हांल ही में उत्तर प्रदेश की 18वीं विधानसभा का पहला मानसून सत्र आधी आबादी से जुड़ी पहल के चलते विशेष बन गया। गौरतलब है कि इस सत्र में विधानसभा के दोनों सदनों में पहली बार महिला विधायकों को पूरा एक दिन अपनी बात रखने के लिए दिया गया। स्त्री जीवन से जुड़े बहुत से पक्षों को संबोधित संवाद और समस्याओं को सामने रखने से जुड़ी यह पहल वाकई अहम रही। इसे आधी आबादी की समस्याओं‚ अधिकारों और सार्थक बदलावों से जुड़ी चर्चा के मोर्चे पर प्रभावी शुरु आत कहा जा सकता है। महिला सदस्यों की सदन में सक्रियता बढ़ाने और मुखर होकर अपनी बात साझा करने के लिए आयोजित विशेष सत्र का उद्देश्य मूल रूप से ्त्रिरयों के मन–जीवन का दंश बन रही परेशानियों को समझने और उनका निराकरण करने से ही जुड़ा है। आधी आबादी के अधिकार‚ सुरक्षा‚ स्वास्थ्य एवं बेहतरी भरे बदलावों के लिए बनाई जा रहीं योजनाओं और नीतियों को और बल देने का भाव भी लिए है।
विचारणीय है कि समस्याओं का समाधान हो या जीवन का परिष्करण। सबसे पहले उन परिस्थितियों पर संवाद होना जरूरी है। हालात पर चर्चा किए बिना न तो कठिनाइयों को समझा जा सकता है‚ और न ही उनका हल निकाला जा सकता है। ऐसे में ्त्रिरयों के स्वावलंबन‚ सुरक्षा और सम्मान से जुड़े विभिन्न विषयों पर महिला प्रतिनिधियों का बात करना वाकई अहम है। यह न सिर्फ महिलाओं की सियासी भागीदारी के मोर्चे पर आ रहे बदलाव को रेखांकित करता है‚ बल्कि उनकी मुखर आवाज को बल देने से भी जुड़ा है। यों भी अब आम चुनाव से लेकर राज्यों की सरकार चुनने और स्थानीय निकायों में प्रतिनिधियों को अपना समर्थन देने तक आधी आबादी निर्णायक भूमिका में दिखने लगी है। महिलाएं न केवल बड़ी संख्या में मतदान के लिए घर से निकलने लगी हैं‚ बल्कि बहुत हद सामयिक मुद्दों और माहौल के प्रति जागरूक भी हैं‚ जिसका सीधा सा अर्थ है कि महिलाएं अब अपने समर्थन के बदले यह जताने–बताने को मुखर हैं कि जीवन को बेहतर बनाने वाले हालात को संबोधित प्रयासों की निरंतरता बनी रहे। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में लागू की गइ अधिकतर कल्याणकारी योजनाओं की लाभार्थी महिलाएं ही हैं। आंकड़े बताते हैं कि ८० से ९० फीसदी महिलाएं इन जन–कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित हुई हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सदन में बताया कि कन्या सुमंगला योजना का लाभ १३.६७ लाख बेटियों को मिल रहा है‚ तो ३१.५० लाख महिलाओं तक निराश्रित महिला पेंशन योजना का लाभ पहुंचा है। पिछले ५ वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रयास से कार्मिक और अधिकारी महिलाओं का आंकड़ा बढ़कर ३५ हजार हो गया है। राज्य आजीविका मिशन में भी ६६ लाख महिलाओं को जोड़ा गया है। एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि महिला एवं बाल अपराध के मामलों में भी कमी आई है।
बीते कुछ बरसों में भारतीय राजनीति को समझने–परखने वालों के साथ ही चुनावों के नतीजों ने भी जाहिर किया है कि वोट बैंक के रूप में आधी आबादी ने देश के राजनीतिक परिदृश्य की दिशा मोड़ दी है। ऐसे में केवल चुनावी वादे और दावे नहीं‚ बल्कि बुनयादी स्तर पर स्त्री जीवन से जुड़ी समस्याओं को समझना आवश्यक है।
महिला जन प्रतिनिधियों द्वारा सदन में किए गए संवाद से समाधान तक जाने वाली यह पहल बताती है कि यूपी की वर्तमान सरकार बदलाव लाने को प्रयासरत है जबकि कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनाव में दिया गया नारा‚ ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ आज धरातल पर कहीं नहीं दिख रहा। गौरतलब है कि यूपी विधानसभा में ४७ में से ३८ महिला विधायकों ने अधिकार‚ रोजगार‚ शिक्षा‚ सुरक्षा‚ स्वावलंबन जैसे विषयों पर मुखरता से अपनी बात रखी। महिला प्रतिनिधियों की मुखरता को महत्व देने वाली यह पहल कहीं न कहीं आम औरतों को भी मुखर और आत्मविश्वासी बनाती है। उम्मीद जगाती है कि उनसे जुड़े मुद्दों को आवाज मिल रही है। जैसे इस विशेष सत्र में ही महिलाओं और बेटियों के यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में आरोपियों को अग्रिम जमानत नहीं देने से जुड़ा विधेयक भी पारित किया गया है। दरअसल‚ पितृसत्तात्मक समाज‚ घरेलू जिम्मेदारियां‚ दोयम दर्जे की सामाजिक सोच‚ लैंगिक भेदभाव और राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व जैसे कारणों के चलते भारत में महिलाओं की सियासी भागीदारी कम ही है। २०२० में सेंटर फॉर डवलपिंग स्टडीज और कोनराड एडेनॉयर स्टिफटंग द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में भारतीय महिलाओं और उनकी राजनीतिक सक्रियता से संबंधित कई पहलुओं पर विचारणीय स्थितियां सामने आईथीं जबकि किसी भी देश में जीवन से जुड़े बुनियादी हालात से महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। शिक्षा‚ स्वास्थ्य‚ सुरक्षा‚ सम्मान‚ पोषण और समानता के मोर्चों पर कई छोटी–छोटी लगने वाली बातें उनका जीवन बदल देती हैं। हालांकि इनके लिए कोई बड़ी रणनीति की दरकार नहीं होती पर इन बदलावों का आधार बनने वाली योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। पहले कार्यकाल में योगी सरकार द्वारा शिक्षा‚ पौष्टिक आहार‚ स्वरोजगार और महिला केंद्रित योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन बेहतर ढंग से हुआ। केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना‚ पीएम स्वामित्व योजना‚ पीएम स्व–निधि योजनाओं की समुचित पहुंच से भी महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। यही वजह रही कि दूसरे कार्यकाल के लिए भी मुख्यमंत्री योगी के नेतृत्व को महिला मतदाताओं ने बढ़–चढ़कर समर्थन दिया। उल्लेखनीय है कि इस विशेष सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने भी कहा कि देश की आजादी से लेकर आज तक विकास में नारी शक्ति का अहम योगदान रहा है। राज्य सरकार भी बेटी के जन्म से लेकर उसके विवाह तक के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही है। आग्रह किया कि सदन में महिलाओं को नियमों में न बांधा जाए। समय के प्रतिबंध से मुक्त रखते हुए विशेष सत्र में महिलाओं को बोलने दिया जाए। मुख्यमंत्री योगी की महिला विधायकों से भी अपील थी कि वे समस्याओं के बारे में खुलकर चर्चा करें। सभी मुद्दों पर सकारात्मक सुझाव दें। इससे सरकार को मदद मिलेगी और प्रदेश के लिए अच्छा काम हो सकेगा। ऐसे में इस सत्र का आह्वान और महिला प्रतिनिधियों से प्रभावी भागीदारी की अपील रेखांकित करने योग्य है। हमारे पारिवारिक–सामाजिक और सियासी ढांचे में किसी समस्या से जूझने का पहला कदम अपनी आवाज बुलंद करना ही है। इतना ही नहीं‚ अन्य राज्यों के लिए भी यह शुरु आत एक सार्थक संदेश लिए हुए है।
॥ द॥ उप्र विधानसभा में महिला सदस्यों के लिए संवाद से समाधान तक पहल बताती है कि यूपी की वर्तमान सरकार बदलाव लाने को प्रयासरत है। गौरतलब है कि यूपी विधानसभा में ४७ में से ३८ महिला विधायकों ने अधिकार‚ रोजगार‚ शिक्षा‚ सुरक्षा‚ स्वावलंबन जैसे विषयों पर मुखरता से अपनी बात रखी। मुखरता को महkव देने वाली पहल आम औरतों को भी मुखर और आत्मविश्वासी बनाती है। दरअसल‚ पितृसत्तात्मक समाज‚ घरेलू जिम्मेदारियां‚ दोयम दर्जे की सामाजिक सोच‚ लैंगिक भेदभाव‚ राजनीति में पुरुûष वर्चस्व जैसी बातों का समाधान जरूरी है ॥ ड़ॉ. मोनिका शर्मा॥