए? पहला कृषि रोड मैप महज 6 हजार करोड़ रुपए का था। जबकि दूसरा डेढ़ लाख करोड़ रुपए और तीसरा एक लाख करोड़ रुपए का था। इतने खर्च के बावजूद उत्पादन नहीं बढ़ा और जनसंख्या बढ़ती गई तो हमने क्या व्यवस्था की।
प्रति व्यक्ति को जो न्यूट्रिशन मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा होगा। नतीजा है कि राज्य के लोगों की ऐवरेज हाइट अन्य राज्यों के मुकाबले नहीं बढ़ रही। इतना खर्च होने के बावजूद जब रिजल्ट नहीं हुआ तो हम देखेंगे कि आगे कृषि में किस तरह से खर्च किया जाए।
उत्पादन के न्यूट्रिशन वैल्यू को बेहतर बनाने पर काम होगा
सुधाकर कहते हैं कि किसानों की न्यूनतम आय सुनिश्चित की जाए। उसके लिए पूरे मार्केटिंग के तंत्र को बदला जाए। खेती के इनपुट कॉस्ट को घटाने के लिए रिसर्च होना चाहिए। किसानों ने पर्यावरण की रक्षा की है इसलिए नए कृषि रोड मैप में एग्रो फॉरेस्टी मजबूती से रहेगा।
एग्रो बेड्स खेती के अलावा हॉटिकल्चर, गौवंश संवर्धन पर ध्यान दिया जाएगा। जो हम उत्पादन करेंगे, उसका न्यूट्रिशन वैल्यू बेहतर बनाने के लिए लंबा काम किया जाएगा ताकि राज्य के लोगों को गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके। हर खेत तक पानी हम सुनिश्चित नहीं कर पाए हैं, वहां तक पानी पहुंचाना है।
मखाना की खेती गलत दिशा में जा रही, चौर का इस्तेमाल करेंगे
जिन खेतों में खेती नहीं होती या जो ड्राई लैंड है, उसमें वैकल्पिक खेती पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। आबादी बढ़ रही है और खेती घट रही है। क्रॉप पैटर्न को बदला जाएगा। जैसे कि मखाना की खेती गलत दिशा में जा रही है। जिस जमीन पर मल्टी क्रॉप हो सकता है, उसमें भी मखाना उपजाया जा रहा है।
चौर के इलाके में जहां कुछ और नहीं होता वहां मखाना की खेती करनी चाहिए। हमारे पास नौ लाख हेक्टेयर चौर है। मखाना की खेती की हार्वेस्टिंग नहीं हो पा रही। इसकी मशीन चार-पांच करोड़ में इजाद हो सकती है।
चौथे कृषि रोड मैप से किसानों को डोमेस्टिक और इंटरनेशनल मार्केट देन पर फोकस होगा
सुधाकर सिंह ने कहा कि जरूरी नहीं कि चौथे कृषि रोड मैप की राशि बहुत ज्यादा हो। हम किसानों को टेक्निकल सपोर्ट देना चाहते हैं। हम किसानों को बाजार देना चाहते हैं। डोमेस्टिक और इंटरनेशनल मार्केट तक। उसके लिए ढांचा खड़ा करना चाहते हैं।
किसान अभी भी खेती पर 97 रुपए खुद का खर्च कर रहे हैं। सरकार मुश्किल से तीन रुपए की मदद कर रही है। सरकार का रोल सिर्फ सब्सिडी देना नहीं है। हमारा रोल रिसर्च के जरिए गुणवत्तापूर्ण बीज देने, कम फर्टिलाइजर टेक्नोलॉजी के जरिए खेती के उपाय बताने का भी है। बड़ी बात यह कि किसान उत्पादन तो कर ले रहा है पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे किसान हार जा रहे हैं। न्यूनतम मूल्य से नीचे डिस्ट्रेस मूल्य पर किसान अनाज बेच रहे हैं।
सरकार के फार्म और किसान के फार्म के अनाज में अंतर देख लें तो पता चल जाएगा कि किसान बेहतर उत्पादन कर रहे हैं। हमें किसानों की क्षमता पर तनिक भी शक नहीं है। किसान और बेहतर कर सकते हैं उन्हें बस यह आशा होनी चाहिए कि उनकी उपज का सही मूल्य बाजार में मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि फरवरी से पहले चौथा कृषि रोड मैप नहीं आ पाएगा।