मुबारक पीने वाले‚ खुली रहे यह मधुशाला’ सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की बहुचर्चित कविता की इस पंक्ति से शायद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने दिल्ली की आबकारी नीति में कुछ बड़े फेरबदल किए। नतीजा यह हुआ कि दिल्ली एनसीआर में शराब की कीमतों और बिक्री में दिल्ली अव्वल नम्बर पर आ गई। परंतु पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की आबकारी नीति के चलते दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल में विवाद की स्थिति बन गई है। दिल्ली की शराब की दुकानों पर लागू हुई नई आबकारी नीति ३१ जुलाई‚ २०२२ को समाप्त होनी थी। इसके बाद इस नई नीति को दोबारा लागू किया जाता कि उससे पहले ही यह नीति विवादित हो गई।
अगर केजरीवाल सरकार की मानें तो २०२१–२२ में लागू की गई इस नीति के तहत सभी सरकारी दुकानों को बंद कर प्राइवेट दुकानों को नीलामी की प्रक्रिया के तहत आवंटित करना तय हुआ। दिल्ली सरकार का दावा था नई नीति से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और आबकारी विभाग का खजाना भी बढ़ेगा। नई नीति के तहत दिल्ली में ८५० से ज्यादा शराब की दुकानें नहीं खुलनी थीं। पुरानी व्यवस्था में इन्हीं ८५० दुकानों से सरकार को करीब ६ हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिलता था। नई नीति के तहत इन्हीं ८५० दुकानों के निजी क्षेत्र में जाने से सरकार का राजस्व डेढ़ गुना बढ़ कर ९.३० हजार करोड़ हो जाता।
जब से यह सियासी विवाद उठा‚ दिल्ली सरकार इस नीति को लेकर बैकफुट पर दिखाई देने लगी। इसके पीछे का कारण दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा नई आबकारी नीति के कार्यान्वयन की सीबीआई जांच की सिफारिश है। दिल्ली सरकार पर आरोप है कि नई आबकारी नीति में नियमों की अनदेखी के चलते शराब की दुकानों के टेंडर दिए गए हैं। उपराज्यपाल की सिफारिश के बाद आनन–फानन में दिल्ली सरकार ने अब पुरानी व्यवस्था को लागू करने का निर्णय लिया है। फिलहाल यह पुरानी व्यवस्था ६ महीने के लिए ही लागू की जाएगी। इन ६ महीनों में दिल्ली सरकार एक नई नीति लाने की योजना बनाएगी। इसका मतलब हुआ कि दिल्ली सरकार ने जैसा अनुमान लगाया था‚ वैसा नहीं हुआ।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब केजरीवाल के निर्णय विवादों में न रहे हों। विपक्ष को इन विवादों के पीछे अनुभवहीनता की झलक दिखाई देती आई है। फिर वो चाहे मुफ्त में बिजली–पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं हों या महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा हो। विपक्ष केजरीवाल को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ता। केजरीवाल सरकार के कुछ निर्णय अव्यावहारिक जरूर रहे हैं‚ लेकिन कई निर्णय ऐसे भी हैं‚ जिनमें कुछ विभागों में जनता की सहूलियत सालों से चले आ रहे भ्रष्टाचार पर भारी पड़ी। इनमें ज्यादा विवाद नहीं उठे क्योंकि ज्यादातर लोगों को इन नीतियों से लाभ ही मिला। मिसाल के तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस के नवीकरण का घर बैठे ही हो जाना एक अच्छा कदम है। परंतु इसके साथ ही केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली की सड़कों को यूरोप की तर्ज पर सजाने के निर्णय से मौजूदा सड़कों की चौड़ाई कम की गई जिससे नागरिकों को आए दिन काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सड़कों पर जाम बढ़ गए और बिना वजह लाखों का कीमती इÈधन जाया जाने लगा। मौजूदा सड़कों की मरम्मत और रख–रखाव कर इन्हीं को दुरु स्त किया जा सकता था परंतु जल्दबाजी के निर्णय से जनता को जो कष्ट झेलने पड़ते हैं‚ उनका विचार किए बिना नई नीतियों को लागू कर दिया जाता है।
शराब की दुकानों के विषय में दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति का लाना‚ फिर वापस पुरानी नीति पर जाना‚ इसी बात का संकेत है कि केजरीवाल सरकार के अफसर जनता के कर के पैसे को ऐसी योजनाओं पर बर्बाद कर रहे हैं। ध्यान से देखा जाए तो दिल्ली में शराब की बिक्री को लेकर बार–बार बदलाव के कारण उपभोक्ताओं को दिल्ली से सटे एनसीआर इलाकों में जा कर शराब खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इससे सरकार के राजस्व में भी घाटा हो रहा है। गौरतलब है कि २०२१–२२ की नई आबकारी नीति को ३१ मार्च‚ २०२२ के बाद दो बार दो–दो महीने के लिए बढ़ाया भी गया था। ऐसा हुआ था तो इसका यही मतलब हुआ कि नीति ठीक थी। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अनुसार शराब की तय ८५० दुकानों में से केवल ४६८ दुकानें ही चल रही थीं॥।
सिसोदिया ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि उनके द्वारा इन दुकानदारों को ईडी और सीबीआई का भय दिखा कर बंद करवाया जा रहा है। इस सब से दिल्ली में शराब की किल्लत पैदा हो जाएगी। नतीजतन‚ तस्करी वाली शराब और नकली शराब के धंधे में इजाफा होगा। जो भी हो दिल्ली में शराब के शौकीन लोगों को अब या तो महंगी शराब के सहारे रहना होगा या पड़ोस के शहरों से शराब ले कर पीना होगा। शायद बच्चन साहब ने सही ही कहा ‘रहें मुबारक पीने वाले‚ खुली रहे यह मधुशाला’!॥